बिहार की बारिश और मानसून पर विचार करते समय निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखा जा सकता है:
1. मानसून की अवधि
- प्रवेश: मानसून आमतौर पर जून के पहले सप्ताह में बिहार में प्रवेश करता है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की यह लहर राज्य के विभिन्न हिस्सों में समय-समय पर पहुँचती है।
- अवधि: मानसून की पूरी अवधि आमतौर पर जुलाई से सितंबर तक रहती है, लेकिन कभी-कभी अक्टूबर तक भी बारिश होती है।
2. बारिश की मात्रा
- औसत वर्षा: बिहार में औसतन 1000-1200 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, लेकिन यह मात्रा विभिन्न जिलों में भिन्न हो सकती है।
- भौगोलिक भिन्नताएँ: बिहार के दक्षिणी हिस्से, विशेषकर चंपारण और किशनगंज में अधिक वर्षा होती है, जबकि उत्तर-पश्चिमी बिहार और कुछ अन्य क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा कम हो सकती है।
3. मानसून का प्रभाव
- कृषि: मानसून की बारिश बिहार की कृषि पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। प्रमुख फसलें जैसे कि धान, गेंहू, और दलहन मानसून की बारिश पर निर्भर करती हैं।
- जलभराव और बाढ़: भारी बारिश के कारण बिहार के कई इलाकों में जलभराव और बाढ़ की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। विशेषकर गंगा और उसके सहायक नदियों के किनारे के क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा अधिक रहता है।
4. मानसून के बदलाव और समस्याएँ
- असामान्य मानसून: जलवायु परिवर्तन के कारण, मानसून के पैटर्न में असामान्यता देखी जा रही है। कभी-कभी बारिश अत्यधिक होती है, जिससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है, और कभी-कभी कम बारिश के कारण सूखा पड़ता है।
- पूर्वानुमान और प्रबंधन: भारतीय मौसम विभाग और अन्य जलवायु शोध संस्थान मानसून पूर्वानुमान प्रदान करते हैं, जो बाढ़ और सूखा प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
5. मौसम विज्ञान संबंधी डेटा स्रोत
- भारतीय मौसम विभाग (IMD): मानसून की भविष्यवाणियाँ और वर्षा संबंधी डेटा प्रदान करता है।
- स्थानीय जलवायु अध्ययन: विश्वविद्यालय और शोध संस्थान मानसून के प्रभाव और बदलते पैटर्न पर शोध करते हैं।
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