कह कविराय
परिचय
जन्म: 1713 ई. (अनुमानित)
रचनाएँ: नीति, वैराग्य और अध्यात्म से जुड़ी कविताएँ लिखीं।
मुख्य कृति: गिरिधर कविराय ग्रंथावली, जिसमें 500 से अधिक दोहे और कुंडलियाँ हैं।
कुंडलियों की विशेषताएँ
- कुंडली दोहा और रोला के मेल से बनती है।
- दोहा की अंतिम पंक्ति ही रोला की पहली पंक्ति बनती है।
- जिस शब्द से शुरू होती है, उसी से समाप्त होती है।
मुख्य दोहे और उनका अर्थ
1. सच्चे मित्र की पहचान
- विपत्ति में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है।
- जब तक धन है, तब तक मित्र साथ रहते हैं, लेकिन धन न रहने पर साथ छोड़ देते हैं।
2. गुण और पहचान
- जैसे कौआ और कोयल दिखने में एक जैसे होते हैं, लेकिन कोयल की आवाज मधुर होती है।
- अच्छे गुणों वाले व्यक्ति की पहचान उसके व्यवहार से होती है।
3. बिना सोचे-विचारे काम करने का परिणाम
- जो व्यक्ति बिना सोचे-समझे कार्य करता है, वह बाद में पछताता है।
- इससे उसका काम बिगड़ता है और लोग उसका मजाक उड़ाते हैं।
4. बीते समय को भूलकर आगे बढ़ना
- जो बीत गया उसे भूलकर आगे की सोचनी चाहिए।
- वर्तमान में जो सही लगे, वही करना चाहिए।
5. धन और समाज में व्यवहार
- धन अधिक हो तो उसे अच्छे कार्यों में लगाना चाहिए।
- जरूरत से ज्यादा धन संचित करने से समस्याएँ बढ़ती हैं।
मुख्य सीख
- सच्चे मित्र वही होते हैं जो मुश्किल समय में साथ दें।
- अच्छे गुणों को अपनाना चाहिए, तभी समाज में पहचान बनती है।
- बिना सोच-विचार के कार्य नहीं करना चाहिए।
- बीती बातों को भूलकर आगे की योजना बनानी चाहिए।
- धन का सदुपयोग करना चाहिए, न कि संग्रह में ही लगे रहना चाहिए।
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