मानव मे परिवर्तन
मानव शस्त्रयों के अनुसार आज से लगभग 2 करोड़ वर्ष पूर्व मानव विकास की प्रक्रिया शुरू हुई। जैसे –
खरे होके सीधे चलना
अपने हाथो की क्षमता को पैदा कर महत्वपूर्ण कार्य करना।
मस्तिष्क के आकार एवं क्षमता का विस्तार करना।
इस चित्र से पता चलता की मानव शरीर का विकास किस प्रकार हुआ|
मानव का विकास क्रम
मानव के विकास के कारण आस पास के वातावरण एवं परिस्थितिओं मे काफी परिवर्तन आने लगे। अब मानव अपने हाथो एवं मस्तिष्क का अधिक प्रयोग करने लगा था। और वे अपनी जरूरतों को भलीभाँति पूर्ण करा था। और जरूरतों के अनुसार औज़ार या अन्य उपकरणों का निर्माण करने लगा। इन्ही से हमें उनके बारे मे पता लगता है।
पाषाण काल
प्रागैतिहासिक काल जिसके दौरान पत्थर का उपयोग, मनुष्यों ने उपकरण और हथियार बनाने के लिए किया। पाषाण युग इतिहास का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों (संस्कृत – पाषाणः) पर अत्यधिक आश्रित था। उदाहरणार्थ पत्थरों से शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना, पत्थरों से आग पैदा करना इत्यादि।
पाषाण काल से अभिप्राय उस काल से है जिस काल में आदिमानव पाषाण के बने उपकरणों अर्थात पत्थर के बने औजारों का प्रयोग करता था। पाषाण काल को इतिहासकारों आदिमानवो के विकास और औजारों के प्रयोगों को देखकर तीन भागों में विभाजित किया है :-
1. पुरापाषाण काल,
2. मध्यपाषाण काल,
3. नवपाषाण काल।
1. पुरापाषाण काल
पाषाण युग इतिहास का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों पर अत्यधिक आश्रित था। उदाहरनार्थ पत्थरों से शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना, पत्थरों से आग पैदा करना इत्यादि।
इस काल में मनुष्य अपना जीवन – यापन खाद्यान संग्रह तथा पशुओं का शिकार करके करता था।
पुरापाषाण काल का मानव पर्वत की कन्दराओं में रहता था। ऐसे शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं ।
2. मध्यपाषाण काल
यह काल पुरापाषाण व नवपाषाण काल के मध्य का संक्रमण का काल है ।इस काल तक हिमयुग पूरी तरह से समाप्त हो चुका था तथा जलवायु गर्म तथा आद्र हो चुकी थी । जिसका प्रभाव पशु-पक्षी तथा मानव समूह पर पङा।
मध्य पाषाण काल की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी मनुष्य को पशुपालक बनाना । इस काल में आखेट के क्षेत्र में भी परिष्कार हुआ, वह तीक्ष्ण तथा परिष्कृत औजारों का प्रयोग करने लगा । प्रक्षेपास्र तकनीकि प्रणाली का विकास ( छोटे पक्षियों को मारने वाले छोटे उपकरण ) इसी काल में हुआ। तीर – कमान का विकास भी इसी काल में हुआ । बङे पशुओं के साथ-साथ छोटे पशु – पक्षियों एवं मछलियों के शिकार में विकास संभव हुआ।
3. नवपाषाण काल
इस काल में कृषि व पशुपालन का विकास हुआ ।
नवपाषाण युग के मानव का दूसरा समूह दक्षिण-भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में रहता था। वे लोग आमतौर से नदी के किनारे ग्रेनाइट की पहाड़ियों के ऊपर या पठारों में निवास करते थे। वे पत्थर की कुल्हाड़ियों का और कई तरह के प्रस्तर – फलकों का भी प्रयोग करते थे। पकी मिट्टी की मूर्तिकाओं (फिगरिन्स) से यहीं साबित होता है कि वे अलग-अलग जानवरों को पालते थे। मुख्य रूप से उनके पास गाय, बैल, भेड़ और बकरी होती थीं। वे सिलबट्टे का प्रयोग करते थे जिससे यह प्रकट होता है कि वे अनाज पैदा करना जानते थे।
तीसरा क्षेत्र जहाँ नवपाषाण युग के औज़ार मिले हैं, असम की पहाड़ियों में पड़ता है। नवपाषाण औज़ार भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा पर मेघालय की गारो पहाड़ियों में भी पाए गए हैं। इसके बावजूद, हम विंध्य के उत्तर, मिर्ज़ापुर और इलाहाबाद जिलों में भी कई नवपाषाण स्थल पाते हैं। इलाहाबाद जिले के नवपाषाण स्थलों के विषय में बतलाया गया है कि यहाँ ईसा-पूर्व पाँचवीं सहस्राब्दी में भी चावल का उत्पादन होता था, पर इतिहास में इसकी तिथि 1500 ई०पू० भी बतलाई जाती है।
जिन कई नवपाषाण स्थलों का या नवपाषाण परतों वाले स्थलों का उत्खनन हुआ है, उनमें प्रमुख हैं-कर्नाटक में मास्की, ब्रह्मगिरि, हल्लुर, कोडक्कल, पिक्लीहल, संगेनकल्लु, टी. नरसीपुर और तैक्कलकोट तथा तमिलनाडु में पैयमपल्ली। उतनूर आंध्र प्रदेश का महत्त्वपूर्ण नवपाषाण स्थल है। जान पड़ता है, दक्षिण भारत में नवपाषाणावस्था 2000 ई० पू० से 1000 ई० पू० तक जारी रही।
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