प्रायद्वीपीय भारत की पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला जैव विविधता में समृद्ध है और इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है। यह क्षेत्र अपनी पारिस्थितिकी, प्राकृतिक सौंदर्य, और कई स्थानिक (endemic) प्रजातियों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। पश्चिमी घाट लगभग 1,600 किलोमीटर तक फैला हुआ है और यह महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, केरल, और तमिलनाडु राज्यों से होकर गुजरता है। इस क्षेत्र की जैव विविधता का प्रभाव न केवल यहाँ की पारिस्थितिकी पर है, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
1. वनस्पति (Flora)
- पश्चिमी घाट में लगभग 7,402 पुष्पीय पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कई केवल इसी क्षेत्र में पाई जाती हैं।
- यहाँ के प्रमुख वनस्पतियों में सदाबहार वन, पर्णपाती वन, और शुष्क पर्णपाती वन शामिल हैं।
- यहाँ पाए जाने वाले औषधीय पौधों का भी विशेष महत्व है, जो आयुर्वेदिक चिकित्सा और पारंपरिक उपचारों में उपयोग होते हैं।
2. जीव-जंतु (Fauna)
- स्तनधारी: भारतीय हाथी, बाघ, गौर, भारतीय बाइसन, और कई दुर्लभ स्तनधारी प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं। नीलगिरी तहर और लायन-टेल्ड मकाक जैसी प्रजातियाँ स्थानिक हैं।
- पक्षी: लगभग 500 पक्षी प्रजातियाँ, जैसे मालाबार ग्रे हॉर्नबिल, नीलगिरी फ्लाईकैचर, और ग्रेट पाइड हॉर्नबिल यहाँ निवास करते हैं।
- उभयचर और सरीसृप: यहाँ कई दुर्लभ उभयचर और सरीसृप प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें किंग कोबरा और नीलगिरी वुड्स मेंढक शामिल हैं।
- कीट और तितलियाँ: तितलियों की कई सुंदर और दुर्लभ प्रजातियाँ, जैसे ब्लू मॉरमॉन और दक्षिणी बर्डविंग यहाँ पाई जाती हैं।
3. महत्त्वपूर्ण भूमिका और संरक्षण
- पश्चिमी घाट मानसून के मौसम में भारी वर्षा प्राप्त करते हैं, जिससे भारत की कई नदियाँ प्रवाहित होती हैं। इन नदियों से कृषि, पेयजल, और बिजली उत्पादन में मदद मिलती है।
- यह जैव विविधता का क्षेत्र न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के पारिस्थितिक संतुलन में सहायक है, बल्कि इसके जलवायु पर सकारात्मक प्रभाव भी डालता है।
- संरक्षण के लिए यहाँ कई राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य स्थापित किए गए हैं, जैसे पेरियार, बांदीपुर, और साइलेंट वैली नेशनल पार्क, जो जैव विविधता के संरक्षण में मदद करते हैं।
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