सांस्कृतिक समन्वय
बाबर, हुमायूँ, अकबर और जहांगीर जैसे मुगल शासक हमारे देश मे सांस्कृतिक विकास का प्रसार करने के लिए जाने जाते थे। इस क्षेत्र मे अधिक से अधिक कार्य मुगल शासन के दौरान किया गया था। मुगल शासक संस्कृति के शौकीन थे; मुगल परम्पराओ ने कई क्षेत्रीय और स्थानीय राज्यो की महलों एवं किलों को अत्यधिक प्रभावित किया।
मुगल सम्राटों के कार्य
जहाँगीर: वह तुर्की और फ़ारसी जैसी भाषाओं का महान शोधकर्ता था और वह अपनी स्मृतियों को व्यक्त करते हुये एक तूज़ुक-ए-जहांगीरी नाम की किताब भी लिख चुका था।
साहित्य:
फ़ारसी: अकबर फ़ारसी भाषा को राज्य भाषा के स्तर तक लाया, जिसने साहित्य के विकास का नेतृत्व किया।
संस्कृत: मुगलों के शासनकाल के दौरान, संस्कृत मे कार्य का निष्पादन मुगलों की अपेक्षा के स्तर तक, नही किया जा सका।
ललित कला:
भारत मे चित्रकला के विकास के लिए मुगल काल को स्वर्णिम दौर माना गया।
कला सिखाने के लिए भिन्न प्रकार के स्कूल इस प्रकार थे:
प्राचीन परंपरा के विद्यालय: भारत मे चित्रकला की प्राचीन शैली सल्तनत काल से पहले समृद्ध हुई थी । लेकिन आठवीं शताब्दी के बाद इस परंपरा का पतन होने लगा था लेकिन तेरहवीं शताब्दी मे ताड़ के पत्तों पर पांडुलिपियों एवं जैन ग्रन्थों के चित्रण से यह प्रतीत होता है कि परंपरा पूर्णतया समाप्त नही हुई थी।
मुगल चित्रकला: मुगल शासन काल के दौरान अकबर के द्वारा विकसित विद्यालय, उत्पादन के केंद्र की तरह थे।
यूरोपीय चित्रकला: अकबर के दरबार मे पुर्तगाली पादरी ने यूरोपियन चित्रकला का प्रारम्भ किया।
राजस्थान चित्रकला विद्यालय: इस प्रकार के चित्रकला मे वर्तमान विचारों एवं पश्चिमी भारत के पूर्व परम्पराओं एवं मुगल चित्रकला की भिन्न भिन्न शैली के साथ जैन चित्रकला विद्यालय का संयोजन शामिल है।
पहाड़ी चित्रकला विद्यालय: इस विद्यालय ने राजस्थान चित्रकला की शैली को बनाए रखा और इसके विकास मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संगीत:
यह मुगल शासन काल के दौरान हिन्दू-मुस्लिम एकता का एकमात्र कड़ी सिद्ध हुआ। अकबर ने अपने दरबार मे ग्वालियर के तानसेन को संरक्षण दिया। तानसेन एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे कई नयी धुन और रागो कि रचना का श्रेय दिया गया।
मुगल काल स्थापत्य कला
सभी मुगल सम्राट भवन-निर्माण एवं स्थापत्य कला के प्रेमी थे। स्थापत्य कला को भवन-निर्माण कला , वास्तुकला एवं शिल्पकला के नाम से भी ना जाता है। मुगल सम्राटों ने ईरानी व हिन्दू शैली के समन्वय द्वारा मुगल शैली का निर्माण व उसका विकास किया, जिसकी छाप इनकी सभी कलाओं पर दखाई देती है।
आगरा किले का एक छज्जा
शाहजहाँ ने अकबर द्वारा लाल किले में लाल पत्थर से बनवाई गई इमारतों को तुड़वाकर उन्हें संगमरमर से बनबाया। ये इमारतें हैं-दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खांस, मच्छी भवन, शीश महल तथा खास महल, झरोखा दर्शन और मुसम्मन बुर्ज, नगीना और मोती मस्जिद ।
जोधाबाई महल का छझा , गुजरात शैली
सीकरी के सभी भवनों में यह महल सबसे बड़ा है.
इस महल में गुजराती प्रभाव है तथा यह दक्षिण के मंदिरों से प्रभावित है.
महल के उत्तर में ग्रीष्म विलास तथा दक्षिण में शरद् विलास का निर्माण हुआ है.
हुमायूँ का मकबरा ,दिल्ली
हुमायूँ की स्थापत्य कला- स्थापत्य कला की एक महत्त्वपूर्ण कृति हुमायूँ का मकबरा है। यद्यपि इसका निर्माण अकबर के प्रारम्भिक शासनकाल में हुआ, परन्तु यह हुमायूँ के काल की इमारत है। यह मकबरा ईरानी और भारतीय शैलियों के मिश्रण का नमूना है। इसमें फारसी शैली का भाव भी है।
अकबर का मकबरा, सिकन्दरा
अकबर की स्थापत्य कला- अकबर ने अपनी स्थापत्य कला में व भारतीय कला का समन्वय किया। अकबर के काल की सभी इमारतें । पत्थर की हैं और सजावट के लिए संगमरमर का प्रयोग किया गया है। सिकन्दरा, इसका निर्माण कार्य अकबर ने प्रारम्भ करवाया था, परन्तु 1623 ई. में जहाँगीर के शासनकाल में बनकर तैयार हुआ।
पिएत्रा घूरा, ताजमहल
पिएत्रा घूरा ताजमहल वास्तुकला की जड़ना तकनीक ताजमहल में पाई जा सकती है । पिएत्रा घूरा जिसे पच्चीकारी भी कहा जाता है , अत्यधिक पॉलीश किये गए रंगीन पत्थरों का उपयोग करके छवियों को बनाने के लिए काटने और जड़ने की जड़ना तकनीक के लिए एक शब्द है ।
कुरान की लिखी आयतें ताजमहल
पिएत्रा घूरा,एत्मादुद्दौला का मकबरा
ताजमहल पर कुरान की आयतें उत्कीर्णित हैं। संगमरमर से बने ऊंचे चबूतरे पर बना है। चार कोनों पर चार ऊँची मीनारें हैं। गेट के तीन ओर काले मोज़ेक में कुरान की आयतें लिखी हुई हैं। इसके अंदर के भाग में पित्रा ड्यूरा शैली का बखूबी प्रयोग हुआ है ।
शालीमार बगीचा लाहौर
शालीमार बाग को मुगल सम्राट शाहजहां ने 1641 ई. में बनवाया था। यह पाकिस्तान के लाहौर शहर में स्थित है। चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा यह गार्डन अपने जटिल फ्रेमवर्क के लिए प्रसिद्ध है। 1981 में यूनेस्को ने इसे लाहौर किले के साथ विश्वदाय धरोहरों में शामिल किया था। फराह बख्स, फैज बख्स और हयात बख्स नामक चबूतरे गार्डन की सुंदरता में वृद्धि करते हैं।
चित्रकारी
चित्रकला के क्षेत्र में मुगलों का विशिष्ट योगदान था। उन्होंने राज दरबार, शिकार दृश्य से सम्बन्धित नये चित्रों को आरंभ किया तथा नये रंगों और आकारों की शुरूआत की। भारत के रंगों जैसे फिरोजी रंग व भारतीय लाल रंग का इस्तेमाल होने लगा।
दरबार दृश्य अकबरनामा
साहित्य का विकास
मुगल काल के दौरान साहित्य के विकास के लिए कई कारक जिम्मेदार थे। सबसे बड़ी वृद्धि फारसी साहित्य में देखी गई क्योंकि यह मुगलों की आधिकारिक भाषा थी। सभी मुगल शासकों ने फारसी साहित्यकारों और गतिविधियों को संरक्षण दिया। इस प्रकार बाबर ने फारसी और तुर्की दोनों में कविताएँ लिखीं। अकबर के शासनकाल के दौरान फारसी गद्य और कविता चरम पर पहुंच गई। उनके शासनकाल के दौरान कई आत्मकथाएँ और ऐतिहासिक रचनाएँ लिखी गईं। कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्यों में अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी शामिल है। बदायूनीं द्वारा मुंतखब-उल-तवारीख, निजामुद्दीन अहमद द्वारा तबकात-ए-अकबरी। अकबर के समय में अन्य भाषाओं में कार्यों का फारसी में अनुवाद किया गया था। इस संबंध में, महत्वपूर्ण अनुवाद थे महाभारत का फारसी में अनुवाद
इसी तरह, रामायण का अनुवाद बदुगी ने किया था। फैजी ने पंचतनर का अनुवाद किया।
यातायात — मुगल काल में व्यापार की उन्नति के लिए यातायात के साधनों की कोई कमी नहीं थी। जल एवं थल मार्ग सुरक्षित थी और आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर सामान को पहुंचाया जा सकता था।
व्यापार
मुगल काल में व्यापार उन्नति शील था उस समय देश का यूरोप और अन्य देशों के साथ घनिष्ठ संबंध था। अंग्रेज फ्रांसीसी, पुर्तगाली और बच्चों की कंपनियां भारत में बने सामान को ले जाकर यूरोप के बाजारों में बेचती थी। लाहौर दूसरा बड़ा व्यापारिक नगर था। इन नगरों के अलावा अहमदाबाद और बुरहानपुर अन्य समृद्ध शाली तथा व्यापारिक नगर थे। इनके अतिरिक्त मछलीपट्टनम, सूरत, भडोच, नागापट्टनम कोचीन, कालीकट, गोवा, चटगांव, समुद्र के किनारे दूसरे व्यापारिक केंद्र थे। मुगल काल में बड़े पैमाने पर कपास उत्पन्न किया जाता था। इससे उच्च किस्म का कपड़ा तैयार किया जाता था। इस समय प्रसिद्ध सूती कपड़ा कैलिको का था, यह छपा हुआ था। सूती वस्त्र के प्रमुख केंद्र अहमदाबाद, बनारस, ढाका, पटना, जौनपुर, लखनऊ आदि थे। निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में सूती, रेशमी व ऊनी वस्त्र, नील, मसाले, शोरा, नमक, चीनी, औषधियां आदि प्रमुख थीं। आयात की जाने वाली वस्तुओं में सोना, चाँदी, हाथी दाँत, चीनी मिट्टी तथा काँच के बर्तन, शराब, तम्बाकू, मेवे का आयात किया जाता था।
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