जीवों में उत्सर्जन
उत्सर्जन की आवश्यकता
जीवों में कई जैविक क्रियाएँ, जैसे मेटाबोलिज्म, पाचन और परासंचरण, लगातार होती रहती हैं। इन क्रियाओं के परिणामस्वरूप कई अनावश्यक और हानिकारक पदार्थ बनते हैं। इन हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं।
उत्सर्जन की आवश्यकता के कारण:
1. विषाक्त पदार्थों का निष्कासन
जीवों के शरीर में मेटाबोलिज्म (चयापचय) की प्रक्रियाओं के दौरान कई विषाक्त पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जैसे:
नाइट्रोजन युक्त पदार्थ: यूरिया, अमोनिया, यूरिक अम्ल आदि।
कार्बन डाइऑक्साइड: श्वसन के दौरान उत्पन्न होने वाला गैस।
अन्य विषाक्त पदार्थ: कुछ दवाओं और रसायनों के उप-उत्पाद।
यदि ये विषाक्त पदार्थ शरीर में अधिक समय तक बने रहते हैं, तो यह विभिन्न अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और विभिन्न रोगों का कारण बन सकते हैं।
2. शरीर पर प्रभाव : यदि ये पदार्थ शरीर में अधिक समय तक रहते हैं, तो यह शरीर को नुकसान पहुंचा सकते हैं और विभिन्न रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
उदाहरण:
प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों (जैसे दाल, दूध, अंडा, माँस, मछली) के पाचन से अमीनो अम्ल बनते हैं। अधिक मात्रा में अमीनो अम्ल को यकृत द्वारा यूरिया में बदल दिया जाता है। यूरिया एक हानिकारक पदार्थ है और इसे शरीर से बाहर निकालना आवश्यक है।
मानव का उत्सर्जन तंत्र
वृक्क मानव उत्सर्जन तंत्र का मुख्य अंग है। इसकी संरचना और कार्य इस प्रकार हैं:
वृक्क (Kidney) की संरचना:
संख्या: मानव में एक जोड़ी वृक्क होते हैं।
आकार: वृक्क का आकार सेम के बीज के समान होता है।
स्थान: यह कमर के ऊपर रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर स्थित होते हैं।
कार्य : वृक्क रक्त से अनावश्यक और हानिकारक पदार्थों को छानकर मूत्र के रूप में बाहर निकालते हैं।
वृक्क का कार्य:
छानने की प्रक्रिया : वृक्क में रक्त को छानने के दौरान उपयोगी पदार्थ (जैसे ग्लूकोज, लवण, विटामिन, अमीनो अम्ल) पुनः अवशोषित कर लिए जाते हैं।
मूत्र निर्माण : अनावश्यक और हानिकारक पदार्थ (जैसे यूरिया) मूत्र में परिवर्तित होकर मूत्रवाहिनी (यूरिनरी ट्रैक्ट) के माध्यम से मूत्राशय में एकत्र होते हैं और फिर शरीर से बाहर निकलते हैं।
अन्य उत्सर्जन अंग:
1. त्वचा (Skin)
पसीना : त्वचा के माध्यम से पसीना निकलता है, जिसमें जल, लवण और कुछ अपशिष्ट पदार्थ होते हैं।
पसीने की ग्रंथियाँ : त्वचा में स्थित पसीने की ग्रंथियाँ पसीना बनाती हैं जो शरीर की तापमान को नियंत्रित करने में भी मदद करती हैं।
2. फेफड़े (Lungs)
कार्बन डाइऑक्साइड और जल वाष्प : श्वसन के दौरान फेफड़ों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड और जल वाष्प शरीर से बाहर निकलते हैं।
3. यकृत (Liver)
बाइल पिगमेंट: यकृत में रक्त को छानने के दौरान बाइल पिगमेंट और अन्य विषाक्त पदार्थों का उत्पादन होता है, जो बाद में पित्त (Bile) के माध्यम से आंत में निकलते हैं।
अमोनिया का यूरिया में परिवर्तन: यकृत अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित करता है, जिसे बाद में वृक्क द्वारा मूत्र के माध्यम से बाहर निकाला जाता है।
4. बड़ी आंत (Large Intestine)
मल (फेकल मैटर): बड़ी आंत अपचित खाद्य पदार्थों को मल के रूप में बाहर निकालती है।
जल का पुनः अवशोषण: बड़ी आंत में जल का पुनः अवशोषण होता है, जिससे मल सघन होता है।
अन्य जीवों के उत्सर्जन अंग
विभिन्न जीवों में उत्सर्जन के लिए विभिन्न प्रकार के अंग होते हैं:
i) एककोशकीय जीव (जैसे अमीबा, पैरामीशियम): इन जीवों में उत्सर्जन बाहरी वातावरण के सीधे संपर्क में होता है और विशेष उत्सर्जन अंग नहीं होते।
ii) निम्न कोटि के बहुकोशकीय जीव (जैसे स्पंज, हाइड्रा): इन जीवों में भी उत्सर्जन विशेष अंगों के बिना होता है।
iii) चपटेकृमि (प्लैटीहेल्मिन्थस): फ्लेम सेल्स के माध्यम से उत्सर्जन।
iv) केंचुए: नेफ्रिडिया (नेफ्रॉन जैसी संरचनाएँ) के माध्यम से उत्सर्जन।
v) कीट (जैसे तिलचट्टा): मैलपीघियन नलिकाओं के माध्यम से उत्सर्जन।
पौधों में उत्सर्जन
पौधों में भी अनावश्यक और हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने की क्रिया होती है।
पौधों में उत्सर्जन के तरीके:
1. लैटेक्स और रेजिन: कई पौधों में कट जाने पर धूर्त (लैटेक्स) और गोंद (रेजिन) निकलते हैं।
उदाहरण: आक, पीपल, बरगद, कनेर के पौधे।
2. टैनिन: पौधों की छाल से निकलता है।
उदाहरण: बबूल, आम, नीम।
3. गट्टेशन: पौधों की पत्तियों की नोक से जल की बूंदें निकलती हैं।
उदाहरण: टमाटर, अरबी, नैस्टरशियम, मकई।
उत्सर्जन पदाथों का मानव उपयोग:
गोंद (रेजिन): औद्योगिक उपयोग में।
लैटेक्स: रबर उत्पादन में।
टैनिन: चमड़ा उद्योग में।
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