जल निकासी स्वरूप (Drainage Patterns) विभिन्न भूगर्भीय और जलवायु कारकों के आधार पर विकसित होते हैं। ये स्वरूप यह दर्शाते हैं कि नदियाँ, नाले, और जल धाराएँ एक क्षेत्र में कैसे प्रवाहित होती हैं। जल निकासी स्वरूप के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
1. वृक्षीय जल निकासी पैटर्न (Dendritic Drainage)
- यह सबसे सामान्य रूप है और पेड़ की जड़ों के शाखा पैटर्न जैसा दिखता है।
- वृक्षाकार पैटर्न वहां विकसित होता है जहां नदी का चैनल भूभाग की ढलान का अनुसरण करता है।
- यह पैटर्न उन क्षेत्रों में विकसित होता है जहां धारा के नीचे की चट्टान की कोई विशेष संरचना नहीं होती है और सभी दिशाओं में समान रूप से आसानी से कटाव हो सकता है।
- सहायक नदियाँ बड़ी धाराओं से तीव्र कोण (90° से कम) पर मिलती हैं।
- जैसे उत्तरी मैदान की नदियाँ ; सिंधु , गंगा और ब्रह्मपुत्र ।
2. रेडियल जल निकासी (Radial Drainage)
- रेडियल जल निकासी पैटर्न एक केन्द्रीय ऊंचे बिंदु के चारों ओर विकसित होता है तथा यह ज्वालामुखी जैसे शंक्वाकार आकार की संरचनाओं में सामान्य है।
- जब नदियाँ किसी पहाड़ी से निकलती हैं और सभी दिशाओं में बहती हैं, तो अपवाह पैटर्न को ‘रेडियल’ कहा जाता है।
- उदाहरणार्थ अमरकंटक पर्वतमाला से निकलने वाली नदियाँ; नर्मदा और सोन (गंगा की सहायक नदी)।
3. ट्रेलिस जल निकासी (Trellis Drainage)
- जालीदार जल निकास मोड़दार स्थलाकृति में विकसित होता है , जहां कठोर और मुलायम चट्टानें एक दूसरे के समानांतर स्थित होती हैं।
- नीचे की ओर मुड़ी हुई तहें, जिन्हें सिंकलाइन्स कहा जाता है , घाटियों का निर्माण करती हैं, जिनमें धारा का मुख्य चैनल स्थित होता है।
- ऐसा पैटर्न तब बनता है जब मुख्य नदियों की प्राथमिक सहायक नदियाँ एक दूसरे के समानांतर बहती हैं और द्वितीयक सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर जुड़ती हैं।
- उदाहरण: हिमालय क्षेत्र के ऊपरी भाग में बहने वाली नदियाँ : सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र।
4. समानांतर जल निकासी (Parallel Drainage)
- यह समानांतर, लम्बी भू-आकृतियों वाले क्षेत्रों में विकसित होता है , जहां सतह पर स्पष्ट ढलान होता है।
- सहायक नदियाँ सतह की ढलान के अनुरूप समानांतर रूप में फैलती हैं।
- जैसे पश्चिमी घाट से निकलने वाली नदियाँ ; गोदावरी, कावेरी, कृष्णा और तुंगभद्रा।
5. केन्द्राभिमुख जल निकासी (Centripetal Drainage)
- यह रेडियल के ठीक विपरीत है क्योंकि धाराएं केन्द्रीय अवनमन की ओर बहती हैं।
- वर्ष के गीले भागों के दौरान, ये धाराएं अस्थायी झीलों को पानी उपलब्ध कराती हैं, जो शुष्क अवधि के दौरान वाष्पित हो जाती हैं।
- कभी-कभी, इन सूखी झीलों में नमक के मैदान भी बन जाते हैं, क्योंकि झील के पानी में घुला नमक घोल से बाहर निकल जाता है और पानी के वाष्पित हो जाने पर पीछे रह जाता है।
- उदाहरणार्थ मणिपुर में लोकतक झील ।
6. आयताकार जल निकासी पैटर्न (rectangular drainage pattern) :
आयताकार जल निकासी पैटर्न उन क्षेत्रों में पाया जाता है जहां भ्रंशन हुआ है।
- यह एक मजबूती से जुड़े चट्टानी इलाके पर विकसित होता है।
- जलधाराएँ न्यूनतम प्रतिरोध वाले मार्ग का अनुसरण करती हैं और इस प्रकार उन स्थानों पर संकेन्द्रित होती हैं जहां उजागर चट्टान सबसे कमजोर होती है।
- सहायक नदियाँ तीखे मोड़ बनाती हैं और ऊँचे कोणों पर मुख्य धारा में प्रवेश करती हैं।
- उदाहरण: विंध्य पर्वत श्रृंखला में पाई जाने वाली नदियाँ; चंबल, बेतवा और केन ।
7. अनियमित जल निकासी (Irregular Drainage)
- विवरण: इस प्रकार में धाराओं का कोई निश्चित पैटर्न नहीं होता, और ये विभिन्न दिशाओं में बिखरी होती हैं।
- विशेषता: यह जटिल भूभागों में पाया जाता है जहाँ जल निकासी का कोई स्पष्ट मार्ग नहीं होता।
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