आत्मनिर्भरता
Summary in Marathi
आचार्य रामचंद्र शुक्ल यांच्या “आत्मनिर्भरता” या निबंधात स्वावलंबन, आत्मसन्मान आणि आत्मनिर्भरतेचे महत्त्व स्पष्ट केले आहे. लेखकाने सांगितले आहे की, जो मनुष्य आपल्या स्वतःच्या कष्टावर विश्वास ठेवतो आणि आत्मनिर्भरतेने जीवन जगतो, तोच खऱ्या यशाच्या शिखरावर पोहोचू शकतो. प्रत्येक माणसाने आपल्या आत्मसन्मानाची जाणीव ठेवून इतरांशी नम्रतेने वागले पाहिजे. त्याने आपल्या वडिलधाऱ्यांचा सन्मान केला पाहिजे, लहानांवर प्रेम केले पाहिजे आणि समवयस्कांशी सौहार्दाने वागले पाहिजे. ही सर्व मूल्ये आत्मसन्मानासाठी आवश्यक असतात.
लेखक सांगतात की, प्रत्येक व्यक्तीने आपल्या निर्णयक्षमतेवर विश्वास ठेवला पाहिजे. कोणताही मित्र किंवा मार्गदर्शक आपल्या कामाचे ओझे उचलू शकत नाही. यशस्वी होण्यासाठी आपले विचार स्वतंत्र ठेवणे गरजेचे आहे. जर एखादी व्यक्ती फक्त इतरांच्या सल्ल्यावरच अवलंबून राहत असेल, तर ती स्वतःच्या विकासामध्ये मागे पडेल. माणसाने स्वतःच्या विवेकबुद्धीचा वापर करून योग्य आणि अयोग्य यामधील फरक ओळखायला शिकले पाहिजे.
इतिहासात अनेक असे धैर्यवान आणि दृढनिश्चयी व्यक्ती होऊन गेल्या आहेत, ज्यांनी आपल्या तत्वांशी तडजोड केली नाही. उदा. राजा हरिश्चंद्र यांच्यावर अनेक संकटे आली, पण तरीही त्यांनी कधीही सत्याचा त्याग केला नाही. त्यांची प्रतिज्ञा होती की, “चंद्र, सूर्य आणि हे विश्व नष्ट होऊ शकते, पण राजा हरिश्चंद्र सत्याचा त्याग करणार नाही.” याच आत्मनिर्भरतेमुळे छत्रपती शिवाजी महाराजांनी मुघलांच्या मोठ्या सैन्याशी लढा दिला आणि विजय मिळवला.
स्वावलंबन हा यशाचा पाया आहे. जो मनुष्य दुसऱ्यांवर अवलंबून न राहता स्वतःच्या बुद्धीचा, कष्टाचा आणि आत्मशक्तीचा उपयोग करून कार्य करतो, तोच खऱ्या अर्थाने यशस्वी होतो. लेखक सांगतात की, प्रत्येक माणसाने आपले ध्येय उंच ठेवले पाहिजे आणि त्यासाठी सातत्याने प्रयत्न केले पाहिजेत. कारण ज्या व्यक्तीचे ध्येय उच्च असते, त्याच व्यक्तीचे कार्य देखील महान होते. आत्मनिर्भरता हीच खरी ताकद आहे जी कोणत्याही परिस्थितीत माणसाला जगण्याची प्रेरणा देते.
Summary in Hindi
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी के निबंध “आत्मनिर्भरता” में स्वावलंबन, आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता के महत्व को विस्तार से बताया गया है। लेखक का मानना है कि जो व्यक्ति अपने स्वयं के परिश्रम पर विश्वास करता है और आत्मनिर्भर बनकर जीवन जीता है, वही सच्ची सफलता प्राप्त कर सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को आत्मसम्मान की भावना के साथ अपने बड़ों का आदर करना चाहिए, छोटे बच्चों से स्नेह करना चाहिए और समान उम्र के लोगों के साथ मित्रता तथा प्रेमभाव रखना चाहिए। ये सभी गुण आत्मसम्मान बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
लेखक बताते हैं कि व्यक्ति को अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए और अपने विवेक तथा बुद्धि का सही प्रयोग करना चाहिए। कोई भी मित्र या मार्गदर्शक आपके कार्यों की ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकता। यदि कोई व्यक्ति हमेशा दूसरों की सलाह पर निर्भर रहेगा, तो वह कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा। इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनने का प्रयास करना चाहिए।
इतिहास में कई ऐसे महान व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उदाहरण के लिए, राजा हरिश्चंद्र पर कई कठिनाइयाँ आईं, लेकिन उन्होंने कभी सत्य का त्याग नहीं किया। उनकी प्रतिज्ञा थी—
“चाँद, सूरज और यह सारा संसार नष्ट हो सकता है, लेकिन राजा हरिश्चंद्र सत्य को कभी नहीं छोड़ेंगे।”
इसी तरह, महाराणा प्रताप ने जंगलों में रहकर कठिनाइयाँ सहीं, अपनी पत्नी और बच्चों को भूख से तड़पते देखा, लेकिन कभी भी आत्मसमर्पण नहीं किया। उनका मानना था कि “स्वाभिमान की रक्षा जितनी स्वयं कर सकते हैं, उतनी कोई और नहीं कर सकता।”
छत्रपति शिवाजी महाराज का उदाहरण भी दिया गया है। उन्होंने अपनी सेना को प्रेरित किया और मुगलों की विशाल सेना से लड़ाई लड़ी। इसी प्रकार, हनुमान जी ने अकेले माता सीता की खोज की और सफल हुए। कोलंबस ने अमेरिका महाद्वीप की खोज आत्मनिर्भरता की भावना से ही की।
लेखक यह समझाते हैं कि आत्मनिर्भरता ही सच्ची ताकत है। इसी कारण, निर्धन लोग भी गरीबी से बाहर निकल सकते हैं, अनपढ़ लोग शिक्षित बन सकते हैं और मेहनती व्यक्ति सफलता की ऊँचाइयों को छू सकता है। आत्मनिर्भरता से ही व्यक्ति में यह आत्मविश्वास आता है कि “अगर रास्ता नहीं मिलेगा, तो मैं रास्ता बना लूँगा।” इसी आत्मनिर्भरता के कारण एकलव्य बिना गुरु के ही महान धनुर्धर बन गया।
निष्कर्षतः, आत्मनिर्भरता ही वह शक्ति है, जो किसी भी व्यक्ति को असाधारण बना सकती है। यह व्यक्ति के जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाती है और उसे श्रेष्ठ गुणों से भर देती है। जो व्यक्ति आत्मनिर्भरता को अपनाता है, वही जीवन में सच्ची सफलता प्राप्त करता है।
Leave a Reply