क्रेटेशस प्रणाली (दक्षिण देक्कन प्राचीर):
1. क्रेटेशस प्रणाली (Cretaceous System): क्रेटेशस प्रणाली, मेजोजोइक युग की अंतिम अवधि है, जो लगभग 145 मिलियन वर्ष पहले से लेकर 66 मिलियन वर्ष पहले तक फैली हुई थी। यह भूवैज्ञानिक समय-सीमा पृथ्वी के भूवैज्ञानिक और जैविक विकास के महत्वपूर्ण दौरों में से एक है। इस अवधि में पृथ्वी पर कई भूवैज्ञानिक और जैविक घटनाएँ घटीं, जिनमें डायनासोर का वर्चस्व, महाद्वीपीय विभाजन और प्रमुख उथल-पुथल शामिल हैं।
क्रेटेशस प्रणाली (दक्षिण देक्कन प्राचीर) के अंतर्गत निम्नलिखित प्रमुख विषय आते हैं:
- परिचय और भूवैज्ञानिक काल (Introduction and Geological Age):
- क्रेटेशस प्रणाली का समयकाल लगभग 145 से 66 मिलियन वर्ष पूर्व का है, जो मेसोजोइक युग के अंतर्गत आता है।
- दक्षिण भारत में स्थित देक्कन प्राचीर इस काल की महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक विशेषता है, जिसे क्रेटेशस काल के अंत में बड़े ज्वालामुखीय विस्फोटों से जोड़ा जाता है।
2. दक्कन प्राचीर का निर्माण (Formation of Deccan Traps):
- देक्कन प्राचीर मुख्य रूप से बेसाल्टिक लावा प्रवाह से बनी है, जो विशाल ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण सतह पर आई थी।
- यह क्षेत्र बेसाल्टिक शिलाओं की मोटी परतों से ढका हुआ है, जो लाखों वर्षों तक लगातार लावा प्रवाह के कारण बनीं।
3. दक्कन ज्वालामुखी और उसका प्रभाव (Deccan Volcanism and Its Impact):
- माना जाता है कि देक्कन ट्रैप्स के ज्वालामुखी विस्फोटों ने वैश्विक जलवायु पर गहरा प्रभाव डाला।
- इसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय परिवर्तन हुए, जिनमें तापमान में गिरावट और समुद्र स्तर में बदलाव शामिल हैं।
- यह ज्वालामुखी विस्फोट डायनासोर के विलुप्त होने (Cretaceous-Paleogene Extinction Event) से भी संबंधित माना जाता है।
4. भूगर्भीय संरचना (Geological Structure):
- देक्कन प्राचीर क्षेत्र में बेसाल्ट के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों में इग्नियस और तलछटी शैलें भी पाई जाती हैं।
- इसमें कई लावा प्रवाहों की परतें पाई जाती हैं, जिनकी मोटाई कई सौ मीटर हो सकती है।
5. आर्थिक महत्त्व (Economic Importance):
- दक्कन प्राचीर में प्रचुर मात्रा में खनिज संसाधन पाए जाते हैं:
- बॉक्साइट (Bauxite), जो एल्युमिनियम के उत्पादन में उपयोग होता है।
- लोहे के अयस्क (Iron Ore) और चूना पत्थर (Limestone)।
- यह क्षेत्र कृषि के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि यहां की मिट्टी बेसाल्टिक लावा के अपक्षय से बनी है, जिसे काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी) कहते हैं, जो कपास उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
6. पेलियोज़ूलॉजिकल महत्त्व (Paleontological Importance):
- क्रेटेशस प्रणाली के दौरान, इस क्षेत्र में कई प्रकार के जीवाश्म पाए गए हैं, जिनमें डायनासोर, समुद्री जीव और पौधे शामिल हैं।
- इस काल के अंत में कई प्रजातियों का विलुप्त होना जीवाश्म विज्ञान के अध्ययन का प्रमुख बिंदु है।
7. नदियों का विकास (Development of Rivers):
- क्रेटेशस काल और उसके बाद की भूगर्भीय गतिविधियों ने दक्षिणी भारत की प्रमुख नदियों के मार्ग को प्रभावित किया।
- इस क्षेत्र से निकलने वाली नदियों में गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा, और नर्मदा शामिल हैं, जिनका महत्त्व इस क्षेत्र की कृषि और जल संसाधनों के लिए है।
8. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय प्रभाव (Climate Change and Environmental Impact):
- क्रेटेशस काल के अंत में हुए ज्वालामुखीय विस्फोटों ने कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों को वायुमंडल में छोड़ा, जिससे जलवायु में अचानक बदलाव हुए।
- इसके परिणामस्वरूप ग्लोबल कूलिंग (वैश्विक ठंडक) और कई प्रजातियों का विलुप्त होना देखा गया।
9. दक्कन प्राचीर के पारिस्थितिकीय तंत्र (Ecological System of Deccan Traps):
- इस क्षेत्र में विशेष वनस्पति और जीव पाए जाते हैं, जो लावा प्रवाह और बाद में हुए भूगर्भीय बदलावों के अनुकूल हैं।
- कई स्थानों पर शुष्क पर्णपाती वन, कछारी घास और कृषि योग्य भूमि है।
10. दक्कन प्राचीर का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व (Cultural and Historical Significance of Deccan Traps):
- दक्कन प्राचीर के क्षेत्रों में कई प्राचीन सभ्यताएँ बसी थीं, जो इस क्षेत्र की भौगोलिक विशेषताओं के अनुकूल थीं।
- यहाँ के पठारी क्षेत्र में किले, ऐतिहासिक नगर और जलाशय मिले हैं, जो इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
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