Notes For All Chapters – इतिहास Class 6th
आज के डोर मई कुछ लोग गावों मे रहते है तो कुछ लोग शहर मे। शहर तथा गावो की रहन सहन मे कुछ तो अंतर है पर कुछ नहीं।
प्राचीन सभयता के अनुसार नगरों का विकास नदियों किनारे होता था। नदी के किनारे रहने के कारण लोगो को खेती मे भौत सहायता मिलती थी और अछि फसल होती थी।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता
हड़प्पा सभ्यता की शुरुआती जड़ें लगभग 6000 ईसा पूर्व मेहरगढ़ जैसी संस्कृतियों में हैं। दो सबसे बड़े शहर, मोहनजो-दड़ो और हड़प्पा, लगभग 2600 ईसा पूर्व पंजाब और सिंध में सिंधु नदी घाटी के साथ उभरे।
पुराने शहरों की खोज
सन 1921 मे जब भारत मे अंग्रेजो का राज हुआ करता था। पुरातत्वविदों ने पंजाब प्रान्त मे हरप्पा नमक स्थल से एक खंडहर की खोज हुई। इस खंड हर के अवशेषों का गायत क्र ये पाया गया की यह एक नगर के अवशषे है। ठीक इसी प्रकार सिंध प्रान्त मे भो एक गावो की खोज हुई जिसे लोग मोहनजोदड़ो के नाम से जानते है। मोहनजोदरो का मतलब है मृतकों का टीला। यहाँ से कई प्रकार के अवशषे पाए गए। अतः लोग हड़प्पा स्थल को हड़प्पा संस्कृति कहते है और मोहनजोदड़ो को सिंधी नदी घाटी।
नगर निर्माण योजना – हड़प्पा कालीन नगरों का निर्माण एक निश्चित योजना के आधार पर किया गया था। सड़कें चौड़ी थीं तथा वे छोटी-छोटी सड़कों एवं गलियों से जुड़ी थीं। सड़कें पूर्व से पश्चिम की ओर तथा उत्तर से दक्षिण की ओर जाती थीं। सड़कों के किनारे पक्की नालियाँ बनी थीं। हर घर की नाली बड़े नालों से मिल जाती थी। हर नाली में हल्की सी ढाल होती थी। ताकि पानी आसानी से बह सके। इससे पता चलता है कि इस सभ्यता के लोग सफाई और स्वच्छता के प्रति जागरूक थे।
व्यापार – हड़प्पा के नगरों से पत्थर, हाथी दाँत, धातु एवं मिट्टी की बनी वस्तुएँ मिली हैं। कुछ विद्वान सोचते हैं कि ये वास्तव में व्यापारियों की मुहरें थीं। ये विभिन्न आकार की हैं। इन मुहरों पर आदमी की आकृतियाँ, कुछ पर जानवरों की, पौधों की और कुछ पर बर्तनों की आकृतियाँ बनी हुई हैं। व्यापारी जब एक जगह से दूसरी जगह सामान भेजते थे तो सामान बाँधकर उस पर गीली मिट्टी छापते होंगे और गीली मिट्टी पर अपनी मुहर से छाप बना देते होंगे ताकि उनके सामान की पहचान बनी रह सके। तौल और नाप के लिए बटखरे और पैमाने का प्रयोग करते थे। ऐसी मुहरें दूसरे देशों में भी पाई गई हैं- खासकर मेसोपोटामिया (इराक) में लगता है कि उन दिनों इराक और हड़प्पा के नगरों के बीच व्यापार होता था।
रहन-सहन – चावल, गेहूँ और जौ हड़प्पा वासियो के मुख्य भोज्य पदार्थ थे। ये लोग सूती एवं ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। यहाँ के निवासी गेहूँ, जौ, कपास, मटर, तिल और चावल की खेती करते थे। ऊँचे कंधों वाले बैल, गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सुअर, हाथी और ऊँटे इनके पालतू पशु थे। हार, कंगन, पाजेब (पायल), बाली, अंगूठी उनके प्रिय आभूषण थे। मनका बनाने का कारखाना चन्हूदड़ों से प्राप्त हुआ है।
देवी-देवता – हड़प्पावासी मिट्टी से देवी-देवता की मूर्तियाँ बनाते थे। इस प्रकार की एक मातृदेवी की मूर्ति खुदाई में प्राप्त भी हुई है। इसके अलावा पत्थर के चौकोर पट्टे पर एक आकृति के सिर पर भैंसे के सींग का चित्र भी मिला है। उसके चारों तरफ कई जानवर बने हैं। संभवतः सिंधुवासी इन्हें पशुओं का देवता मानकर पूजते थे। कुछ मुहरों पर पीपल की पत्तियाँ और साँप की आकृतियाँ भी। बनी मिली हैं। शायद वे इनकी भी पूजा करते थे। इतिहासकार मानते हैं कि हड़प्पावासी मातृशक्ति की उपासना, शिव की पूजा, वृक्ष पूजा और पशु-पूजा करते थे।
वस्तु विनिमय प्रणाली: मुद्रा के बिना प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं का वस्तुओं के लिए लेन-देन वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है। अर्थात् इस प्रणाली में वस्तुओं के बदले वस्तुएँ ही खरीदी जाती हैं। उदाहरणार्थ, गेहूँ के बदले कपड़ा प्राप्त करना, किसी अध्यापक को उसकी सेवाओं का भुगतान अनाज के रूप में किया जाना इत्यादि।
मुहर
मातृदेवी
गहने
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