वनस्पति
वनस्पति मरुस्थलीय
शुष्क जलवायु व कम वर्षा के कारण मरुस्थलीय वनस्पतियाँ विकसित हो जाती हैं। यहाँ की वनस्पति की जड़े लम्बी होती हैं, जिससे वे भूमि की गहराई तक नमी प्राप्त करती हैं। जलवाष्पन को कम करने के लिए इनमें पत्तियाँ नहीं होती हैं। जहाँ कहीं जल के स्रोत या नदी होती हैं, वहाँ आस-पास पेड़-पौधे, झाड़ियाँ वे घासे उग आती हैं। ये वीरान जमीन पर बगीचे से दिखाई देते हैं । इस कारण इन्हें मरुद्यान कहते हैं । मरुद्यानों में प्याज, शकरकन्द, तम्बाकू , फलियाँ व मोटे अनाज की खेती की जाती है ।
मरूद्यान
यहाँ की मुख्य वनस्पतियाँ – खजूर , बबूल ,सेहुड़ ,नागफनी , ताड , आदि हैं ।
जीव – जन्तु
मरुस्थलीय छेत्र में पानी का अभाव है और वनस्पति भी कम मात्रा में है । इस कारण यहाँ जीव – जन्तुओं की संख्या बहुत कम है । यहाँ वे जीव रह पाते हैं, जिनमें पानी की कमी व अधिक गर्मी सहन करने की छमता होती है । इनमें ऊँट प्रमुख है । ऊँट के पीठ पर बड़ा सा कूबड़ होता है जिसमें वसा इकठ्ठा रहती है । यह वसा, पानी की कमी को पूरा करती है और ऊँट बहुत दिनों तक बिना पानी पिए जीवित रह लेता है ।
यहाँ भेड़ बकरियॉं भी पाई जाती हैं । कुछ अन्य जीव-जन्तु भी यहाँ पाए जाते हैं हिरन ,गीदड़ ,रेतमूस, गोह ,बिच्छू, चिंकारा ,लोमड़ी आदि ।
मानव-जीवन
मरुस्थलीय क्षेत्र की जलवायु बहुत विषम है। यहाँ पानी की कमी और तापमान में बहुत अंतर पाया जाता है। ताप कभी बहुत अधिक तो कभी बहुत कम होता है। इन सब कारणों से यहाँ जनसंख्या बहुत कम है और बस्तियाँ बहुत दूर-दूर बसी हैं। यहाँ पर रह रही आदिवासी जातियों में अरब की ‘बर्दू’ और कालाहारी की ‘बुशमैन’ जातियाँ प्रमुख हैं। कालाहारी के बुशमैन पूरी तरह शिकार पर निर्भर होकर जीवन गुजारते हैं जबकि अरब के बर्दू जानवरों के चारे व पानी की खोज में इधर-उधर घूमा करते हैं। यहाँ के लोग लम्बी यात्रा में ऊँट या बकरी की खाल से बने थैले में पानी भर कर ले जाते हैं, इसमें पानी देर तक ठण्डा रहता है।
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