एल-निनो (El Niño) एक महत्वपूर्ण जलवायु घटना है, जिसका भारतीय मानसून पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह घटना प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में समुद्र के गर्म पानी के अनियमित तापमान परिवर्तन के कारण होती है। इसके परिणामस्वरूप, वैश्विक मौसम पैटर्न में व्यापक परिवर्तन आते हैं, जिनका भारतीय मानसून पर खास असर होता है।
आइए इस विषय को विस्तार से समझते हैं:
1. एल-निनो का परिचय
- परिभाषा: एल-निनो एक जलवायु पैटर्न है, जो हर दो से सात साल के अंतराल पर होता है। यह प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के साथ जुड़ा होता है।
- स्रोत: यह घटना विशेष रूप से मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर के पानी के गर्म होने के कारण होती है, जो सामान्य परिस्थितियों में ठंडा रहता है।
2. एल-निनो की विशेषताएँ
- समुद्री तापमान: एल-निनो के दौरान, समुद्र का तापमान सामान्य से 0.5 से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है।
- हवा के दबाव में परिवर्तन: एल-निनो उच्च दबाव क्षेत्रों में कमी और निम्न दबाव क्षेत्रों में वृद्धि का कारण बनता है।
- वायुमंडलीय पैटर्न: यह वैश्विक वायुमंडलीय पैटर्न में बदलाव करता है, जिससे कई क्षेत्रों में मौसम की स्थिति प्रभावित होती है।
3. भारतीय मानसून पर प्रभाव
- वर्षा में कमी: एल-निनो के सक्रिय होने पर, भारतीय मानसून में वर्षा की मात्रा कम होती है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में बारिश की अवधि और तीव्रता को प्रभावित करता है।
- पश्चिमी धारा का अवरोध: एल-निनो के कारण वायुमंडलीय उच्च दबाव का क्षेत्र विकसित होता है, जिससे दक्षिण-पश्चिम मानसून की हवाएँ कमजोर हो जाती हैं। इससे वर्षा का वितरण असमान होता है।
- जलवायु परिवर्तन: यह सामान्यतः भारत के उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में सूखा या कम वर्षा का कारण बनता है, जो कृषि और जल संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
4. विज्ञान और तंत्र
- जेट स्ट्रीम का प्रभाव: जेट स्ट्रीम की दिशा और ऊँचाई में बदलाव होता है, जो मानसून की गतिविधियों को प्रभावित करता है। जब जेट स्ट्रीम दक्षिण में होता है, तो यह मानसून को कमजोर कर सकता है।
- वायुमंडलीय दाब: जब एल-निनो सक्रिय होता है, तो उच्च दबाव की स्थिति बनती है, जो मानसून के विकास में बाधा डालती है। इसका असर भारत के कई हिस्सों में देखे जा सकते हैं।
5. आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
- कृषि: वर्षा में कमी से खाद्य उत्पादन प्रभावित होता है, जिससे किसानों की आय में गिरावट आती है। खासकर, धान, गेहूँ और अन्य फसलों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- जल संकट: सूखा और जल की कमी के कारण लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे जीवनस्तर प्रभावित होता है।
- स्वास्थ्य: मौसम में बदलाव से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ बढ़ सकती हैं, जैसे कि गर्मी से संबंधित बीमारियाँ।
6. भविष्यवाणी और अनुकूलन
- जलवायु पूर्वानुमान: वैज्ञानिक एल-निनो की घटनाओं की निगरानी करते हैं ताकि भारतीय मानसून की प्रभावी भविष्यवाणी की जा सके। इस जानकारी का उपयोग कृषि और जल प्रबंधन के लिए किया जाता है।
- अनुकूलन उपाय: किसानों को सूखा प्रतिरोधी फसलों के चयन, जल संरक्षण और वर्षा आधारित खेती के तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
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