अतीत के बारे में
बीते हुए समाये से यह पता लगता है की उस समय के लोगो को समझने और जानने का एक साधन होता है।
अतीत के समय एक ऐसा युग था जब लोग पड़ना लिखना नहीं जानने थे। अतीत के लोगो के जीवन के विषय मे हमें जानकारी उनके द्वारा छोड़ी गई वस्तुओ जैसे मिटटी के बर्तन,
खिलौने, हथियार, से मिलता है। यह जमीन के अंदर खुदाई के के दौरान इन अवषेसो का पता चलता है। यह हमारे इतिहासकारो के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अतीत के समय लोग ताड़पत्र, भोजपत्र पर लिखते थे। एवं कभी कभी वे बड़ी बड़ी शिलाओं, स्तम्भों, पत्थर की दीवारों पर लिखते थे
ताड़पत्र
भोजपत्र
मुद्रा औरअभिलेख
तत्कालीन समय मे मुद्राओ मे शासको का नाम होता है। उस समय की मुद्रा के आकर और प्रकार से उस समय की कला तथा धातु से उनकी आर्थिक स्थिति की जानकरि प्राप्त होती थी। साथ ही सिक्को से वाला के शासको तथा साम्राजयो का पता लगाया जा सकता था।
जैसा की हम देख सकते है की इस चित्र मे, गुप्त शासक कुमारगुप्त प्रथम को घुड़सवारी करते हुए दिखया गया है। जिससे हम समझ सकते है की वे एक अच्छे घुड़सवार थे।
लुम्बिनी (नेपाल) अभिलेख (अशोक)
(i) रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ लेख ब्राह्मी लिपि में है और बाएँ ओर से दाईं ओर को पढ़ा जाता है।
(ii) यहाँ से प्राप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद लुम्बिनी आया था। उसने यहाँ अर्चना की क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है। उसने रुम्मिनदेई में एक बड़ी दीवार बनवायी और एक प्रस्तर स्तम्भ स्थापित कराया।
(iii) इस अभिलेख में यह भी उल्लेख है कि उसने लुम्बिनी गाँव के धार्मिक कर माफ कर दिये और मालगुजारी के रूप में आठवाँ हिस्सा तय कर दिया।
ब्राह्मी लिपि में लिखा गया, स्तंभ का शिलालेख नेपाल में सबसे पुराना कहा जाता है और पढ़ता है: “राजा पियादासी (अशोक), देवों के प्रिय, राज्याभिषेक के 29 वें वर्ष में, लुम्बिनी की यात्रा की और अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। यह महसूस करते हुए कि बुद्ध का जन्म यहीं हुआ था, एक पत्थर की रेलिंग बनाई गई और एक पत्थर का स्तंभ खड़ा किया गया।
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