वरदान माँगूँगा नहीं
परिचय:
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ प्रगतिवादी कवि थे। उनकी कविताओं में आत्मसम्मान, संघर्ष, मानवता, देशभक्ति और कर्तव्यपरायणता की झलक मिलती है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं – हिल्लोल, जीवन के गान, युग का मेल, मिट्टी की बारात आदि।
(लेखक: शिवमंगल सिंह ‘सुमन’)
कविता का सारांश:
यह कविता आत्मसम्मान, संघर्ष और स्वाभिमान पर आधारित है। कवि कहते हैं कि जीवन एक बड़ा संग्राम (युद्ध) है, जिसमें हार-जीत चलती रहती है। वे कभी दया की भीख नहीं माँगेंगे और किसी से कोई वरदान भी नहीं माँगेंगे।
कवि कहते हैं कि कठिनाइयों से डरना नहीं चाहिए और हमेशा कर्तव्य के मार्ग पर अडिग रहना चाहिए। चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, हमें संघर्ष करना चाहिए और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।
मुख्य बातें:
जीवन एक संघर्ष है – हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।
स्वाभिमान बनाए रखना चाहिए – दया की भीख माँगना गलत है।
कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए – चाहे कोई भी कठिनाई आए, हमें अपने कर्तव्य पर अडिग रहना चाहिए।
सुख-दुःख को समान समझना चाहिए – हार या जीत से प्रभावित हुए बिना आगे बढ़ते रहना चाहिए।
महत्वपूर्ण शब्दार्थ:
महा-संग्राम – बड़ा युद्ध
खंडहर – टूटी-फूटी जगह
ताप – गर्मी
अभिशाप – श्राप
तिल-तिल मिटना – धीरे-धीरे समाप्त होना
मुख्य पंक्तियाँ:
“यह हार एक विराम है, जीवन महा-संग्राम है” – हार जीवन का अंत नहीं है, यह सिर्फ एक छोटा सा विराम (ब्रेक) है।
“संघर्ष पथ पर जो मिले, यह भी सही वह भी सही” – संघर्ष के मार्ग में जो भी कठिनाइयाँ आएँ, उन्हें स्वीकार करना चाहिए।
“चाहे हृदय को ताप दो, चाहे मुझे अभिशाप दो, कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं” – कोई भी परिस्थिति आए, मैं अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटूँगा।
निष्कर्ष:
इस कविता से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हर परिस्थिति में संघर्ष करते रहना चाहिए, हार से डरना नहीं चाहिए और आत्मसम्मान के साथ जीना चाहिए।
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