कबीर (पूरक पठन)
परिचय
- कबीरदास हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन के महान संत-कवि थे।
- उनकी रचनाओं में समाज की बुराइयों पर तीखा प्रहार और ईश्वर भक्ति का संदेश मिलता है।
- वे निर्गुण भक्ति धारा के संत थे और हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे।
कबीर के विचार और शिक्षाएँ
1. भक्ति और ईश्वर प्रेम:
कबीर का मानना था कि ईश्वर मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि इंसान के हृदय में बसता है।
वे आडंबरों और दिखावे की भक्ति को नकारते थे।
2. सत्य और ईमानदारी:
कबीर सत्य को सबसे बड़ा धर्म मानते थे।
वे कहते थे कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और दूसरों को धोखा नहीं देना चाहिए।
3. जाति-पाति का विरोध:
कबीर ने ऊँच-नीच, जाति और धर्म के भेदभाव का विरोध किया।
उनके अनुसार, सब इंसान बराबर हैं, कोई छोटा-बड़ा नहीं होता।
4. संतों का संग:
वे अच्छे लोगों की संगति करने और बुराई से दूर रहने की सलाह देते थे।
उन्होंने कहा, “सत्संगति से मन को शांति और ज्ञान की प्राप्ति होती है।”
5. गुरु का महत्व:
कबीर के अनुसार, गुरु जीवन का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है, क्योंकि वह सत्य का मार्ग दिखाता है।
उनका प्रसिद्ध दोहा है:
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय॥
कबीर की भाषा और शैली
उन्होंने अपनी रचनाएँ ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ में लिखी।
उनकी भाषा सरल, स्पष्ट और आम जनता की भाषा थी।
उनके दोहे छोटे होते हैं लेकिन गहरे अर्थ रखते हैं।
प्रेरणाएँ (इस पाठ से क्या सीखें?)
1. हमें किसी भी धर्म, जाति या ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं करना चाहिए।
2. सच्चाई और ईमानदारी को अपनाकर ही हम अच्छे इंसान बन सकते हैं।
3. गुरु और माता-पिता का सम्मान करना चाहिए।
4. ईश्वर को पाने के लिए बाहरी आडंबर नहीं, बल्कि सच्ची भक्ति जरूरी है।
5. अच्छे कार्यों में विश्वास रखें और समाज के सुधार के लिए प्रयास करें।
कुछ प्रसिद्ध दोहे:
1. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
(अहंकार करने वाले बड़े व्यक्ति भी किसी के काम नहीं आते।)
2. पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥
(सिर्फ किताबें पढ़ने से ज्ञान नहीं मिलता, प्रेम और करुणा ही सच्चा ज्ञान है।)
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