भोजन की आवश्यकता
हम जानते हैं कि विभिन्न मानसिक और बाह्य शारीरिक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो भोजन से प्राप्त होती है। यह ऊर्जा हमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, और खनिजों से मिलती है। इसलिए, हमें संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए जो पोषक तत्वों से युक्त हो।
ताजा भोजन का महत्व
i) पोषक तत्वों की गुणवत्ता : ताजा भोजन करने से उसमें मौजूद पोषक तत्व बरकरार रहते हैं।
ii) भोजन का खराब होना : गर्म मौसम में पकाई गई सब्जी रात तक खराब हो सकती है। उच्च तापमान पर हानिकारक जीवाणु तेजी से पनपते हैं, जिससे भोजन की पौष्टिकता कम हो जाती है और वह विषाक्त हो जाता है। इस प्रकार का भोजन खाने से पेट संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
iii) कटे हुए फल और सब्जियाँ : देर तक कटे हुए फल और सब्जियों का स्वाद, रंग और पोषण घट जाता है। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ भी समय के साथ खराब हो जाते हैं।
भोजन के परिरक्षण की आवश्यकता
परिरक्षण विधियाँ
भोजन को लम्बे समय तक ताजा और सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाई जाती हैं। इन विधियों को परिरक्षण कहते हैं। परिरक्षण विधियों के द्वारा भोजन को वातावरण में उपस्थित सूक्ष्मजीवों के संक्रमण से बचाया जा सकता है।
भोजन का खराब होना
भोजन के खराब होने के मुख्य कारण
रंग, स्वाद, आकार और गंध में परिवर्तन : जब भोजन के रंग, स्वाद, आकार और गंध में परिवर्तन हो जाता है तो वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता।
सूक्ष्मजीवों का प्रभाव : भोजन को खराब करने वाले मुख्य कारण सूक्ष्मजीव होते हैं जैसे कवक, जीवाणु और यीस्ट। इसके अलावा किट और कुतरने वाले जंतु भी भोजन को खराब कर सकते हैं।
सूक्ष्मजीवों का विवरण
कवक : बासी रोटी पर सफेद-सफेद धब्बे दिखाई देते हैं, जो कवक होते हैं। ये खाद्य पदार्थों पर जाल जैसी संरचना बना लेते हैं और उन्हें विषाक्त बना देते हैं।
जीवाणु : हानिकारक जीवाणु भोजन को विषाक्त कर देते हैं, जिससे निमोनिया, हैजा, पेचिश, पेट दर्द जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
यीस्ट (खमीर) : यीस्ट कार्बोहाइड्रेट्स को अल्कोहल में बदलकर भोजन को खट्टा बना देते हैं। यीस्ट का उपयोग डबलरोटी और जलेबी बनाने में किया जाता है।
कुटेरक (किट) : अनाज को घुन और अन्य किट खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। चूहे भी अनाज को खाकर खराब करते हैं।
भोजन के परिरक्षण की विधियाँ
परिरक्षण की विधियाँ
i) सुखाना (निरजलीकरण) : यह साधारण और सर्वाधिक उपयोग की जाने वाली विधि है। धूप में भोजन को सुखाकर उसका पानी वाष्पीकृत कर दिया जाता है जिससे सूक्ष्मजीवों का विकास रुक जाता है।
ii) उबालना : उबालने से उच्च तापमान के कारण हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। पानी और दूध को उबालकर शुद्ध किया जाता है।
iii) ठंडा करना :
हिमीकृत करना (फ्रीजिंग) : भोजन को -18°C या उससे नीचे के तापमान पर रखकर सुरक्षित रखा जाता है।
शीतलन (कूलिंग) : भोजन को 7°C से 10°C तापमान पर रखकर रेज़रेटर में सुरक्षित रखा जाता है।
iv) रासायनिक और अन्य पदार्थों का उपयोग : कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे सोडियम मेटाबाईसल्फाइट, पोटेशियम मेटाबाईसल्फाइट, सोडियम बेंजोएट, सिरका आदि का उपयोग भोजन के परिरक्षण में किया जाता है। नमक, शक्कर और तेल का उपयोग भी परिरक्षण में होता है।
v) डिब्बाबंदी (कैनिंग) : भोजन को डिब्बों में बंद करके संरक्षित किया जाता है।
vi) पास्चराइजेशन : दूध को 63°C पर आधे घंटे या 72°C पर 15 सेकंड तक गर्म करके और फिर तुरन्त 10°C तक ठंडा करके पैकेट में बंद कर दिया जाता है।
खराब भोजन एवं विषाक्त जल से होने वाले रोग
1. खराब भोजन के कारण होने वाले रोग
खराब भोजन का सेवन करने से पाचन क्रियाओं में अवरोध उत्पन्न होता है और कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। इनमें मुख्य रूप से निम्नलिखित रोग शामिल हैं:
हैजा
पेचिश
टाइफाइड
निमोनिया
पीलिया
2. विषाक्त जल से होने वाले रोग
विषाक्त जल का सेवन करने से भी कई प्रकार के रोग हो सकते हैं, जैसे:
हैजा
टाइफाइड
पीलिया
संचारी एवं असंचारी रोग
i) संचारी रोग
संचारी रोग वे होते हैं जो सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पन्न होते हैं और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलते हैं। इन रोगों के फैलने का मुख्य माध्यम हवा, पानी, मच्छर और मक्खियाँ होते हैं। उदाहरण:
हैजा
चेचक
टी.बी.
ii) असंचारी रोग
असंचारी रोग वे होते हैं जो किसी शारीरिक कमी या खराबी के कारण होते हैं और यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक नहीं फैलते। उदाहरण:
एलर्जी
उच्च रक्तचाप
कैंसर
मधुमेह
iii) संक्रामक रोग
संक्रामक रोग और उनके लक्षण
संक्रामक रोग सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पन्न होते हैं और वायु, जल, भोजन या जन संपर्क के माध्यम से फैलते हैं। इन रोगों के लक्षण और बचाव के उपाय निम्नलिखित हैं:
हैजा: डायरिया, उल्टी, निर्जलीकरण। बचाव: साफ पानी का सेवन, स्वच्छता।
चेचक: बुखार, त्वचा पर फोड़े। बचाव: टीकाकरण।
टी.बी.: खांसी, वजन घटाना। बचाव: टीकाकरण, सही इलाज।
महामारी
महामारी के फैलने का कारण
महामारी तब फैलती है जब संक्रामक रोगों के रोगाणु बड़ी संख्या में फैल जाते हैं और समय पर सही उपाय नहीं किए जाते। यह रोगाणु वायु, जल, भोजन और जन संपर्क के माध्यम से तेजी से फैलते हैं।
ऐतिहासिक महामारियाँ
लेग : यह सबसे पुरानी महामारियों में से एक है।
एच1एन1 इंफ्लूएंजा (स्वाइन फ्लू) : 2009-10 में यह महामारी फैली थी जिसमें भारत में लाखों लोग मारे गए थे।
महामारी से बचाव के उपाय
रोगाणु का नाश: फिनाइल, कार्बोलिक एसिड, चूना, डी.डी.टी. आदि का उपयोग।
स्वच्छता: नियमित रूप से हाथ धोना, स्वच्छ पानी का उपयोग।
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