पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के अंतर्गत हम पृथ्वी की परतें (भूपर्पटी, मेन्टल, क्रोड) आदि की मोटाई, उसमें पाए जाने वाले पदार्थों की प्रकृति (सियाल, सीमा, निफ़े), परतों के बीच असंबद्धताओं आदि का अध्ययन करेंगे।
पृथ्वी की परतें –
पृथ्वी की आंतरिक संरचना की तुलना हम प्याज से कर सकते है क्योंकि पृथ्वी में भी प्याज की तरह कई परतें पाई जाती है। भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार, पृथ्वी में मुख्य रूप से 3 परतें पाई जाती है।
1.भूपर्पटी
2.मैंटल
3.क्रोड
भूपर्पटी
पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत को भूपर्पटी कहते हैं, यह पृथ्वी की सबसे पतली ठोस परत है। भूपर्पटी की मोटाई विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न होती है, महाद्वीपों पर इसकी औसत मोटाई 35 किलोमीटर है। महासागरों के नीचे भूपर्पटी की औसत मोटाई 4 से 7 किलोमीटर तक है। यह मुख्यतः बेसाल्ट चट्टानों का बना है। सिलिका (Si) और एल्युमिनियम (Al) पदार्थों की अधिकता के कारण इसे सियाल (SiAl) भी कहते हैं। क्रस्ट का औसत घनत्व 2.7 ग्राम/सेमी³ है।
मैंटल
भूपर्पटी के नीचे एक बहुत अधिक मोटी परत पाई जाती है , जिसे मैन्टल कहते है । यह परत 2900 km की गहराई तक पाई जाती है । पृथ्वी के कुल आयतन का 83% भाग घेरे हुए है ।
इसका औसत घनत्व 3.5 से 5.5 gm/cm³ है । मैंटल का ऊपरी भाग दुर्बलतामंडल (asthenosphere) कहा जाता है । इसका विस्तार लगभग 400 km की गहराई तक है।
मैंटल का ऊपरी 700 km तक का भाग ऊपरी मैन्टल तथा शेष भाग निचला मैन्टल कहलाता है । सिलिका (Si) और मैगनीशियम (Mg) पदार्थों की अधिकता के कारण इस परत को सीमा (Sima) कहते है। विस्फोट के समय जो लावा धरातल पर आता है , उसका स्रोत दुर्बलतामंडल ही है।
क्रोड
पृथ्वी का सबसे भीतरी भाग क्रोड कहलाता है। क्रोड को भी दो भागों मे विभाजित है – वाह्य क्रोड एवं आंतरिक क्रोड । इसका औसत घनत्व 13 gm/cm³ है । पृथ्वी का केन्द्रीय भाग संभवतः द्रव एवं प्लास्टिक अवस्था मे है। यह पृथ्वी का कुल आयतन का 16% भाग घेरे हुए है। निकिल (Ni) और लोहे (Fe) से बनी होने के कारण इसे निफे (NiFe) भी कहते है।
कोनराड – यह असंबद्धता ऊपरी भूपर्पटी और निचला भूपर्पटी के बीच में है।
मोहो – यह असंबद्धता निचला भूपर्पटी और ऊपरी मैंटल के बीच में है।
गुटेनबर्ग-विशार्ट – यह असंबद्धता निचला मैंटल और ऊपरी क्रोड के बीच में है।
लेहमैन – यह असंबद्धता ऊपरी क्रोड और निचला क्रोड के बीच में है।
शैल
पृथ्वी का ऊपरी भाग शैलों बना है । एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर शैलें बनती हैं । साधारण मिट्टी से लेकर कठोर चट्टानों तक को शैल कहते हैं ।
शैल के प्रकार
शैल तीन प्रकार की होती हैं
आग्नेय शैल
अवसादी शैल
रूपांतरित शैल
आग्नेय शैल – आग्नेय शैलों को प्राथमिक शैलें भी कहा जाता है । ये शैलें लावा एवं मैग्मा के ठंडे होने से बनती हैं । ये शैलें अपारगम्य होती हैं यानी पानी या तरल पदार्थ इनसे रिस कर अन्दर नहीं जा सकता । इनमे जीवाष्मों के अवशेष भी नहीं मिलते । ग्रेनाइट ,गैब्रो ,बैसाल्ट आदि इसके उदाहरण हैं ।
आग्नेय शैलों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
ये शैल कठोर होती हैं।
ये शैल रवेदार और दानेदार होती है।
इन शैलों में परत नहीं पाई जाती है।
इन शैलों में जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं।
इन शैलों का सम्बन्ध प्रायः ज्वालामुखी क्रिया से होता है।
इन शैलों में बहुमूल्य खनिज पदार्थ (सोना, चाँदी, अभ्रक आदि) मिलते हैं।
अवसादी शैल – अवसादी शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के सेडीमेंट्स से हुई है , जिसका अर्थ होता है व्यवस्थित होना ।
नदियों , पवनों हिमानियों आदि के द्वारा निक्षेपित पदार्थों से निर्मित शैल अवसादी शैल कहलाती है ।
इनके तीन वर्गीकरण है
यांत्रिक रूप से निर्मित – जैसे बालुकाश्म , चूना प्रस्तर व शेल आदि ।
कार्बनिक रूप से निर्मित – खड़िया , कोयला ।
रासायनिक रूप से निर्मित – पोटाश, हेलाइट आदि ।
अवसादी शैलों की विशेषताएं
अवसादी चट्टानें जैसे- बलुआ पत्थर, चूना-पत्थर, स्लेट, कांग्लोमरेट, नमक की चट्टान और शेलखरी आदि अवसादी चट्टानें परतदार होती हैं. इनमें वनस्पति और जीव-जन्तुओं का जीवाश्म पाया जाता है. इन चट्टानों में लौह अयस्क, फास्फेट, कोयला और सीमेन्ट बनाने की चट्टान पायी जाती है ।
रूपांतरित शैल – रूपान्तरित शब्द का अर्थ है-रूप में परिवर्तन। इसलिए रूपान्तरित शैल वे शैल हैं जो गर्मी तथा दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, आकार तथा खनिज बदल लेती हैं। उच्च तापमान के प्रभाव के कारण चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। अधिक दबाव के कारण शैल, स्लेट में बदल जाती है। ये कठोर चट्टानें हैं।
रूपांतरित शैलों की विशेषताएं
अवसादी अथवा आग्नेय शैलों पर अत्याधिक ताप से या दाब पड़ने के कारण रूपान्तरित शैलें बनती हैं।
उच्च ताप और उच्च दाब, पूर्ववर्ती शैलों के रंग, कठोरता, गठन तथा खनिज संघटन में परिवर्तन कर देते हैं।
इस परिवर्तन की प्रक्रिया को रूपान्तरण कहते हैं।
इस प्रक्रिया द्वारा बनी शैल को रूपांतरित शैल कहते हैं।
स्लेट, नीस-शीस्ट, संगमरमर और हीरा रूपान्तरित शैलों के उदाहरण हैं।
यह चट्टानी अपनी मूल चट्टान से अधिक मजबूत और कठोर होती हैं।
रूपांतरण के कारण इन चट्टानों में जीवावशेष नष्ट हो जाते हैं अतः इन में जीवाश्म लगभग नहीं पाए जाते हैं।
कायांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं।
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