मेरा विद्रोह
1. लेखक परिचय
लेखिका: सूर्यबाला
- जन्म: 1943, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- समकालीन व्यंग्य और कथा साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान
- प्रमुख कृतियाँ: “मेरे संवाद पत्र”, “अग्निपाखी”, “श्यामनी-कथा”, “इक्कीस कहानियाँ” आदि
- पुरस्कार: प्रियदर्शिनी पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ पुरस्कार, व्यंग्य श्री पुरस्कार आदि
2. कहानी का सारांश
यह कहानी एक किशोर बालक के विद्रोही स्वभाव को दर्शाती है। बालक अपने पिता की महत्वाकांक्षाओं और कठोर अनुशासन से बंधन महसूस करता है। पिता उसे पढ़ाई में सफल होते देखना चाहते हैं, लेकिन बालक अपनी इच्छाओं को पूरा न कर पाने के कारण विद्रोही बन जाता है। अंततः उसे अपने व्यवहार पर पछतावा होता है और वह अपने पिता से क्षमा माँगता है।
3. मुख्य पात्र
- मुख्य पात्र (बालक) – एक विद्रोही स्वभाव वाला किशोर, जो अपने पिता के अनुशासन और अपेक्षाओं से परेशान रहता है।
- पिता – अनुशासनप्रिय और सख्त स्वभाव के व्यक्ति, जो अपने बेटे को एक सफल इंसान बनते देखना चाहते हैं।
- माँ – भावुक और स्नेही महिला, जो बेटे और पति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती है।
- शालू (छोटी बहन) – अनुशासनप्रिय और आज्ञाकारी लड़की, जिसे बालक “चमची” कहकर चिढ़ाता है।
- माँजू (छोटा भाई) – नन्हा बालक, जिसे पिता प्यार करते हैं, जिससे मुख्य पात्र को जलन होती है।
- रमन (मित्र) – वह लड़का जिसकी जन्मदिन की पार्टी का ज़िक्र किया गया है।
4. महत्वपूर्ण घटनाएँ
घर में पिता और पुत्र के बीच मतभेद
- बालक देर से घर लौटता है, जिससे पिता नाराज़ होते हैं।
- पिता का कठोर रवैया उसे बाग़ी बना देता है।
पढ़ाई से विद्रोह
- पिता उसे अंग्रेज़ी माध्यम में पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन बालक को यह पसंद नहीं।
- वह जानबूझकर पढ़ाई में रुचि नहीं लेता ताकि अपने पिता को दुखी कर सके।
पिकनिक में न जाने देने पर विरोध
- पूरी कक्षा पिकनिक जा रही थी, लेकिन पिता ने उसे अनुमति नहीं दी।
- पिता से झगड़ा हुआ, लेकिन अंततः मार खाने के बाद उसने हार मान ली।
रमन के जन्मदिन का निमंत्रण
- मित्र रमन ने उसे जन्मदिन पर बुलाया, लेकिन पिता ने मना कर दिया।
- पिता की पिटाई के बाद माँ ने पिता को मना लिया और उसे जाने दिया।
- वहाँ जाकर उसने शानदार सजावट और खुशहाल माहौल देखा, जिससे उसे अपने घर की स्थिति पर और गुस्सा आया।
परीक्षा में असफलता का निश्चय
- पिता के व्यवहार से चिढ़कर उसने ठान लिया कि वह पढ़ाई में विफल रहेगा।
- वह अपने खराब प्रदर्शन को पिता की हार के रूप में देखने लगा।
पिता की निराशा और आत्मबोध
- जब वह नटखट की दुकान पर था, तब उसने अपने पिता को बहुत उदास देखा।
- उसने पहली बार महसूस किया कि पिता उसके भविष्य को लेकर चिंतित हैं।
- उसे अपनी गलतियों का अहसास हुआ और उसने पिता से माफी मांग ली।
5. प्रमुख विषय-वस्तु
- पिता-पुत्र का संघर्ष – कहानी में एक पिता की कठोरता और बेटे के विद्रोही स्वभाव के बीच का टकराव दिखाया गया है।
- महत्वाकांक्षा और अपेक्षाएँ – माता-पिता अपने बच्चों से बहुत उम्मीदें रखते हैं, लेकिन हर बच्चा उन्हें पूरा नहीं कर पाता।
- मनोवैज्ञानिक विश्लेषण – कहानी में एक किशोर मन की भावनाओं और उसके विद्रोही स्वभाव का सटीक चित्रण किया गया है।
- आत्मबोध – अंत में बालक को समझ आता है कि पिता उसे बुरा नहीं चाहते, बल्कि उसके भले के लिए ही कठोर हैं।
6. कहानी से सीख
- माता-पिता की कठोरता हमेशा बुरी नहीं होती, वे बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित होते हैं।
- विद्रोह और गुस्से में लिए गए फैसले अक्सर नुकसानदायक होते हैं।
- माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद और समझदारी होनी चाहिए।
- किसी भी रिश्ते में गलतफहमी को समय रहते सुलझा लेना चाहिए, नहीं तो बहुत देर हो सकती है।
7. शब्दार्थ
- मचलना – खुशी में उछलना
- डपटना – डाँटना
- मटरगश्ती – इधर-उधर घूमना
- खीजना – चिढ़ना
- बड़बड़ाना – मन ही मन गुस्से में बोलना
8. अनुच्छेद लेखन
विषय: पिता की भूमिका हमारे जीवन में हमारे माता-पिता हमारे भविष्य को संवारने के लिए कई तरह के त्याग करते हैं। वे हमें सही राह पर ले जाने के लिए कभी-कभी कठोर भी हो जाते हैं। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि उनकी हर सख्ती हमारे भले के लिए होती है। हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उनकी भावनाओं को समझना चाहिए।
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