वायुमण्डल की संरचना
वायुमंडल की संरचना या संघटन भारी गैसें पृथ्वीतल के समीप (80km की ऊँचाई तक) मिलती हैं और इससे ऊपर हल्की गैसें। शुद्ध शुष्क वायु 78% नाइट्रोजन और 21% ऑक्सीजन से बनी होती है। शेष 1% में ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, ओजोन और हाइड्रोजन गैसें हैं।
ऑक्सीजन – ऑक्सीजन गैस जीवनदायिनी गैस मानी गई है क्योंकि इसके बिना हम सांस नही ले सकते । वायुमण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा 20.95 प्रतिशत है ।
नाइट्रोजन – इस गैस की प्रतिशत मात्रा सबसे अधिक 78.8 प्रतिशत है । नाइट्रोजन से पेड़ – पौधों के लिए प्रोटीनों का निमार्ण होता है जो भोजन का मुख्य अंग हैं ।
कार्बनडाईऑक्साइड गैस – यह सबसे भारी गैस है और इस कारण यह सबसे निचली परत में ही मिलती है । वायुमण्डल में केवल 0.03 प्रतिशत होते हुए भी कार्बन डाइ ऑक्साइड महत्वपूर्ण गैस है क्योंकि यह पेड – पौधों के लिए आवश्यक है ।
वायुमण्डल की परतें
तापमान व वायुदाब के आधार पर वायुमंडल को पांच परतों – क्षोभमण्डल , समतापमंडल , मध्यमंडल , आयनमंडल एवं बाह्य मण्डल में बांटा गया है ।
क्षोभमंडल
यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है । इसकी औसत ऊँचाई 13 किलोमीटर है । इसकी ऊँचाई भूमध्य रेखा पर 18 किलोमीटर तथा ध्रुवों पर 8 किलोमीटर है । ऋतु तथा मौसम से सम्बधित सभी घटनाएँ इसी परत में घटित होती हैं । यह परत मानव के लिए उपयोगी है ।
समतापमंडल
यह परत 50 किलोमीटर तक विस्तृत है । इसके निचले भाग में 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान में कोई परिवर्तन नहीं आता इसलिए इसे समतापमण्डल कहते हैं । इसके ऊपर 50 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान में वृद्धि होती है इस परत के निचले भाग में ओजोन गैस उपस्थित है जो सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण का अवशोषण करती है ।
मध्यमंडल
इस परत का विस्तार 50 से 90 किलोमीटर की ऊँचाई तक है । इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान में गिरावट आती है ।
आयनमंडल
इस परत का विस्तार 90 किलोमीटर से 400 किलोमीटर तक है । यहाँ उपस्थित गैस के कण विद्युत – आवेषित होते हैं इन्हें आयन कहते हैं । आयनमण्डल पृथ्वी से प्रेषित रेडियो तरंगों को परावर्तित करके पृथ्वी पर वापस भेज देता है ।
बाह्यमंडल
आयन मण्डल के ऊपर वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत है जिसे बाह्यमण्डल कहते हैं । इस परत में वायु बहुत ही विरल है जो धीरे – धीरे बाह्य अन्तरिक्ष में विलीन हो जाती है ।
वर्षा
जब किसी कारणवश जलवाष्प से लदी हुई वायु ऊपर उठती है तो वह ठण्डी हो जाती है और जल वाष्प का संघनन होने लगता है । इस प्रकार जलकण पैदा होते हैं और वे वायुमण्डल में उपस्थित धूल – कणों पर एकत्रित होकर वायु में ही तैरने लगते हैं । अतः मेघों का निर्माण हो जाता है । मेघ किसी अवरोध से टकराकर अपनी नमी को जल के रूप में पृथ्वी के धरातल पर गिरा देते हैं । इसे जल वर्षा कहते हैं ।
मौसम तथा जलवायु
मौसम – तापमान , वर्षा , वायुदाब , आर्द्रता , वायु की दिशा व गति आदि तत्वों का औसत मौसम कहलाता है । यह एक छोटे भूभाग पर छोटी अवधि अथवा दैनिक वायुमंडलीय दशाओं को अभिव्यक्त करता है ।
जलवायु – मौसम के तत्वों का औसत लम्बी समय अवधि तथा बड़े भूभाग पर कई वर्षों के अध्ययनों पर आधारित वायुमंडलीय , दशाओं की सामान्य अभिव्यक्ति है ।
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