पूर्ण विश्राम
लेखक परिचय
नाम: सत्रकाम बिद् रालंकार
जन्म: 1935, लाहौर (अविभाजित भारत)
विशेषताएँ:
- सफल संपादक, लेखक और कवि
- सरल एवं सुबोध भाषा
- रोचक, सुगम्य और व्यावहारिक लेखन शैली
- व्यक्ति एवं चरित्र निर्माण पर विशेष लेखन
प्रमुख कृतियाँ:
- स्वतंत्रता पूर्व चरित्र निर्माण
- मानसिक शक्ति के चमत्कार
- सफल जीवन (निबंध संग्रह)
- वीर सावरकर, वीर शिवाजी, सरदार पटेल, महात्मा गांधी (जीवनी)
कहानी का सारांश
यह एक हास्य-व्यंग्य कथा है जो इस तथ्य को उजागर करती है कि जीवन की आपाधापी में पूर्ण विश्राम के अवसर मिलना बहुत कठिन है। यदि कभी समय भी मिले, तो घरेलू उलझनों के कारण हम उसे पूरी तरह से नहीं जी पाते।
डॉक्टर की सलाह:
- डॉक्टर लेखक को विश्राम करने की सलाह देते हैं।
- लेखक की पत्नी उत्साहित होकर यात्रा की योजना बनाती हैं।
यात्रा की तैयारियाँ:
- पत्नी ने लंबी सूची बनाई जिसमें कई वस्तुएँ शामिल थीं।
- आवश्यक चीजों के नाम लिखकर पति को सामान लाने भेजा गया।
- घर और मोटर की मरम्मत के कार्यों में पूरा दिन बीत गया।
यात्रा के दौरान परेशानियाँ:
- यात्रा की पूरी तैयारी तनावपूर्ण रही।
- आवश्यक वस्तुओं को एकत्रित करने में ही सारा समय निकल गया।
- समुद्र किनारे पहुँचने के बाद भी नई चिंताएँ उठ खड़ी हुईं।
अंतिम मोड़ (कहानी का हास्यपूर्ण भाग):
- समुद्र में नहाते समय पत्नी को घर की खिड़की बंद करने की चिंता सताने लगती है।
- पति-पत्नी तुरंत घर लौट आते हैं और देखते हैं कि खिड़की पहले से बंद थी।
- “पूर्ण विश्राम” की उनकी योजना पूरी तरह विफल हो जाती है।
मुख्य पात्र
- लेखक (पति) – एक जिम्मेदार व्यक्ति जो अपनी पत्नी की इच्छाओं को पूरा करता है लेकिन अंत में स्वयं को तनाव में पाता है।
- पत्नी – एक व्यस्त महिला जो घर और यात्रा की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है, लेकिन अधिक चिंता के कारण विश्राम नहीं कर पाती।
कहानी से सीख
- जीवन में पूर्ण विश्राम प्राप्त करना आसान नहीं है।
- व्यर्थ की चिंताओं से बचना चाहिए।
- विश्राम का असली अर्थ केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक शांति भी है।
महत्वपूर्ण शब्दार्थ
- धौंकनी करना – हवा भरना
- झल्लाना – गुस्सा करना
- आँखों से ओझल होना – ग़ायब हो जाना
- चेहरे का रंग पीला पड़ना – डर जाना
- धुन सवार होना – किसी चीज़ को लेकर बहुत ज़िद करना
निष्कर्ष: यह कहानी एक व्यंग्यात्मक शैली में हमें यह सिखाती है कि “पूर्ण विश्राम” केवल आराम करने से नहीं मिलता, बल्कि हमें मानसिक रूप से भी चिंताओं से मुक्त रहना चाहिए।
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