परिचय
पटना, बिहार की राजधानी, सदियों से अपने हथकरघा उद्योग के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहाँ का हस्तशिल्प 17वीं शताब्दी का है जब पटना मगध साम्राज्य का हिस्सा था।
इतिहास
- मुगल काल में पटना का हथकरघा उद्योग फल-फूला।
- उस समय, पटना से हस्तशिल्प उत्पाद पूरे भारत और विदेशों में निर्यात किए जाते थे।
- 18वीं शताब्दी में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पटना के हस्तशिल्प उद्योग पर नियंत्रण कर लिया।
- कंपनी ने हस्तशिल्प उत्पादों के उत्पादन और व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया, जिससे स्थानीय कारीगरों का नुकसान हुआ।
- 19वीं शताब्दी में, औद्योगिक क्रांति के आगमन के साथ, पटना के हस्तशिल्प उद्योग का पतन शुरू हो गया।
- सस्ते कारखाने के बने उत्पादों ने धीरे-धीरे हाथ से बने हस्तशिल्प उत्पादों की जगह ले ली।
वर्तमान स्थिति
- आज, पटना का हस्तशिल्प उद्योग अपने पूर्व गौरव को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है।
- कुछ हजार कारीगर अभी भी हस्तशिल्प उत्पाद बनाते हैं, लेकिन उनकी संख्या घट रही है।
- हस्तशिल्प उद्योग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जैसे कच्चे माल की उच्च लागत, कुशल कारीगरों की कमी और बाजार में प्रतिस्पर्धा।
पटना के हस्तशिल्प उत्पाद
पटना विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प उत्पादों के लिए जाना जाता है, जिनमें शामिल हैं:
- सिल्क साड़ियां: पटना सिल्क साड़ियां अपनी नम्र चमक, मुलायम बनावट और टिकाऊपन के लिए प्रसिद्ध हैं।
- बलुई पत्थर की मूर्तियां: पटना अपनी खूबसूरत बलुई पत्थर की मूर्तियों के लिए भी जाना जाता है।
- पेंटिंग: पटना मधुबनी पेंटिंग और पटुआ पेंटिंग जैसी पारंपरिक पेंटिंग शैलियों के लिए प्रसिद्ध है।
- धातु के बर्तन: पटना पीतल, तांबे और कांसे से बने धातु के बर्तनों के लिए भी जाना जाता है।
- लकड़ी के खिलौने: पटना लकड़ी के खिलौनों के लिए भी प्रसिद्ध है जो अपनी जटिल नक्काशी और रंगों के लिए जाने जाते हैं।
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