ज्वालामुखी विस्फोट से वायुमंडलीय प्रदूषण और विषैली गैसों का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। जब ज्वालामुखी विस्फोट होता है, तो बड़ी मात्रा में राख, धूल, और कई प्रकार की विषैली गैसें वायुमंडल में फैल जाती हैं। ये तत्व स्थानीय और वैश्विक स्तर पर प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन पर भी प्रभाव डालते हैं।
वायुमंडलीय प्रदूषण के कारण
- राख और धूल के कण:
- ज्वालामुखीय विस्फोट के दौरान बहुत सी राख और धूल वायुमंडल में छा जाती है। यह राख महीन कणों के रूप में कई किलोमीटर ऊँचाई तक फैल सकती है और सूरज की किरणों को अवरुद्ध करती है, जिससे तापमान में कमी आ सकती है।
- इन कणों का न केवल स्थानीय वायुमंडल बल्कि वैश्विक जलवायु पर भी प्रभाव पड़ता है। ये महीनों या वर्षों तक वायुमंडल में बने रह सकते हैं, जिससे सूर्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने की क्षमता बढ़ती है और ठंडा प्रभाव उत्पन्न होता है।
- विषैली गैसों का उत्सर्जन:
- सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂): ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलती है, जो वायुमंडल में जाकर सल्फेट एयरोसोल बनाती है। ये एयरोसोल सूर्य की किरणों को परावर्तित करते हैं, जिससे वैश्विक तापमान में अस्थायी कमी हो सकती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂): यह एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है, जो तापमान बढ़ाने में सहायक होती है। ज्वालामुखी से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन में योगदान देती है।
- हाइड्रोजन सल्फाइड (H₂S): यह एक विषैली और तीव्र गंध वाली गैस है। अधिक मात्रा में यह गैस मानव स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकती है और इसका साँस लेना घातक साबित हो सकता है।
- हाइड्रोजन फ्लोराइड (HF): यह गैस ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान निकलती है और विषाक्त होती है। इसके संपर्क में आने से फसलें, जल स्रोत और जानवर प्रभावित हो सकते हैं।
- ओजोन परत पर प्रभाव:
- ज्वालामुखीय गैसों में सल्फर यौगिक होते हैं, जो वायुमंडल में जाकर रासायनिक प्रतिक्रियाएँ करते हैं और ओजोन परत को क्षति पहुँचा सकते हैं। ओजोन परत के क्षीण होने से पृथ्वी पर हानिकारक पराबैंगनी किरणों का प्रभाव बढ़ सकता है।
- अम्लीय वर्षा:
- ज्वालामुखीय गैसें, जैसे सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन फ्लोराइड, वायुमंडल में जल वाष्प के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक और हाइड्रोक्लोरिक एसिड का निर्माण करती हैं, जिससे अम्लीय वर्षा होती है।
- अम्लीय वर्षा से मृदा, वनस्पति, जल स्रोतों, और इमारतों को भारी क्षति पहुँचती है। यह मृदा की उर्वरता को कम कर सकती है और जल स्रोतों को विषैला बना सकती है, जिससे जलीय जीवन को नुकसान पहुँचता है।
- जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव:
- ज्वालामुखीय विस्फोट से सल्फेट एयरोसोल्स का निर्माण होता है, जो वायुमंडल में जाकर सूर्य की किरणों को परावर्तित करते हैं। इससे वैश्विक तापमान में अस्थायी कमी आ सकती है, जिसे “ज्वालामुखीय शीतलन प्रभाव” कहा जाता है।
- उदाहरण के लिए, 1991 में माउंट पिनातुबो के विस्फोट ने वैश्विक तापमान में लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस तक की कमी लाई थी।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
- सांस की समस्याएं: राख और सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसें श्वसन तंत्र को प्रभावित करती हैं, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और अन्य श्वसन समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- त्वचा और आँखों में जलन: अम्लीय वर्षा और हाइड्रोजन फ्लोराइड जैसी गैसें त्वचा और आँखों में जलन पैदा कर सकती हैं।
- दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं: वायुमंडल में विषैली गैसों की उपस्थिति से कैंसर, हृदय रोग और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
Leave a Reply