स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है
1. परिचय
लोकमान्य बाल गंगाधर टिळक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता, समाज सुधारक और क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपने विचारों और कार्यों से भारतीय जनता में स्वराज्य की भावना जगाई। वे स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले पहले नेता थे, जिन्होंने कहा था – “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा!”
2. लोकमान्य टिळक का जीवन परिचय
- पूरा नाम: बाल गंगाधर टिळक
- जन्म: 23 जुलाई 1856, रत्नागिरी, महाराष्ट्र
- शिक्षा: पुणे के डेक्कन कॉलेज से स्नातक
- कार्यक्षेत्र: समाज सुधार, शिक्षा, पत्रकारिता, राजनीति
- मृत्यु: 1 अगस्त 1920
3. स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
स्वराज्य की संकल्पना:
- टिळक जी ने सबसे पहले “स्वराज्य” शब्द को लोकप्रिय बनाया।
- उन्होंने भारतीय जनता को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया।
होमरूल आंदोलन:
- 1916 में एनी बेसेंट के साथ मिलकर होमरूल आंदोलन की शुरुआत की।
- इसका उद्देश्य भारत में स्वशासन (स्वराज) की स्थापना करना था।
अंग्रेजों का विरोध:
- उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की।
- अंग्रेजों ने उन्हें 1908 में राजद्रोह के आरोप में मांडले (बर्मा) की जेल में डाल दिया।
राष्ट्रीय एकता के लिए योगदान:
- गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती की शुरुआत की ताकि समाज में राष्ट्रीय एकता बनी रहे।
4. पत्रकारिता में योगदान
केसरी और मराठा समाचार पत्र:
- ‘केसरी’ (मराठी) और ‘मराठा’ (अंग्रेज़ी) अखबारों के माध्यम से लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।
- इन अखबारों में उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की।
राजद्रोह का आरोप:
- ब्रिटिश सरकार ने ‘केसरी’ में छपे लेखों के कारण उन्हें जेल भेज दिया।
5. समाज सुधार में योगदान
शिक्षा का प्रचार-प्रसार:
- टिळक जी का मानना था कि शिक्षा ही देश को स्वतंत्र बना सकती है।
- उन्होंने कई स्कूलों और शिक्षण संस्थानों की स्थापना की।
धार्मिक और सामाजिक सुधार:
- उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का विरोध किया।
- वे बाल विवाह के विरोधी थे और स्त्री शिक्षा का समर्थन करते थे।
राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा:
- गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती को सार्वजनिक रूप से मनाने की परंपरा शुरू की, जिससे लोगों में एकता बढ़ी।
6. प्रमुख रचनाएँ और विचार
‘गीता रहस्य’ पुस्तक:
- जेल में रहते हुए उन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक ग्रंथ लिखा।
- इसमें कर्मयोग और कर्तव्य पालन पर विशेष जोर दिया गया है।
स्वराज्य का सिद्धांत:
- वे मानते थे कि बिना संघर्ष के स्वतंत्रता नहीं मिलेगी।
- उनका विचार था कि अंग्रेजों से भीख मांगने के बजाय उनसे लड़कर स्वराज प्राप्त करना चाहिए।
7. उपाधियाँ और सम्मान
- जनता ने उनके योगदान को देखते हुए उन्हें ‘लोकमान्य’ की उपाधि दी, जिसका अर्थ है – “जनता द्वारा सम्मानित व्यक्ति”।
8. मृत्यु और विरासत
- लोकमान्य टिळक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ।
- उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमूल्य है।
- आज भी गणपति उत्सव और शिवाजी जयंती उनके योगदान की याद दिलाते हैं।
9. निष्कर्ष
लोकमान्य टिळक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता थे। उन्होंने पत्रकारिता, समाज सुधार और राजनीति के माध्यम से देश की जनता को स्वतंत्रता के लिए तैयार किया। उनका नारा “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा!” आज भी प्रेरणा देता है। उनका जीवन संघर्ष, त्याग और देशभक्ति की मिसाल है।
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