बिहार की मिट्टी की विविधता राज्य की कृषि और पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं, जिनमें गंगा के मैदानों की उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी, पहाड़ी क्षेत्रों की लाल मिट्टी, और दक्षिणी बिहार की काली मिट्टी शामिल हैं। प्रत्येक प्रकार की मिट्टी की अपनी विशेषताएँ और कृषि उपज के लिए उपयुक्तताएँ होती हैं।
बिहार की मिट्टी के प्रमुख प्रकार
1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)
- स्थिति: यह मिट्टी गंगा नदी के मैदानी क्षेत्रों में पाई जाती है और बिहार का अधिकांश भाग इस मिट्टी से ढका हुआ है।
- विशेषताएँ:
- उपजाऊपन: यह मिट्टी अत्यंत उपजाऊ होती है और इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटाश की पर्याप्त मात्रा होती है।
- संरचना: यह मिट्टी महीन कणों से बनी होती है और इसमें अच्छी जलधारण क्षमता होती है।
- उपयोग:
- फसलें: जलोढ़ मिट्टी में धान, गेहूं, मक्का, गन्ना, दलहन और तिलहन जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
2. लाल मिट्टी (Red Soil)
- स्थिति: यह मिट्टी मुख्यतः बिहार के दक्षिणी भागों में पाई जाती है, जैसे गया, नवादा, औरंगाबाद, और झारखंड की सीमाओं के पास।
- विशेषताएँ:
- रंग: इस मिट्टी का रंग लाल होता है, जो इसमें आयरन ऑक्साइड की उच्च मात्रा के कारण होता है।
- संरचना: यह मिट्टी रेतीली से दोमट होती है और इसमें जलधारण क्षमता मध्यम होती है।
- उपयोग:
- फसलें: लाल मिट्टी में दलहन, तिलहन, धान, आलू, और सब्जियों की खेती की जाती है।
3. काली मिट्टी (Black Soil)
- स्थिति: यह मिट्टी मुख्यतः दक्षिणी बिहार के कुछ हिस्सों में पाई जाती है।
- विशेषताएँ:
- रंग: इस मिट्टी का रंग काला होता है, जो इसमें कार्बनिक पदार्थों की उच्च मात्रा के कारण होता है।
- संरचना: यह मिट्टी गहरी, भारी और अच्छी जलधारण क्षमता वाली होती है।
- उपयोग:
- फसलें: काली मिट्टी में कपास, तंबाकू, मूँगफली, और अन्य तिलहन फसलें उगाई जाती हैं।
4. तराई मिट्टी
- तराई मिट्टी का विस्तार पर्वतपदीय मिट्टी के उत्तरी भाग में हुआ है।
- इसका विस्तार प० चम्पारण से किशनगंज तक हुआ है।
- यह इसकी चौड़ाई 5 से 7 किमी० है। इसमें पर्याप्त मात्रा में नमी और हयूमस पायी जाती है।
- इसका रंग भूरा पीला, प्रकृति अम्लीय होती है।
- अत्यधिक नमी वाले क्षेत्र में यहाँ भी दलदली मिट्टी का विकास हुआ है।
- यह मिट्टी गन्ना, धान और जूट कृषि के लिए प्रसिद्ध है।
5. बलसुन्दरी मिट्टी
- यह बाँगड़ मिट्टी का ही एक विशिष्ट रूप है जिसमें बालू और क्ले की मात्रा अधिक होती है।
- इसका विस्तार सारण, गोपालगंज, सहरसा दरभंगा, मुजफ्फरपुर जैसे जिलों में देखा जा सकता है।
- सारण और गोपालगंज में कहीं-2 बलसुन्दरी मिट्टी के ऊपर लवणीय मिट्टी का विकास हुआ है।
- बलसुन्दरी मिट्टी मक्का, गन्ना, गेहूँ, आम, लीची इत्यादि की खेती के लिए प्रसिद्ध है।
6. बल्थर या लाल-पीली मिट्टी
- इस मिट्टी का निर्माण छोटानागपुर से निकलने वाली नदियों के द्वारा लायी गयी मलवा के निक्षेपण से हुआ है।
- इसका रंग पीला या लाल होता है।
- यह मिट्टी कैमर पठार, राजमहल की पहाड़ी में पायी जाती है।
- इसमें जल-संग्रह करने की क्षमता कम होती है।
- लेकिन लोहे की मात्रा पर्याप्त होती है।
- यह सामान्यतः मोटे अनाजों के लिए प्रसिद्ध है।
7. बाँगड़ मिट्टी
इसे भांगर भा पुरानी जलोढ़ मिट्टी भी कहते हैं।
इस मिट्टी का विकास तराई मिट्टी के दक्षिण में एक पट्टी के रूप में हुआ है।
इसका सर्वाधिक विस्तार पूर्णिया और सहरसा के कोसी नदी घाटी क्षेत्र में हुआ है और ज्यों-2 पश्चिम की ओर जाते हैं त्यों-2 इसकी चौड़ाई कम होते जाती है।
इस मिट्टी में चुने की मात्रा अधिक होने के कारण क्षारीय होती है।
थोड़ा-बहुत बाँगड़ मिट्टी का विस्तार मुंगेर, भागलपुर, कैमूर और बक्सर जिला में भी देखा जा सकता है।
इन जिलों में इस मिट्टी को “केवाल” मिट्टी कहा जाता है।
इसका रंग गाढ़ा-भूरा और काला होती है।
सिंचाई की सुविधा वाले प्रदेश में धान, गेहूँ की खेती की जाती है और असिंचित प्रदेशों में तेलहन और दलहन की खेती की जाती
निष्कर्ष
बिहार की मिट्टी की विविधता राज्य की कृषि प्रणाली और फसल उत्पादन को व्यापक रूप से प्रभावित करती है। राज्य में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ विभिन्न फसलों के लिए उपयुक्त होती हैं और इसलिए किसानों को इनकी विशेषताओं को समझकर फसल उगानी चाहिए।
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