ओजोन परत और ज्वालामुखीय गैसों का प्रभाव
ओजोन परत और ज्वालामुखीय गैसों के बीच संबंध पर्यावरण विज्ञान में एक महत्वपूर्ण विषय है। ओजोन परत हमारी पृथ्वी के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करती है, जबकि ज्वालामुखीय गैसें वायुमंडल के रासायनिक संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं।
1. ओजोन परत (Ozone Layer)
a. परिभाषा
ओजोन परत, जो पृथ्वी के वायुमंडल में लगभग 10 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्थित है, मुख्य रूप से ओजोन (O₃) गैस से बनी होती है। यह परत सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावायलेट (UV) विकिरण को अवशोषित करती है। UV विकिरण का अत्यधिक संपर्क मानव स्वास्थ्य, वन्यजीवों, और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
b. ओजोन परत का महत्व
- UV विकिरण का अवशोषण: ओजोन परत UV-B विकिरण को अवशोषित करती है, जो त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, और प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी का कारण बन सकता है।
- जलवायु संतुलन: ओजोन परत का तापमान और जलवायु संतुलन में भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। यह वायुमंडल में तापमान स्तर को स्थिर रखने में मदद करती है।
c. ओजोन परत में कमी
- मानव निर्मित रासायनिक यौगिक, जैसे कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs), ओजोन परत को क्षति पहुँचाते हैं। इन यौगिकों का उत्सर्जन ओजोन के अणुओं के साथ रासायनिक प्रतिक्रियाएँ करता है, जिससे ओजोन परत में कमी आती है।
2. ज्वालामुखीय गैसें (Volcanic Gases)
a. ज्वालामुखीय गैसों के प्रकार
- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान निकलने वाली प्रमुख गैस। यह वायुमंडल में सल्फर यौगिकों के रूप में परिवर्तित हो जाती है, जो ओजोन परत को प्रभावित कर सकती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂): यह एक ग्रीनहाउस गैस है, जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है। हालांकि, इसका ओजोन परत पर सीधा प्रभाव कम होता है।
- जलवाष्प (H₂O): यह भी ज्वालामुखीय गतिविधियों के दौरान निकलती है और इसका ओजोन परत पर प्रभाव सीमित होता है।
3. ओजोन परत पर ज्वालामुखीय गैसों का प्रभाव
a. ओजोन में कमी का कारण
- सल्फर डाइऑक्साइड का प्रभाव: जब सल्फर डाइऑक्साइड वायुमंडल में पहुँचती है, तो यह सल्फ्यूरिक एसिड (H₂SO₄) और अन्य सल्फर यौगिकों के रूप में बदल जाती है। ये यौगिक ओजोन के साथ मिलकर रासायनिक प्रतिक्रियाएँ करते हैं, जिससे ओजोन के अणुओं का विघटन हो सकता है।
- अस्थायी प्रभाव: ज्वालामुखीय विस्फोटों के बाद ओजोन परत में अस्थायी कमी देखी जा सकती है। जैसे, माउंट पिनाटूबो के विस्फोट के बाद ओजोन स्तर में कुछ समय के लिए गिरावट आई थी।
b. जलवायु परिवर्तन और ओजोन परत
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण ओजोन परत के स्थिति में परिवर्तन हो सकते हैं। जब वैश्विक तापमान बढ़ता है, तो यह ओजोन परत के लिए हानिकारक हो सकता है।
- प्राकृतिक संतुलन: जलवायु परिवर्तन के साथ ज्वालामुखीय गतिविधियाँ ओजोन परत के संतुलन को प्रभावित कर सकती हैं। जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, यह ओजोन परत की क्षति को बढ़ा सकता है।
4. ज्वालामुखीय विस्फोटों का ओजोन परत पर प्रभाव
a. ऐतिहासिक उदाहरण
- माउंट पिनाटूबो (1991): इस ज्वालामुखी विस्फोट ने वायुमंडल में बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ी, जिससे ओजोन परत में अस्थायी कमी आई। इस विस्फोट के बाद, वैश्विक तापमान में भी अस्थायी गिरावट देखी गई थी।
- क्रकाटौआ (1883): यह विस्फोट भी ओजोन परत पर नकारात्मक प्रभाव डालने के लिए जाना जाता है। इस विस्फोट के बाद, ओजोन स्तर में कमी आई और मौसम में असामान्य परिवर्तन देखे गए।
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