हिमालय की जलवायु विशेषताएँ
हिमालय क्षेत्र की जलवायु विशेषताएँ इसकी भौगोलिक स्थिति, ऊँचाई और विविधता के कारण अत्यधिक विविध और जटिल हैं। यहाँ पर हिमालय की जलवायु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन किया गया है:
1. ऊँचाई के अनुसार जलवायु विभाजन
- निचले क्षेत्र (600-1,500 मीटर):
- जलवायु: उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय
- विशेषताएँ: गर्म और आर्द्र जलवायु, जिसमें मानसून के दौरान अधिक वर्षा होती है। यहाँ विभिन्न प्रकार के उष्णकटिबंधीय वन पाए जाते हैं।
- मध्य क्षेत्र (1,500-3,500 मीटर):
- जलवायु: शीतोष्ण जलवायु
- विशेषताएँ: यहाँ तापमान ठंडा होता है और वर्षा मुख्यतः मानसून के मौसम में होती है। इस क्षेत्र में मिश्रित वन और पाइन के जंगल पाए जाते हैं।
- ऊँचे क्षेत्र (3,500 मीटर से ऊपर):
- जलवायु: अल्पाइन जलवायु
- विशेषताएँ: यहाँ का तापमान बहुत ठंडा होता है और यहाँ बर्फबारी होती है। यह क्षेत्र उच्च पर्वतीय वनस्पति और घास के मैदानों के लिए प्रसिद्ध है।
2. मानसून प्रभाव
- वर्षा का स्रोत: हिमालय क्षेत्र में मानसून के दौरान (जून से सितंबर) भारी वर्षा होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून से आती है। ये वर्षाएँ मुख्यतः दक्षिणी ढलानों पर होती हैं।
- वर्षा वितरण: हिमालय के उत्तरी ढलानों पर वर्षा कम होती है, जबकि दक्षिणी ढलानों पर अधिक होती है। इसका परिणाम हिमालय के विभिन्न भागों में जलवायु का असमान वितरण है।
3. तापमान की विविधता
- तापमान का अंतर: तापमान क्षेत्र के अनुसार भिन्न होता है।
- गर्मियों में: निचले क्षेत्रों में तापमान 30-40 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है।
- सर्दियों में: ऊँचाई के साथ तापमान में गिरावट होती है, और ऊँचे क्षेत्रों में तापमान -10 डिग्री सेल्सियस या उससे भी कम हो सकता है।
4. बर्फबारी
- बर्फबारी का समय: हिमालय के ऊँचे क्षेत्रों में सर्दियों में बर्फबारी होती है, जो दिसंबर से मार्च तक चलती है।
- ग्लेशियर: हिमालय के ग्लेशियर जैसे सतोपंथ, गंगोत्री, और नंदा देवी जलस्रोतों का प्रमुख स्रोत हैं और जलवायु संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
5. जलवायु परिवर्तन
- परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय में ग्लेशियरों की पिघलने की गति बढ़ गई है, जिससे जल स्तर में वृद्धि और बाढ़ की संभावना बढ़ रही है।
- पारिस्थितिकी पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पति, और जीव-जंतु पर भी प्रभाव डालता है।
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