Summary in Marathi
Summary in English
Summary in Hindi
Summary in Marathi
मॅरी कोम, मणिपूरच्या एका छोट्याशा खेड्यात जन्मलेली, तिच्या मेहनतीने आणि चिकाटीने जागतिक स्तरावरील उत्कृष्ट बॉक्सिंगपटूंपैकी एक बनली आहे. तिचे पालक जुम शेती करणारे साधे शेतकरी होते, आणि मॅरी आपल्या लहानपणापासूनच खेळांमध्ये रुची घेत होती. १९९८ साली मणिपूरमधील डिंगको सिंगने आशियाई खेळांमध्ये सुवर्णपदक जिंकले होते, त्याचा प्रभाव पडून मॅरीने बॉक्सिंगला सुरुवात करण्याचे ठरवले.
तिने २००० साली मणिपूर महिला बॉक्सिंग स्पर्धा आणि पश्चिम बंगालमधील प्रादेशिक स्पर्धा जिंकून आपल्या प्रवासाला सुरुवात केली. २००१ साली, तिने १८ व्या वर्षी पहिली आंतरराष्ट्रीय स्पर्धा खेळली आणि रौप्य पदक पटकावले. मॅरीने सहा जागतिक चॅम्पियनशिपमध्ये पदके जिंकण्याचा विक्रम केला आणि ती २०१२ च्या ऑलिम्पिकमध्ये पदक मिळवणारी पहिली भारतीय महिला बॉक्सर ठरली.
तिच्या यशाचा मुख्य आधार कठोर परिश्रम, आत्मविश्वास, आणि कुटुंबाचा पाठिंबा होता. तिच्या या प्रवासात तिने अनेक अडचणींवर मात केली, जसे की आर्थिक अडचणी आणि योग्य प्रशिक्षणाची कमतरता. तिच्या कथेमुळे आज अनेक महिला बॉक्सिंगमध्ये करियर करण्यासाठी प्रेरित होत आहेत. मॅरी कोम फक्त एक महान बॉक्सर नाही तर “सुपर मॉम” म्हणूनही प्रसिद्ध आहे, कारण ती आपल्या कुटुंबाची जबाबदारीही तितक्याच ताकदीने सांभाळते.
Summary in English
Mary Kom, born in a small village in Manipur, overcame poverty and hardship to become one of the world’s greatest boxers. Her parents were simple farmers practicing jhum cultivation, and Mary grew up helping them with farm work while pursuing her education. Inspired by Manipuri boxer Dingko Singh, who won a gold medal in the 1998 Asian Games, Mary decided to take up boxing despite societal challenges.
She began her boxing career in 2000 by winning the Manipur Women’s Boxing Championship and a regional championship in West Bengal. By 2001, at just 18 years old, she debuted internationally and won a silver medal at the AIBA Women’s World Boxing Championship. She went on to create history by winning medals in six World Championships, becoming a symbol of excellence in boxing. In 2012, she made India proud by winning an Olympic bronze medal in the flyweight category.
Mary’s journey was marked by intense dedication, resilience, and strong family support. She sparred with male boxers during her training and gained recognition for her tactical and fearless style. Today, she is not only a sports legend but also an inspiration for women aiming to break stereotypes and excel in sports. Her dual role as a champion boxer and a devoted mother earned her the title “Super Mom,” symbolizing her extraordinary life.
Summary in Hindi
मैरी कॉम, मणिपुर के एक छोटे से गाँव में जन्मी, गरीबी और कठिनाइयों को पार करते हुए विश्व की महानतम बॉक्सरों में से एक बनीं। उनके माता-पिता जुम खेती करने वाले साधारण किसान थे। बचपन से ही मैरी पढ़ाई के साथ-साथ खेतों में अपने माता-पिता की मदद करती थीं। 1998 में मणिपुर के डिंगको सिंह के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने से प्रेरित होकर मैरी ने बॉक्सिंग को करियर के रूप में चुनने का निश्चय किया।
उन्होंने 2000 में मणिपुर महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप और पश्चिम बंगाल की प्रादेशिक चैंपियनशिप जीतकर अपने करियर की शुरुआत की। 2001 में, मात्र 18 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदार्पण किया और एआईबीए महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीता। मैरी ने अपनी मेहनत और लगन से छह विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने का कीर्तिमान स्थापित किया। 2012 के ओलंपिक में, उन्होंने 51 किलोग्राम फ्लाईवेट श्रेणी में कांस्य पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित किया।
मैरी का सफर उनकी मेहनत, आत्मविश्वास और परिवार के समर्थन का प्रमाण है। उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान पुरुष मुक्केबाजों के साथ अभ्यास किया और अपने रणनीतिक कौशल के लिए प्रसिद्ध हुईं। आज वे सिर्फ एक महान खिलाड़ी ही नहीं बल्कि उन महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं जो समाज की रूढ़ियों को तोड़ना चाहती हैं। “सुपर मॉम” के रूप में भी उनकी पहचान है, क्योंकि वे अपने परिवार और करियर दोनों में अद्वितीय संतुलन बनाए रखती हैं।
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