बिहार प्रांत के भागपलुर जिले में स्थित विक्रमशिला एक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति का शिक्षा केन्द्र रहा है।
विक्रमशिला के महाविहार की स्थापना नरेश धर्मपाल (775-800ई.) ने करवायी थी।
यहाँ 160 विहार तथा व्याख्यान के लिये अनेक कक्ष बने हुये थे। धर्मपाल के उत्तराधिकारी तेरहवीं शताब्दी तक इसे राजकीय संरक्षण प्रदान करते रहे।
परिणामस्वरूप विक्रमशिला लगभग चार शताब्दियों से भी अधिक समय तक अंतरराष्ट्रीय ख्याति का विश्वविद्यालय बना रहा।
सातवीं शताब्दी में भारत भ्रमण पर आए मशहूर चीनी यात्री ह्वेन सांग के यात्रा-वृतांत में विक्रमशिला विश्वविद्यालय का कोई जिक्र नहीं मिलता है, जो यह बताता है कि उस समय तक यह महाविहार वजूद में नहीं आया था
सौ एकड़ से ज्यादा भू-भाग में स्थित इस विश्वविद्यालय की खुदाई की शुरुआत साठ के दशक में पटना विश्वविद्यालय द्वारा की गई थी,
इसे 1978 से 1982 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने पूरा किया.
विक्रमशिला विश्वविद्यालय में अध्यात्म, दर्शन, तंत्रविद्या, व्याकरण, तत्त्व-ज्ञान, तर्कशास्त्र आदि की पढ़ाई होती थी.
यहां पढ़ने आने वाले हर किसी को विश्वविद्यालय के द्वार पर ही कठिन प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता था.
यहां एक साथ करीब एक हज़ार विद्यार्थी पढ़ते थे और सौ प्राध्यापक रहा करते थे.
इस विश्वविद्यालय के प्रबंधन द्वारा ही बिहार की एक दूसरे मशहूर नालंदा विश्वविद्यालय के काम-काज को भी नियंत्रित किया जाता था.
दोनों के शिक्षक एक-दूसरे के यहां जाकर पढ़ाया भी करते थे.
मुस्लिम आक्रमण
1203 ई. में मुसलमानों ने जब बिहार पर आक्रमण किया, तब नालन्दा की भाँति विक्रमशिला को भी उन्होंने पूर्णरूपेण नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। बख़्तियार ख़िलजी ने 1202-1203 ई. में विक्रमशिला महाविहार को नष्ट कर दिया था। यहाँ के विशाल पुस्तकालय को आग के हवाले कर दिया था, उस समय यहाँ पर 160 विहार थे जहां विद्यार्थी अध्ययनरतथे। इस प्रकार यह महान विश्वविद्यालय, जो उस समय एशिया भर में विख्यात था, खण्डहरों के रूप में परिणत हो गया।
खुदाई कार्य
विक्रमशिला के बारे में सबसे पहले राहुल सांकृत्यायन ने सुल्तानगंज के निकट होने का अंदेशा प्रकट किया था।उसका मुख्य कारण था कि अंग्रेज़ों के जमाने में सुल्तानगंज के निकट एक गांव में बुद्ध की प्रतिमा मिली थी। बावजूद उसके अंग्रेज़ों ने विक्रमशिला के बारे में पता लगाने का प्रयास नहीं किया। इसके चलते विक्रमशिला की खुदाई पुरातत्त्व विभाग द्वारा 1986 के आसपास शुरू हुई।
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