- पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution- PRI) भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन (Rural Local Self-government) की एक प्रणाली है।
- स्थानीय स्वशासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन।
- ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना करने के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान को संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया
बिहार में पंचायती राज व्यवस्था के तीन स्तर:
- ग्राम पंचायत: यह ग्रामीण स्तर पर सबसे निचली इकाई है। इसमें गाँव के निवासियों द्वारा सीधे चुने गए सदस्य होते हैं। ग्राम पंचायत शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल आपूर्ति, कृषि, पशुपालन, लघु उद्योग, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तिकरण, करों का आकलन और वसूली, और विकास योजनाओं के कार्यान्वयन जैसी बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं का प्रबंधन करती है।
- पंचायत समिति: यह एक मध्यवर्ती स्तर की इकाई है जो कई ग्राम पंचायतों को समूहों में शामिल करती है। पंचायत समिति शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और ग्रामीण विकास से संबंधित योजनाओं का कार्यान्वयन करती है। यह ग्राम पंचायतों को वित्तीय और तकनीकी सहायता भी प्रदान करती है।
- जिला परिषद: यह जिला स्तर पर सबसे ऊँची इकाई है। इसमें पंचायत समितियों के चुने हुए प्रतिनिधि शामिल होते हैं। जिला परिषद जिला स्तरीय योजनाओं का निर्माण और कार्यान्वयन करती है, विकास कार्यक्रमों की निगरानी और मूल्यांकन करती है, जिला स्तरीय संस्थानों का प्रबंधन करती है, ग्राम पंचायतों और पंचायत समितियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, नीतियां बनाती है, और जिला स्तरीय विकास को बढ़ावा देती है।
बिहार में पंचायती राज संस्थाओं के महत्व:
- ग्रामीण विकास: पंचायती राज संस्थाएं ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पेयजल आपूर्ति, सड़कें, बिजली, और अन्य बुनियादी सुविधाओं को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- ग्रामीण समुदायों का सशक्तिकरण: पंचायती राज व्यवस्था ग्रामीण समुदायों को अपनी जरूरतों और प्राथमिकताओं के अनुसार विकास कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में सशक्त बनाती है।
- स्थानीय जवाबदेही: पंचायती राज संस्थाएं ग्रामीण जनता के प्रति जवाबदेह होती हैं, जिससे पारदर्शिता और सुशासन में सुधार होता है।
- ग्रामीण गरीबी का उन्मूलन: पंचायती राज संस्थाएं कृषि, पशुपालन, लघु उद्योग, और अन्य आय-सृजन गतिविधियों को बढ़ावा देकर ग्रामीण गरीबी को कम करने में मदद करती हैं।
- महिला सशक्तिकरण: पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण सुनिश्चित किया गया है, जो उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने और ग्रामीण विकास में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है।
बिहार में पंचायती राज संस्थाओं के सामने चुनौतियाँ:
- वित्तीय संसाधनों की कमी: पंचायती राज संस्थाओं को अक्सर पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं मिलते हैं, जिससे उनकी क्षमताओं और प्रदर्शन को प्रभावित होता है।
- क्षमता निर्माण की कमी: पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों और कर्मचारियों को अक्सर आवश्यक कौशल और प्रशिक्षण की कमी होती है, जिससे उनके कामकाज की प्रभावशीलता बाधित होती है।
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