1. भूमिका
- यह पाठ श्रीप्रसाद द्वारा रचित एक रोचक नाटक है।
- इसमें शरीर के विभिन्न अंगों का एक सम्मेलन आयोजित किया जाता है।
- सभी अंग अपनी उपयोगिता और महत्त्व को सिद्ध करने का प्रयास करते हैं।
- अंत में यह निष्कर्ष निकलता है कि सभी अंग एक-दूसरे के पूरक हैं और किसी को भी छोटा-बड़ा नहीं माना जाना चाहिए।
2. पात्र परिचय
- सूत्रधार – सम्मेलन की शुरुआत और समापन करता है।
- हाथ – स्वयं को सबसे महत्वपूर्ण बताने का प्रयास करता है।
- पैर – बिना पैरों के मनुष्य कहीं जा नहीं सकता, इसलिए खुद को श्रेष्ठ बताता है।
- आंखें – संसार की सुंदरता दिखाने के कारण खुद को सबसे महत्वपूर्ण मानती हैं।
- कान – संगीत और ध्वनियों को सुनने की शक्ति का दावा करता है।
- नाक – गंध पहचानने और “नाक कटने” जैसी कहावतों का महत्व बताता है।
- जीभ – बोलने की क्षमता को महत्वपूर्ण बताकर खुद को श्रेष्ठ बताने की कोशिश करती है।
- पेट – शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के लिए खुद को सबसे महत्वपूर्ण मानता है।
- चेहरा – सुंदरता का प्रतीक होने के कारण सबसे अहम बताता है।
3. संवादों का सारांश
- शुरुआत: सूत्रधार घोषणा करता है कि शरीर के सभी अंगों का सम्मेलन होने जा रहा है।
- हाथ: अपने कार्यों की महत्ता को बताते हुए खुद को सबसे श्रेष्ठ बताता है।
- पैर: मनुष्य की गतिशीलता का आधार खुद को बताते हुए श्रेष्ठता की दावेदारी करता है।
- आंखें: दुनिया की सुंदरता दिखाने के कारण खुद को सर्वश्रेष्ठ बताती हैं।
- कान: ध्वनि और संगीत का महत्व बताकर खुद को जरूरी साबित करता है।
- नाक: गंध पहचानने की क्षमता को सबसे अधिक मूल्यवान बताती है।
- जीभ: भाषा और संचार की शक्ति को बताते हुए अपने कार्य को सबसे महत्वपूर्ण मानती है।
- पेट: शरीर को पोषण देने की क्षमता को सर्वोपरि बताता है।
- चेहरा: सुंदरता और पहचान का प्रतीक होने के कारण खुद को महत्वपूर्ण मानता है।
- समापन: अंत में सूत्रधार बताता है कि किसी भी अंग को छोटा या बड़ा नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि सभी एक-दूसरे के पूरक हैं।
4. पाठ से मिलने वाली शिक्षाएं
- सभी व्यक्ति और वस्तुएं अपने स्थान पर महत्वपूर्ण होती हैं।
- आपसी सहयोग और सामंजस्य से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है।
- किसी को भी अपने योगदान को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए।
- शरीर के अंगों की तरह समाज में भी सभी वर्गों का योगदान आवश्यक होता है।
5. महत्वपूर्ण शब्दार्थ
- बखान – वर्णन करना
- आनाकानी – टालमटोल करना
- नाक कटना – अपमानित होना
- अंधों में काना राजा – अयोग्य व्यक्तियों के बीच थोड़ा योग्य व्यक्ति श्रेष्ठ माना जाना
6. रचनाकार परिचय – श्रीप्रसाद
- जन्म: 1932, आगरा (उत्तर प्रदेश)
- मृत्यु: 2012
- योगदान: बाल साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध।
- प्रमुख रचनाएं:
- मेरे प्यारे शिशुगीत
- मेरा साथी घोड़ा
- सीखो और गाओ गीत
- अकड़-बकड़ का नगर
7. रचनात्मक कार्य (अभ्यास के लिए)
- “अंधों में काना राजा” मुहावरे का प्रयोग करते हुए एक छोटा निबंध लिखिए।
- “फलों के औषधीय गुण” पर 5 वाक्य लिखिए।
- ‘दूरदर्शन से लाभ-हानि’ विषय पर 100 शब्दों का निबंध लिखिए।
निष्कर्ष:
यह पाठ केवल शरीर के अंगों के महत्व को ही नहीं बताता, बल्कि यह भी सिखाता है कि किसी को भी स्वयं को श्रेष्ठ नहीं समझना चाहिए। सभी का योगदान आवश्यक होता है, चाहे वह शरीर के अंग हों या समाज के लोग।
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