संतवाणी
भूमिका:
“संवाणी” पाठ में भक्ति आंदोलन के दो प्रमुख संतों-संत मीराबाई और गोस्वामी तुलसीदास के जीवन, उनकी भक्ति भावना, संघर्ष और उनकी कृतियों पर चर्चा की गई है। दोनों संतों ने अपने समय में समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हुए भगवान की भक्ति की और अपने लेखन के माध्यम से लोगों को मार्गदर्शन दिया।
1. संत मीराबाई
जीवन परिचय:
- मीराबाई का जन्म राजस्थान के मेड़ता में हुआ था।
- वे बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं।
- उनका विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज से हुआ, लेकिन वे सांसारिक बंधनों में नहीं बंध सकीं।
- पति की मृत्यु के बाद, उन्होंने संसार से विरक्त होकर भक्ति का मार्ग अपना लिया।
मीराबाई की कृष्ण भक्ति:
- उन्होंने समाज की निंदा और कठिनाइयों को सहते हुए कृष्ण भक्ति को अपनाया।
- वे कृष्ण को ही अपना पति और सखा मानती थीं।
- समाज ने उन्हें पागल तक कहा, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति को कभी नहीं छोड़ा।
- उन्हें कई कष्ट दिए गए-विष का प्याला, डूबी हुई नाव में बैठाना, परंतु वे हर बार श्रीकृष्ण की कृपा से बच गईं।
- अंततः वे द्वारका चली गईं और वहाँ श्रीकृष्ण में लीन हो गईं।
मीराबाई की रचनाएँ और योगदान:
- उन्होंने भक्तिमय पदों की रचना की, जो आज भी प्रसिद्ध हैं।
- उनके पदों में कृष्ण प्रेम, विरह और समर्पण की भावना प्रबल रूप से दिखती है।
- उनकी भाषा राजस्थानी, ब्रजभाषा और सरल हिंदी में थी, जिससे आम लोग भी उनकी भक्ति को समझ सकें।
- उनके भजन आज भी भक्ति संगीत में गाए जाते हैं, जैसे “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो”।
2. गोस्वामी तुलसीदास
जीवन परिचय:
- तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव में हुआ था।
- वे बचपन से ही राम भक्त थे और बचपन में ही उन्हें संत बनने की प्रेरणा मिली।
- उनकी पत्नी रत्नावली ने उन्हें सांसारिक प्रेम से ऊपर उठने की सीख दी, जिससे वे पूरी तरह से श्रीराम की भक्ति में लीन हो गए।
तुलसीदास जी की भक्ति भावना:
- वे भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त थे।
- उन्होंने समाज को भक्ति, धर्म और कर्तव्य का मार्ग दिखाया।
- वे संस्कृत की जगह आम बोलचाल की भाषा अवधी और ब्रजभाषा में लिखते थे, जिससे साधारण लोग भी राम कथा को समझ सकें।
तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएँ:
- रामचरितमानस – श्रीराम के जीवन पर आधारित महाकाव्य।
- हनुमान चालीसा – हनुमान जी की महिमा का वर्णन करने वाली प्रसिद्ध कृति।
- विनय पत्रिका – भक्ति और विनय भाव से भरी रचनाएँ।
- दोहावली – नैतिक शिक्षा देने वाले दोहे।
रामचरितमानस का महत्व:
- तुलसीदास जी ने संस्कृत में लिखे वाल्मीकि रामायण को अवधी भाषा में सरल रूप में प्रस्तुत किया।
- यह ग्रंथ लोकभाषा में लिखा गया होने के कारण जनता में बहुत लोकप्रिय हुआ।
- इसमें भक्ति, नीति, मर्यादा और धर्म का संदेश दिया गया है।
- भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है, जो एक आदर्श राजा, पुत्र, पति और भाई हैं।
3. तुलसीदास और मीराबाई में समानताएँ:
- दोनों भक्ति मार्ग के महान संत थे।
- दोनों ने सामाजिक बंधनों को तोड़कर भक्ति का प्रचार किया।
- दोनों की रचनाएँ आम भाषा में थीं, जिससे वे सरलता से जनता तक पहुँच सकें।
- दोनों ने जीवन में अनेक कठिनाइयों और संघर्षों का सामना किया।
- दोनों की भक्ति निष्काम (निस्वार्थ) और समर्पण भाव से युक्त थी।
निष्कर्ष:
यह पाठ हमें भक्ति, प्रेम, समर्पण और धर्म की महत्ता समझाने के लिए लिखा गया है। संत मीराबाई और तुलसीदास जी ने अपने जीवन को भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया और अपनी अमूल्य रचनाओं से लोगों को मार्गदर्शन दिया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
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