संविधान के अनुच्छेद-280 के तहत हर पांचवें वर्ष वित्त आयोग का गठन किया जाता है। इसका काम केंद्र और राज्यों के बीच केंद्रीय करों के बंटवारे का फार्मूला तैयार करने के साथ राज्य के कोष को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों के बारे में सलाह देने का होता है।
वित्त आयोग के कार्य:
- केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच राजस्व के बंटवारे की सिफारिश करना।
- राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों की जांच करना और उनमें सुधार के लिए सिफारिशें करना।
- स्थानीय निकायों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए सिद्धांतों की सिफारिश करना।
- केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की ऋण लेने की क्षमता का आकलन करना।
- अन्य वित्तीय मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
बिहार सरकार के पास अपना वित्त आयोग नहीं है। हालांकि, राज्य वित्तीय आयोग नामक एक संस्था है जो राज्य सरकार को वित्तीय मामलों पर सलाह देती है। यह संवैधानिक निकाय नहीं है और इसकी स्थापना राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
राज्य वित्तीय आयोग के कार्य:
- राज्य सरकार को राजस्व जुटाने और खर्च करने के तरीकों पर सलाह देना।
- राज्य सरकार के ऋण प्रबंधन पर सलाह देना।
- राज्य सरकार के वित्तीय संसाधनों का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग करने के तरीकों की सिफारिश करना।
- अन्य वित्तीय मामलों पर राज्य सरकार को सलाह देना।
वित्त आयोग का महत्व:
- वित्तीय संतुलन और समानता (Financial Balance and Equality):
- आयोग का मुख्य उद्देश्य राज्य सरकार और स्थानीय स्वशासन इकाइयों के बीच वित्तीय संतुलन और समानता सुनिश्चित करना है।
- यह विभिन्न इकाइयों की वित्तीय आवश्यकताओं और उनकी क्षमता का विश्लेषण करता है।
- वित्तीय स्वायत्तता (Financial Autonomy):
- आयोग स्थानीय स्वशासन इकाइयों की वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा देता है।
- यह इकाइयों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न वित्तीय साधनों और नीतियों की सिफारिश करता है।
- वित्तीय दक्षता (Financial Efficiency):
- आयोग की सिफारिशें और नीतियाँ वित्तीय संसाधनों के कुशल और प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करती हैं।
- यह वित्तीय प्रबंधन और प्रशासन में सुधार लाने में सहायक होती हैं।
- समग्र विकास (Overall Development):
- आयोग का कामकाज राज्य के समग्र विकास और समृद्धि को बढ़ावा देता है।
- यह विभिन्न स्थानीय स्वशासन इकाइयों के विकास और सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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