अंग्रेजी शासन का प्रभाव भारतीय समाज पर अन्य विदेशी आक्रमणों से भिन्न था। अंग्रेज भारतीय समाज को गतिहीन और अविकसित मानते थे। इसके विपरीत यूरोप में 18वीं शताब्दी में तर्कवाद, अन्वेषण और विज्ञान आधारित दृष्टिकोण विकसित हुआ। यह परिवर्तन भारतीय समाज को भी प्रभावित करने लगा।
धार्मिक और सामाजिक सुधारों की आवश्यकता
- भारतीय समाज में कई कुरीतियाँ थीं जैसे:
- सती प्रथा
- देवदासी प्रथा
- विधवा पुनर्विवाह पर निषेध
- ये सभी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित थीं। इसलिए, समाज सुधार के लिए धार्मिक सुधार आवश्यक था।
सुधारों के प्रेरणा स्रोत
- पश्चिमी शिक्षा और विचारधारा:
- तर्कवाद और मानवतावाद से प्रेरणा लेकर भारतीयों ने अपने धर्म को सुधारने का प्रयास किया।
- धर्म और समाज की विसंगतियों को तर्क के आधार पर सुधारने का प्रयास हुआ।
- तीसरा वर्ग:
- यह वर्ग भारतीय परंपराओं और अध्यात्म से प्रेरणा लेता था।
- इनका मानना था कि भारतीय अध्यात्मवाद से यूरोप को सीखना चाहिए।
मुख्य सुधार आंदोलन
- राजाराम मोहन राय:
- वे पश्चिमी शिक्षा और तर्क आधारित दृष्टिकोण से प्रभावित थे।
- उन्होंने सती प्रथा के विरोध और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया।
- आर्य समाज:
- प्राचीन वैदिक परंपराओं पर आधारित सुधारों को बढ़ावा दिया।
- रामकृष्ण मिशन:
- भारतीय अध्यात्म और सेवा पर आधारित था।
- देवबंद आंदोलन:
- इस्लामी शिक्षा और सुधार पर ध्यान केंद्रित किया।
धार्मिक सुधारों का प्रभाव
- धर्म को तर्क के आधार पर मापा जाने लगा।
- सामाजिक कुरीतियों के प्रति सोच में बदलाव आया।
- आधुनिक दृष्टिकोण विकसित हुआ।
सामाजिक सुधारों का योगदान
- महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।
- सती प्रथा और देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियाँ समाप्त हुईं।
- धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों ने भारत के आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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