सूखा एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लंबे समय तक वर्षा की कमी या अनुपस्थिति के कारण जल स्रोतों में पानी का अभाव हो जाता है। यह प्राकृतिक आपदा न केवल पेयजल की कमी का कारण बनती है, बल्कि कृषि, पशुपालन, और दैनिक जीवन पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है। भारत में सूखा विशेष रूप से राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में अधिक देखा जाता है, जहाँ वर्षा असामान्य रूप से कम होती है।
सूखे के प्रकार
सूखा कई प्रकार का होता है, जो इसके कारणों और प्रभावों के आधार पर विभाजित किया जाता है:
1.मौसमीय सूखा (Meteorological Drought): यह तब होता है जब किसी क्षेत्र में औसत वर्षा की तुलना में कम वर्षा होती है। यह सूखे का प्रारंभिक चरण होता है और सबसे पहले मौसम वैज्ञानिकों द्वारा नोट किया जाता है।
2. कृषि सूखा (Agricultural Drought): जब पानी की कमी के कारण मिट्टी की नमी में कमी आ जाती है और फसलों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है, तो कृषि सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। इसका सीधा प्रभाव फसलों और खाद्य उत्पादन पर पड़ता है।
3. जल स्रोत सूखा (Hydrological Drought): जब जल स्रोतों जैसे कि नदियाँ, झीलें और जलाशयों में पानी का स्तर सामान्य से कम हो जाता है, तो इसे जल स्रोत सूखा कहा जाता है। यह स्थिति कृषि और पेयजल आपूर्ति पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
4. सामाजिक-आर्थिक सूखा (Socio-Economic Drought): जब सूखे के कारण समाज और अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जैसे कि खाद्य आपूर्ति की कमी, वस्तुओं की बढ़ती कीमतें और बेरोजगारी, तब इसे सामाजिक-आर्थिक सूखा कहा जाता है।
सूखे के कारण
सूखा एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, लेकिन इसके कई कारक हो सकते हैं:
1.वर्षा की कमी: सूखे का सबसे बड़ा कारण लंबी अवधि तक वर्षा की कमी है। जब मानसून कमजोर होता है या समय पर नहीं आता, तो वर्षा की कमी के कारण सूखा उत्पन्न होता है।
2. जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव हो रहा है, जिससे कुछ क्षेत्रों में अधिक सूखा पड़ने लगा है। तापमान में वृद्धि और बदलते जलवायु चक्र इसका प्रमुख कारण हैं।
3. वनों की कटाई: वनों की कटाई से जलवायु असंतुलित होती है, जिससे वर्षा कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, मिट्टी की नमी भी कम होती है और सूखा बढ़ता है।
4. अत्यधिक जल दोहन: भूजल के अत्यधिक उपयोग और कुएँ, नलकूपों से पानी निकालने के कारण जल स्तर कम होता है, जिससे जल संकट उत्पन्न होता है।
5. अप्रभावी जल प्रबंधन: जल संसाधनों का सही ढंग से प्रबंधन न होने के कारण जल संरक्षण में कमी होती है, जिससे सूखे की समस्या बढ़ जाती है।
सूखे के प्रभाव
सूखा एक गंभीर समस्या है, जिसका प्रभाव व्यापक रूप से समाज और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है:
1. कृषि पर प्रभाव: फसलें पानी की कमी के कारण सूखने लगती हैं, जिससे खाद्य उत्पादन में कमी आती है। इसके कारण खाद्य संकट और किसानों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
2. पेयजल की कमी: जल स्रोतों में पानी का अभाव होने से पेयजल की समस्या बढ़ जाती है। कई स्थानों पर लोगों को दूर-दूर से पानी लाना पड़ता है।
3. पशुधन पर प्रभाव: चारे और पानी की कमी के कारण पशुधन की मृत्यु दर बढ़ जाती है और उनकी उत्पादकता घट जाती है, जिससे पशुपालन उद्योग पर बुरा असर पड़ता है।
4. पर्यावरण पर प्रभाव: सूखे के कारण नदियों, झीलों और जंगलों में जल की कमी होती है, जिससे जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पेड़-पौधों और वन्यजीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
5. आर्थिक प्रभाव: कृषि पर निर्भर अर्थव्यवस्था वाले देशों में सूखे के कारण महंगाई, खाद्य पदार्थों की कमी, और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपने आजीविका के लिए दूसरे स्थानों पर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं।
6. स्वास्थ्य पर प्रभाव: सूखे के कारण पानी की कमी और खराब गुणवत्ता का पानी उपयोग में आता है, जिससे जल जनित बीमारियाँ जैसे कि डायरिया, पेचिश, और पीलिया फैल सकती हैं।
सूखे से निपटने के उपाय
सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
1.जल संरक्षण: वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) जैसे तकनीकों का उपयोग करके पानी का संरक्षण किया जा सकता है। तालाब, कुएँ, और जलाशय जैसे संरचनाओं का निर्माण और पुनर्स्थापन किया जाना चाहिए।
2. फसल चक्र और सूखा प्रतिरोधी फसलें: किसानों को सूखा प्रतिरोधी फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए और फसल चक्र का पालन करना चाहिए, जिससे जल की खपत कम हो सके।
3. वन संरक्षण: वनों का संरक्षण और वृक्षारोपण जलवायु को संतुलित रखने में सहायक होता है और वर्षा में सहायक होता है। इससे जलस्तर को बढ़ावा मिलता है और सूखे की संभावना घटती है।
4. सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली: ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली से पानी की बचत होती है और कृषि क्षेत्र में पानी का सही उपयोग होता है।
5. वैकल्पिक जल स्रोत: समुद्री जल का विलवणीकरण और गंदे पानी का शुद्धीकरण कर उसे उपयोग में लाना भी जल संकट को कम कर सकता है।
6. समुदाय जागरूकता: जल संरक्षण और सूखे के प्रभावों के बारे में जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए ताकि लोग पानी का समझदारी से उपयोग करें और जल संकट की समस्या को कम कर सकें।
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