1. गुप्त वंश के पतन के पश्चात् पुष्यभूति ने थानेश्वर में एक नवीन राजवंश की स्थापना की जिसे ‘पुष्यभूति वंश’ कहा गया।
2. पुष्यभूति शिव का उपासक था।
3. हर्षवर्द्धन (इस राजवंश का सबसे प्रतापी शासक) के लेखों में उसके केवल चार पूर्वजों नरवर्द्धन, राज्यवर्द्धन, आदित्यवर्द्धन एवं प्रभाकरवर्द्धन का उल्लेख मिलता है।
4. थानेश्वर राज्य के 3 आरंभिक शासक मामूली सरदार थे।
5. चौथे शासक प्रभाकरवर्द्धन को इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक माना जाता है।
6. प्रथम तीन शासकों ने मात्र महाराज की उपाधि धारण की जबकि ‘प्रभाकरवर्द्धन’ ने परमभट्टारक एवं महाराजाधिराज आदि उपाधियाँ धारण की।
7. प्रभाकरवर्द्धन ने अपनी पुत्री राजश्री का परिणय ग्रहवर्मन से किया जो मौखरी वंश का था।
8. देवगुप्त (मालवा नरेश) एवं शशांक (गौड़ का शासक) ने मिलकर ग्रहवर्मन की हत्या कर दी।
9. प्रभाकरवर्द्धन के उत्तराधिकारी राज्यवर्द्धन की भी शशांक ने हत्या कर दी।
हर्षवर्द्धन
1. 606 ई० में 16 वर्ष की आयु में हर्षवर्द्धन राजगद्दी पर बैठा।
2. आरंभ में हर्षवर्द्धन की राजधानी थानेश्वर थी, बाद में उसने इसे कन्नौज स्थानांतरित कर दिया।
3. हर्षचरित् की रचना हर्ष के दरबारी कवि वाणभट्ट ने की।
4. हर्षवर्द्धन स्वयं एक बड़ा साहित्यकार था तथा उसने रत्नावली, नागानंद एवं प्रियदर्शिका जैसी प्रसिद्ध नाट्य-ग्रंथों की रचना की। वह शैव धर्म का उपासक था।
5. हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत की यात्रा पर आया। ह्वेनसांग को यात्री सम्राट एवं नीति का पंडित कहा गया है।
6. हर्षवर्द्धन को एक अन्य नाम शिलादित्य से भी जाना जाता है।
7. हर्षवर्द्धन उत्तरी भारत का अंतिम महान हिंदू सम्राट था, उसने परमभट्टारक की उपाधि धारण की।
हर्षवर्द्धन का दान
हर्षवर्द्धन की मृत्यु 647 ई० में हुई। लगभग 40 वर्षो तक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद केंद्रीय शासन सत्ता छिन्न भिन्न हो गई और उत्तर तथा दक्षिण भारत मे छोटे छोटे राजवंश की स्थापना हुई ।
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