शब्द संपदा
स्वयं अध्ययन
उत्तर – हमारी वाणी शिष्ट होनी चाहिए। कहा गया है ‘सत्यं ब्रूयात्’ यानी सत्य से युक्त वाणी बोलनी चाहिए। “प्रिय बूयात्’ प्रिय बोलना चाहिए। अहंकार रहित वाणी बोलनी चाहिए। जिसे सुनकर सुननेवाला भी सुखी हो जाए और अपने मन को भी शांति मिले। विवेक पूर्ण वाणी बोलनी चाहिए अर्थात कहाँ, किससे और कैसी वाणी बोलनी चाहिए उसका पूर्ण विचार करके बोलना चाहिए। बड़ों के लिए आदरार्थक शब्दों का प्रयोग करना चाहिए साथ ही सत्य यदि अप्रिय हो, तो नहीं बोलना ही हितकर होता है।
सुनो तो जरा
‘भारत के संविधान की उद्देशिका’ सुनो और दोहराओ ।
उत्तर – बात से हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं। ‘बातै हाथी पाइए’ का अर्थ है – बात से हाथी प्राप्त करना। यदि आप को बोलने की कला आती है, तो आपकी हर बात पूरी हो सकती हैं। बड़ी-से-बड़ी इच्छाएँ आपकी पूरी हो सकती हैं। इसके विपरीत यदि बात करने नहीं आता है, तो कहीं भी आप समस्या उपस्थित कर सकते हैं। जो कार्य आसानी से संपन्न हो सकता है।
जरा सोचो ……… चर्चा करो
यदि तुम पशु-पक्षियों की बोलियॉं समझ पाते तो …
उत्तर –
आशीष – आयुष, क्या तुमने प्रातः भ्रमण कर लिया?
आयुष – हाँ, भ्रमण तो कर लिया पर अभी और करना था। तब तक एक करुण स्वर ने…..
आशीष – करुण स्वर?
आयुष – हाँ, मित्र यह चिड़िया अचानक मेरे सामने आकर गिर पड़ी।
आशीष – क्या हुआ है इसे?
आयुष – पता नहीं यार! यह मेरे सामने गिरी और छटपटाते हुए ची… चौं… कर रही थी।
आशीष – शायद तुम ठीक कह रहे हो; पर कौए को इससे क्या दुश्मनी हो सकती है जो वह इसे मारेगा?
आयुष – वह तो यह चिड़िया ही बता सकती है। शायद यह कुछ कहना चाहती है। परंतु हम इसकी भाषा नहीं समझ पा रहे हैं।
आशीष – चलो इसे साथ ले चलते हैं।
विचार मंथन
।। कथनी मीठी खॉंड़-सी ।।
उत्तर – ‘कथनी’ का अर्थ है हमारा कथन अर्थात हमारी वाणी। हमारी वाणी मीठी होनी चाहिए। एकदम गुड़ के समान। कहने का आशय यह है कि हम जो भी बोले उसका प्रभाव सुनने वाले के ऊपर अच्छा व सकारात्मक हो। एक बार मुख से शब्द निकल जाए तो वह वापस नहीं आता है। वाणी के कारण दोस्त और दुश्मन बनते हैं।
मधुर वाणी को औषधि के समान माना गया है। जिसे सुनकर सुनने वाला शांत एवं आनंदित हो जाता है तथा अपने मन को भी परम सुख की अनुभूति होती है। तभी तो कहा गया है। “ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहू शीतल होय।।”
खोजबीन
हजारी प्रसाद द्विवेदी की ‘कबीर ग्रंथावली’ से पॉंच दोहे ढूँढ़कर सुंदर अक्षरों में लिखो ।
उत्तर –
(१) दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय।।१।।
(२) तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय।
कबहुँ उड़ आँखों पड़े, पौर घनेरी होय।।२।।
(३) गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोबिंद दियो बताय।।३।।
(४) जाति न पूछो साधुकी, पूछि लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।।४।।
(५) माया मरी न मन मरा, मर-मर गया शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।।५।।
१. तीन-चार वाक्यों में उत्तर लिखो :
(क) ‘भाषा’ का क्या अर्थ है, इसके कारण क्या हुआ है ?
उत्तर – ‘भाषा’ का अर्थ है – सार्थक शब्दों का व्यवस्थित क्रमबद्ध संयोजन। इसके कारण दुनिया की सभी ज्ञानशाखाओं का विकास हुआ। यही सभी प्रगति की जड़ में है।
(ख) भाषा समृद्ध कैसे होती है ?
उत्तर – हिंदी में ऐसे हजारों शब्द हैं जो संस्कृत, अरबी, फारसी, अंग्रेजी, पुर्तगाली से आए हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो दो भिन्न भाषाओं के मेल से बने हैं। अन्य अनेक भाषाओं के शब्दों के आने से भाषा समृद्ध होती है।
२. शब्दों के बारे में लेखक के विचार बताओ ।
उत्तर – लेखक के अनुसार शब्दों का संसार बड़ा विचित्र होता है। यही मनुष्य को ज्ञान से और मनुष्य को मनुष्य से जोड़ते हैं। शब्द निर्जीव होते हैं। मनुष्य उन्हें अर्थ देकर जीवंत बनाते हैं। जब शब्द जीवंत हो जाते हैं, तो उनमें मनुष्य के गुण दोष आने लगते हैं। वे भी मनुष्य की तरह किसी अन्य भाषा के शब्दों को मित्र तो किसी को शत्रु बना लेते हैं। कुछ मिलनसार होते हैं, तो कुछ अड़ियल होते हैं; जो किसी से नहीं मिलते हैं। यही हमारे चरित्र, बुद्धिमत्ता, समझ और संस्कार दर्शाते हैं।
4. वाचन-संस्कृति बढ़ाने से होने वाले लाभ लिखो ।
उत्तर – वाचन-संस्कृति बढ़ाने से स्वयं की शब्द संपदा में वृद्धि होती है। शब्द संपदा की वृद्धि होने पर हमारी समझ बढ़ती है कि किस समय, किसके सामने, किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। इससे हमारे चरित्र, बुद्धिमत्ता, समझ, संस्कार समृद्ध, सुंदर व सुगठित होते हैं।
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