भारत के महान मैदानों पर मानसून का गहरा प्रभाव है, जो यहां की कृषि, पर्यावरण और जनजीवन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। इन मैदानों की जलवायु और कृषि व्यवस्था मानसून पर अत्यधिक निर्भर करती है, जो वर्षा का प्रमुख स्रोत है।
भारत के महान मैदानों में मानसून के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1. वर्षा वितरण और मानसून की अवधि
- भारत के महान मैदानों में दक्षिण-पश्चिम मानसून जून से सितंबर तक सक्रिय रहता है, जो इस क्षेत्र में कुल वार्षिक वर्षा का लगभग 75-90% हिस्सा प्रदान करता है।
- मानसून की वर्षा पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ने के साथ बढ़ती जाती है। उत्तर-पश्चिम के क्षेत्रों (जैसे पंजाब और हरियाणा) में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती है, जबकि पूर्वी क्षेत्रों (जैसे पश्चिम बंगाल और बिहार) में अधिक वर्षा होती है।
- मानसून की यह विषमता यहाँ के जल संसाधनों और फसल पैटर्न को प्रभावित करती है।
2. कृषि पर प्रभाव
- मानसून की वर्षा भारत के महान मैदानों की खेती के लिए जीवनरेखा मानी जाती है। चावल, गन्ना, मक्का, और दलहन जैसी खरीफ फसलें मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करती हैं।
- अच्छी वर्षा होने पर फसलों की पैदावार में वृद्धि होती है, जबकि मानसून में देरी या कमी से फसलें प्रभावित होती हैं, जिससे खाद्यान्न की कमी और किसानों की आय पर असर पड़ता है।
- रबी फसलों के लिए भी मानसून का अप्रत्यक्ष प्रभाव होता है, क्योंकि मानसून के बाद मिलने वाले जल भंडारण से गेहूँ और सरसों जैसी फसलों की सिंचाई होती है।
3. जल संसाधनों पर प्रभाव
- मानसून के दौरान नदियों, झीलों और तालाबों का जल स्तर बढ़ जाता है, जिससे पानी की उपलब्धता बढ़ती है और सिंचाई में मदद मिलती है।
- जलोढ़ मैदानों की नदियाँ मानसून के कारण बाढ़ से भर जाती हैं, जो मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में सहायक होती है।
- वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) और भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) की प्रक्रियाओं में मानसून की वर्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
4. बाढ़ का प्रभाव
- मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा और हिमालय से आने वाली नदियों के प्रवाह से उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के मैदानी इलाकों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है।
- बाढ़ से कृषि भूमि, फसलें, गाँव, और सड़कों का भारी नुकसान होता है। साथ ही यह जनसंख्या के विस्थापन, बीमारी और आर्थिक नुकसान का कारण बनता है।
- हालांकि, बाढ़ से नदियों के किनारे स्थित खादर क्षेत्र में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी जमा होती है, जिससे क्षेत्र की मृदा उर्वरता बढ़ती है।
5. मौसमी चरित्र और तापमान में परिवर्तन
- मानसून के आगमन के साथ तापमान में गिरावट होती है, जिससे भीषण गर्मी से राहत मिलती है। मानसून की वर्षा से मौसम सुहावना हो जाता है।
- मानसून के बाद आने वाली सर्दी भी फसल चक्र में सहायक होती है, खासकर रबी फसलों के लिए।
6. जलवायु पर प्रभाव और पारिस्थितिकी
- मानसून की वर्षा से मैदानों की पारिस्थितिकी संतुलित रहती है, जिससे वनस्पति और जैव विविधता को बनाए रखने में सहायता मिलती है।
- जल उपलब्धता से आर्द्रभूमियाँ और झीलें समृद्ध होती हैं, जो पक्षियों, मछलियों और अन्य जीवों के लिए निवास स्थान प्रदान करती हैं।
7. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
- मानसून से फसल उत्पादन बढ़ने पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और आजीविका में सुधार होता है। अच्छी वर्षा से न केवल किसान लाभान्वित होते हैं, बल्कि कृषि पर आधारित उद्योगों (जैसे खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा, और गन्ना मिल) को भी लाभ होता है।
- मानसून की अनियमितता, जैसे देर से आगमन या कम वर्षा, किसानों की आय को प्रभावित कर सकती है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक संकट उत्पन्न होता है।
8. भूजल स्तर पर प्रभाव
- मानसून की वर्षा मैदानों में भूजल स्तर को रिचार्ज करती है, जिससे पानी की उपलब्धता पूरे वर्ष बनी रहती है।
- वर्षा जल संचयन और सिंचाई परियोजनाएँ मानसून पर निर्भर होती हैं। कम वर्षा से भूजल स्तर में कमी आती है, जिससे सूखा और जल संकट का खतरा बढ़ता है।
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