बिहार में जिला परिषद (District Council) : भारत में ग्रामीण विकास की रीढ़
बिहार में जिला परिषद (District Council) जिला स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण निकाय है। इसका मुख्य उद्देश्य जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और प्रशासन को सुचारू रूप से संचालित करना है। जिला परिषद का गठन जनप्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है और इसका नेतृत्व एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष करते हैं।
बिहार में जिला परिषद की संरचना
- जिला परिषद में निर्वाचित सदस्य, पदेन सदस्य और विभिन्न स्थायी समितियां होती हैं।
- निर्वाचित सदस्य ग्रामीण क्षेत्रों के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पदेन सदस्य सरकारी विभागों के प्रमुख होते हैं जो परिषद के कार्यों से जुड़े होते हैं।
- स्थायी समितियां परिषद के विभिन्न कार्यों की देखरेख करती हैं, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि आदि।
बिहार में जिला परिषद के कार्य
- जिला परिषद का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना है।
- यह विभिन्न क्षेत्रों में योजनाएँ बनाता और उनका क्रियान्वयन करता है, जिनमें शामिल हैं:
- प्राथमिक शिक्षा का प्रबंधन
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का रखरखाव
- ग्रामीण सड़कों और पुलों का निर्माण
- पेयजल आपूर्ति योजनाओं का कार्यान्वयन
- कृषि विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना
- पंचायतों को वित्तीय सहायता प्रदान करना
बिहार में जिला परिषद के अधिकार
- जिला परिषद के पास स्थानीय कर लगाने और उन्हें इकट्ठा करने का अधिकार होता है।
- यह केंद्रीय और राज्य सरकारों से प्राप्त धन का भी उपयोग करता है।
बिहार में जिला परिषद का महत्व
- जिला परिषद ग्रामीण क्षेत्रों में विकास का एक महत्वपूर्ण वाहक है।
- यह ग्रामीण लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाता है।
- यह जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करता है और लोगों को विकास प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।
बिहार में जिला परिषदों के बारे में कुछ अतिरिक्त जानने योग्य बातें
- जिला परिषदों का गठन और कार्यप्रणाली राज्य के अनुसार भिन्न हो सकती है।
- जिला परिषदों को ग्रामीण विकास में और अधिक प्रभावी बनाने के लिए निरंतर सुधार किए जा रहे हैं।
बिहार में जिला परिषद की बैठकें
जिला परिषद की बैठक कम से कम तीन माह में एक बार बुलानी आवश्यक होती है। यह बैठक जिला मुख्यालय में या जिला में कहीं भी की जा सकती है। जिला मुख्यालय से बाहर जिस जगह बैठक होनी है, उसका निर्णय जिला परिषदकी बैठक में लेना है। शेष सभी बैठकों की अध्यक्षता जिला परिषद के अध्यक्ष या उनकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष करते हैं। बैठक की तिथि का अनुमोदन जिला परिषद अध्यक्ष करते हैं और इसके बाद मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (डी.डी.सी.) बैठक की सूचना सभी सदस्यों को भेजता है। बैठक में कुल सदस्यों के एक तिहाई सदस्यों की उपस्थिति से उसका कोरम पूरा होगा। जिला परिषद के समक्ष रखे जाने वाले सभी मामलों (विषय) पर निर्णय बहुमत से होगा यदि किसी विषय पर मत भिन्नता हो या मतदान हो और बैठक में मतों के बराबर होने की स्थिति में अध्यक्ष अथवा अध्यक्षता कर रहे सदस्य का मत निर्णायक होता है। जिला परिषद की कार्यवाही अंकित करने और कार्यवाही की पंजी सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की होती है।
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