जैवकोष अभ्यारण्य (Biosphere Reserve)
जैवकोष अभ्यारण्य या बायोस्फीयर रिजर्व वे संरक्षित क्षेत्र हैं, जिन्हें प्राकृतिक पारिस्थितिकीय तंत्र को संरक्षित रखने, जैव विविधता के संरक्षण, अनुसंधान और स्थानीय समुदायों के समन्वय के लिए स्थापित किया गया है। जैवकोष अभ्यारण्य का मुख्य उद्देश्य जीवों की विभिन्न प्रजातियों का संरक्षण करना और उनके प्राकृतिक आवास को बचाए रखना है। ये क्षेत्र वनस्पति, जीव-जंतु और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करते हैं।
जैवकोष अभ्यारण्य का उद्देश्य
- जैव विविधता का संरक्षण:
- जैवकोष अभ्यारण्य का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रजातियों की जैव विविधता को संरक्षित करना है। इसके अंतर्गत विलुप्तप्राय और संकटग्रस्त प्रजातियों को विशेष सुरक्षा दी जाती है।
- पर्यावरणीय शोध और शिक्षा:
- जैवकोष अभ्यारण्य अनुसंधान और पर्यावरणीय शिक्षा के लिए आदर्श स्थान होते हैं। यहाँ पर वैज्ञानिक अध्ययन, शोध कार्य और पर्यावरणीय जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
- स्थानीय समुदाय का विकास:
- जैवकोष अभ्यारण्य के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में स्थानीय समुदायों के विकास पर भी ध्यान दिया जाता है। ये समुदाय पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा होते हैं, और उनके पारंपरिक ज्ञान को संरक्षण के कार्य में शामिल किया जाता है।
- सतत विकास:
- जैवकोष अभ्यारण्य में प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जाता है, ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे और प्राकृतिक संसाधनों की कमी न हो।
जैवकोष अभ्यारण्य की संरचना
जैवकोष अभ्यारण्य में मुख्य रूप से तीन क्षेत्र होते हैं:
- कोर क्षेत्र (Core Zone):
- यह क्षेत्र पूरी तरह से संरक्षित होता है और मानव गतिविधियों से मुक्त रहता है। यहाँ केवल अनुसंधान कार्य की अनुमति होती है, लेकिन किसी प्रकार की वाणिज्यिक या कृषि गतिविधियों की अनुमति नहीं होती है।
- बफर क्षेत्र (Buffer Zone):
- यह कोर क्षेत्र के चारों ओर स्थित होता है, जहाँ अनुसंधान, शिक्षा, और पर्यावरणीय गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं। इस क्षेत्र में पर्यावरणीय नियमों का पालन किया जाता है और सीमित मानव गतिविधियाँ जैसे कि पर्यावरणीय पर्यटन की अनुमति होती है।
- संक्रमण क्षेत्र (Transition Zone):
- यह जैवकोष अभ्यारण्य का बाहरी क्षेत्र है, जहाँ सतत विकास की गतिविधियाँ की जाती हैं। यहाँ पर स्थानीय समुदाय अपनी रोज़मर्रा की गतिविधियों में संलग्न होते हैं, जैसे कि कृषि, वानिकी, और मछली पालन, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाता है कि इन गतिविधियों से पर्यावरण को कोई हानि न हो।
भारत के प्रमुख जैवकोष अभ्यारण्य
भारत में विभिन्न जैवकोष अभ्यारण्य हैं जो जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में सहायक हैं। भारत में UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त कुछ प्रमुख जैवकोष अभ्यारण्य निम्नलिखित हैं:
- सुंदरबन जैवकोष अभ्यारण्य (पश्चिम बंगाल):
- यह दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन है और यहाँ रॉयल बंगाल टाइगर, मगरमच्छ, और विभिन्न समुद्री प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- नीलगिरि जैवकोष अभ्यारण्य (तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल):
- यह भारत का पहला जैवकोष अभ्यारण्य है और यहाँ हाथी, बाघ, और विभिन्न पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- नंदा देवी जैवकोष अभ्यारण्य (उत्तराखंड):
- यह हिमालयी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बर्फीले तेंदुए, हिमालयी भालू और विभिन्न औषधीय पौधे पाए जाते हैं।
- पचमढ़ी जैवकोष अभ्यारण्य (मध्य प्रदेश):
- यह क्षेत्र जैव विविधता के साथ-साथ मानव सभ्यता के पुरातात्विक अवशेषों के लिए भी प्रसिद्ध है।
- अगस्त्यमलाई जैवकोष अभ्यारण्य (तमिलनाडु और केरल):
- यह क्षेत्र पश्चिमी घाट में स्थित है और यहाँ विभिन्न दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजातियाँ पाई जाती हैं, साथ ही यहाँ औषधीय पौधों की प्रचुरता भी है।
- मन्नार की खाड़ी जैवकोष अभ्यारण्य (तमिलनाडु):
- यह समुद्री जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है और इसमें प्रवाल भित्तियाँ, डुगोंग, और अन्य समुद्री जीव पाए जाते हैं।
जैवकोष अभ्यारण्य और वन्यजीव अभयारण्य में अंतर
- जैवकोष अभ्यारण्य का उद्देश्य जैव विविधता का संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देना है, जबकि वन्यजीव अभयारण्य का मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास में संरक्षित करना है।
- जैवकोष अभ्यारण्य में तीन क्षेत्र (कोर, बफर, और संक्रमण) होते हैं, जबकि वन्यजीव अभयारण्य में ऐसी संरचना नहीं होती है।
- जैवकोष अभ्यारण्य में स्थानीय समुदायों के विकास और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जबकि वन्यजीव अभयारण्य में ऐसा नहीं होता है।
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