राजपूत, (संस्कृत शब्द राजपुत्र)। यह शब्द राजकुमार या राजवंश का सूचक था। धीरे धीरे क्षत्रिय वर्ग राजपूत नाम से प्रसिद्ध हो गया।
राजपूत कालीन समाज
शासन व्यवस्था
1. इस समय से सामंती वव्यस्था की शुरुआत होने लगी जिसमें सामंत राजा प्रत्येक वर्ष एक निश्चित आय अधिपति को देते थे।
2. गावों मे ग्राम पंचायत होने लगी।
3. उन पंचायतों पर शासन का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
4.मौर्य काल समय मे बने हुए पंचायती राज वव्यस्था अभी भी कायम रखी गई थी।
सामाजिक व्यवस्था
1. युद्ध विजय अभियान और जीत राजपूत समाज और संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता थी।
2. समाज बुरी तरह परेशान था क्यूंकि लोगो के रहन सहन के स्तर मे काफी असमानता थी। वे जाति और धर्म प्रणालियों मे विश्वास रखते थे।
3. मंत्री, अधिकारी, सामंत प्रमुख उच्च वर्ग के थे, इसलिए उन्होने धन जमा करने के विशेषाधिकार का लाभ उठाया और वे विलासिता और वैभव मे जीने के आदी थे ।
4. वे कीमती कपड़ो, आभूषणों और सोने व चांदी के जेवरों मे लिप्त थे। वे कई मंजिलों वाले घर जैसे महलों मे रहा करते थे।
5. राजपूतों ने अपना गौरव अपने हरम और उनके अधीन कार्य करने वाले नौकरो की संख्या मे दिखाया।
6. दूसरी तरफ किसान भू-राजस्व और अन्य करों के बोझ तले दब रहे थे जो सामंती मालिको के द्वरा निर्दयतापूर्वक वसूले जाते थे या उनसे बेगार मजदूरी करवाते थे।
कला
राजपूत लड़ाई के साथ साथ कला एवं साहित्य मे भी रूचि रखते थे।
भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर
उत्तर भारत के राजाओ ने कई मंदिर का निर्माण करवाया। जैसे भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर।
कोर्णाक का सूर्य मंदिर
यह मंदिर गंग वंश के नरसिम्हा प्रथम के द्वारा बनवाया गया। इस मंदिर की बनावट रथ के सामान है इसमें रथ जैसे पहिये है तथा सात घोड़े बने हुए हैं।
शिक्षा एवं साहित्य
1. राजपूत शासको के समय आश्रम , पाठशालाओं मे शिक्षा दी जाती थी।
2. इस समय नालंदा , विक्रमशिला , कन्नौज आदि शिक्षा के प्रमुश केंद्र थे।
3. इनके काल मे नाटक तथा ग्रन्थ भी लिखे गए थे।
4. ग्रंथो के नाम – राजशेखर की बाल रामायण , माघ का शिशुपालन (नाटक) आदि।
5. कई भाषाओ मे भी लिखि गई – हिंदी , बंगाली, मराठी , उड़ीसा , गुजरती आदि।
भवन निर्माण
मोटे तौर पर भवन निर्माण की दो शैलियाँ थी – उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय।
उत्तर भारतीय मंदिर
यह पिरामिड की तरह होते है। इनका ऊपर की और अपने नीचेवाले खंड से छोटा होता जाता था , और सबसे ऊपर जाकर छोटे तथा गोलाकार टुकड़े मे हो जाता था।
दक्षिण भारतीय मंदिर
इन मंदिरो को बनाने के लिए पथरो का उपयोग किया जाता था। वे बड़े बड़े पथरो को एक से ऊपर एक चढ़ाते जाते थे जिससे वे वर्षो तक टिक्के रहते थे।
Leave a Reply