Notes For All Chapters – हिंदी Class 10
श्रम साधना
लेखक परिचय – श्रीकृष्णदास जाजू
जन्म: 1882, अकासर (राजस्थान)
मृत्यु: 1955, जयपुर (राजस्थान)
वे महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर समाज सेवा में जुट गए।
उन्हें सम्मानपूर्वक ‘तपोधन’ कहा जाता था।
प्रमुख कृतियाँ:
- ‘स्वराज्य प्राप्ति में’
- ‘सुधारक मीराबाई’
- ‘जीवन का तात्त्विक अधिष्ठान’
उन्होंने कई पुस्तकों के संपादन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
पाठ परिचय
“श्रम साधना” एक वैचारिक निबंध है जिसमें लेखक ने श्रम की प्रतिष्ठा, संपत्ति के स्वामित्व, मानव श्रम, आर्थिक और सामाजिक समानता पर बल दिया है। लेखक का मानना है कि समाज में श्रम का उचित मूल्य और सम्मान मिलना चाहिए।
मुख्य बिंदु:
1. गुलामी की प्रथा और उसका अंत
- प्राचीन समय में गुलामी की प्रथा हजारों वर्षों तक चली।
- विद्वानों और संतों के बावजूद यह प्रथा जारी रही क्योंकि गुलाम इसे अपनी नियति मानते थे।
- जब लोगों का विवेक जागृत हुआ तो उन्होंने इस अन्यायपूर्ण प्रथा का विरोध किया।
- अंततः संघर्ष और युद्धों के बाद गुलामी की प्रथा समाप्त हुई।
2. राजाओं की सत्ता का अंत
- हजारों वर्षों तक राजतंत्र की व्यवस्था चलती रही, जहाँ एक राजा हजारों लोगों पर शासन करता था।
- जब लोगों ने यह प्रश्न उठाया कि क्या एक व्यक्ति को इतने लोगों पर हुकूमत करने का अधिकार है, तो इसके विरुद्ध विद्रोह हुआ।
- संघर्ष और युद्धों के बाद राजसत्ता समाप्त होकर लोकतंत्र की स्थापना हुई।
3. संपत्ति और उसके स्वामित्व की अवधारणा
- लोग सामान्यतः संपत्ति को रुपया, सोना-चाँदी और नोट मानते हैं, लेकिन यह गलत धारणा है।
- संपत्ति वे वस्तुएँ होती हैं जो मानव उपयोग के लिए आवश्यक होती हैं, जैसे—अन्न, वस्त्र, मकान, औजार आदि।
- संपत्ति का निर्माण दो मुख्य साधनों से होता है:
- प्राकृतिक संसाधन
- मानव श्रम
- बिना श्रम के संपत्ति का निर्माण संभव नहीं है।
4. श्रम और बुद्धिजीवी कार्यों में अंतर
- समाज में कार्य दो प्रकार के होते हैं:
- श्रमजीवी कार्य: इसमें शारीरिक श्रम किया जाता है, जैसे—किसान, मजदूर, बढ़ई, लोहार आदि।
- बुद्धिजीवी कार्य: इसमें बौद्धिक श्रम किया जाता है, जैसे—डॉक्टर, वकील, शिक्षक, व्यापारी आदि।
- समाज के संचालन के लिए दोनों कार्य महत्वपूर्ण हैं, लेकिन बुद्धिजीवियों की आय अधिक होती है जबकि श्रमिकों की स्थिति दयनीय बनी रहती है।
5. आर्थिक विषमता और श्रमिकों की स्थिति
- समाज में श्रमिकों का योगदान महत्वपूर्ण है, फिर भी उन्हें उचित मजदूरी और सम्मान नहीं मिलता।
- किसान पूरे वर्ष मेहनत करता है, लेकिन वह खुद की आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाता।
- दूसरी ओर, व्यापारी और उद्योगपति श्रमिकों के श्रम से धन अर्जित कर अमीर बन जाते हैं।
- इस असमानता को समाप्त करने के लिए श्रम का उचित मूल्य और न्यायपूर्ण वितरण आवश्यक है।
6. श्रम की प्रतिष्ठा और महात्मा गांधी के विचार
- महात्मा गांधी का मानना था कि हर व्यक्ति को बौद्धिक श्रम के साथ-साथ शारीरिक श्रम भी करना चाहिए।
- उन्होंने श्रमिकों की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए रचनात्मक कार्यों को अपनाने पर बल दिया।
- उनका सुझाव था कि हर व्यक्ति दिन में चार घंटे शारीरिक श्रम और चार घंटे बौद्धिक श्रम करे।
- इससे समाज में श्रमिकों का सम्मान बढ़ेगा और आर्थिक समानता स्थापित होगी।
7. दान की अवधारणा और उसकी सीमाएँ
- अमीर लोग दान देकर समाज में योगदान देने का दावा करते हैं, जिससे अस्पताल, विद्यालय आदि बनते हैं।
- लेकिन यदि संपत्ति कुछ लोगों के पास केंद्रित न होकर समान रूप से वितरित हो, तो गरीबों को दान की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।
- समाज को दान से अधिक संपत्ति के समान वितरण की आवश्यकता है।
8. आर्थिक समानता और अहिंसा का मार्ग
- समाज में संपत्ति का उचित वितरण होना चाहिए, जिससे आर्थिक विषमता को समाप्त किया जा सके।
- कुछ देशों में हिंसा के माध्यम से यह प्रयास किया गया, लेकिन इसके कई दुष्परिणाम सामने आए।
- गांधीजी ने अहिंसा के माध्यम से आर्थिक समानता स्थापित करने की बात कही।
- उनका मानना था कि जैसे भारत ने राजनीतिक स्वतंत्रता अहिंसा के मार्ग से प्राप्त की, वैसे ही आर्थिक समानता भी अहिंसा से लाई जा सकती है।
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