संस्कृतम्
श्रीकृष्णः गोकुले गोपबालकैः सह वसति। ते सर्वे मिलित्वा भोजनं कुर्वन्ति। गोपबालाः विविधान्नानि आनयन्ति यथा – दध्योदनं, पृथुकाः, मोदकाः, वटिकाः, अपूपाः इत्यादि। श्रीकृष्णः सर्वान्नानि मिश्रयित्वा खादितुं इच्छति। सः वदति – “अन्नं समं भवेत्, मनांसि च समानानि स्युः।” ततः सर्वे बालकाः सहभोजनस्य आनन्दं अनुभवन्ति। श्रीकृष्णस्य शिक्षायाः मुख्यं संदेशः अस्ति – “सर्वे समानाः भवन्तु, सहभोजनं मिलित्वा कुर्वन्तु, अन्नं विषये भेदभावः न भवेत्।”
मराठीत
श्रीकृष्ण गोकुळात गोपाळ मुलांसोबत राहत असे। एक दिवस सगळे मिळून भोजन करायला बसले। प्रत्येकाने वेगवेगळे पदार्थ आणले, जसे की – दहीभात, चुरमुरे, मोदक, वडे आणि अप्पे। श्रीकृष्णाने सर्व अन्न एकत्र करून खाण्याची इच्छा व्यक्त केली आणि म्हणाला, “भोजन एकत्र असेल, तर आपली मनेही एकत्र राहतील।” त्यामुळे सगळ्यांनी मिळून भोजनाचा आनंद घेतला। या गोष्टीतून श्रीकृष्णाने आपल्याला शिकवले की भोजनात आणि समाजात कोणताही भेदभाव नसावा, सर्वांनी एकत्र प्रेमाने राहावे आणि एकत्र भोजन करावे।
हिन्दी में
श्रीकृष्ण गोकुल में गोपबालकों के साथ रहता था। एक दिन सभी दोस्त साथ में भोजन करने बैठे। हर किसी ने अलग-अलग व्यंजन लाए, जैसे – दही-भात, चिवड़ा, मोदक, वड़े और अप्पम। श्रीकृष्ण ने सभी चीजों को मिलाकर खाने की इच्छा जताई और कहा, “भोजन एक समान होगा, तो मन भी समान होंगे।” इसके बाद सभी ने प्रेमपूर्वक भोजन किया और आनंद लिया। इस कहानी से श्रीकृष्ण हमें यह सिखाते हैं कि समाज में और भोजन में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए, सबको मिलकर प्रेम से रहना चाहिए और साथ में भोजन करना चाहिए।
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