राजस्व सम्बन्धी सुधार
उसने भूमि की विविधता के आधार पर अलग-अलग लगान निर्धारित किया।
उपजों की किस्मों के आधार पर कर निर्धारण किया जाता था।
भूमि की नाप पटवारी द्वारा रस्सी से की जाती थी। नाप की इकाई ‘गज’ थी।
किसान भूमि का विवरण सरकार को लिखित रूप में देते थे जिसे कबूलियत कहा जाता था। इससे किसानों का सम्पर्क सीधे सरकार से होने से उनका उत्पीड़न बंद हो गया।
नगद रूप में कर देने का आदेश था।
अकाल अथवा संकट के कारण फसल का नुकसान होने पर सरकार द्वारा इसकी क्षतिपूर्ति की जाती थी।
शेरशाह का चाँदी का सिक्का
सैन्य संगठन एवं चुस्त प्रशासनिक व्यवस्था
अपनी सेना का संगठन किया।
डाक व्यवस्था के लिए डाक चौकी होती थी। यहाँ से डाक घोड़े द्वारा पहुँचायी जाती थी।
अधिकारियों को नियमित रूप से वेतन दिया जाता था।
अधिकारियों को नियमित रूप से वेतन दिया जाता था।
प्रजा हित के कार्य
सोनार गाँव (बंगाल) से पेशावर को जोड़ने वाली सड़क बनवाई जिसे ग्राण्ड ट्रंक रोड कहते हैं। इससे यातायात और संचार व्यवस्था में गति आई।
बुरहानपुर तथा जौनपुर को दिल्ली से जोड़ दिया गया। इससे व्यापार को बढ़ावा मिला।
सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगवाए, विश्राम के लिए सराय बनवाई तथा पानी के लिए कुएँ खुदवाए।
उसने शिक्षा के विकास के लिए कई मदरसे व मकतब भी खुलवाए।
शेरपुर (दिल्ली के निकट) नामक नगर यमुना के किनारे बसाया।
शेर-ए-मंडल शेरशाह द्वारा दिल्ली के पुराने किले में बनवाया गया था जिसको हुमायूँ ने बाद में पुस्तकालय का रूप दे दिया था।
शेर-ए-मंडल पुस्तकालय
सूरवंश का पतन
1545 ई० में कालिंजर के युद्ध में वह घायल हो गया तथा कुछ दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। शेरशाह की मृत्यु के पश्चात उसके उत्तराधिकारियों ने 10 वर्षों तक शासन किया लेकिन ये उत्तराधिकारी इतने योग्य नहीं थे कि वे शेरशाह द्वारा स्थापित साम्राज्य की देखभाल कर सकते। अन्ततः उनके हाथ से साम्राज्य निकल गया तथा उसके वंश का पतन हो गया।
शेरशाह सूरी ने यद्यपि मात्र 5 वर्ष के लिए शासन किया परन्तु उसने एक ऐसा सुदृढ़ प्रशासनिक व्यवस्था का ढाँचा तैयार किया जिससे बाद में मुगलों को मुगल साम्राज्य की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में लाभ मिला।
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