‘पृथ्वी’ से ‘अग्नि’ तक
जरा सोचो ……. चर्चा करो
यदि मैं अंतरिक्ष यात्री बन जाऊँ तो ….
उत्तर – मेरे जीवन का एक सबसे बड़ा सपना है कि मैं एक अंतरिक्ष यात्री बने। अगर मैं अंतरिक्ष यात्री बन गया, तो मुझे स्वयं पर गर्व महसूस होगा क्योंकि यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है। मैं भी आसमान में पक्षियों की भाँति उड़ जाऊँगा। ऊपर से हमारी सुंदर पृथ्वी का नजारा देखूगा। कई ग्रह, तारे, धूमकेतु इनका बारीकी से अवलोकन व अध्ययन करूँगा। कई प्रकार की नई बातें देश व देशवासियों के लिए खोज लाऊँगा। चंद्रमा के बारे में इसके पहले लोगों ने जो कथन किए हैं। मैं उनका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करूंगा। अपने यान से पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा और अन्य दूसरे दुर्लभ ग्रहों के चित्र संशोधन के लिए लूंगा। अपने अवलोकन व संशोधन से कई प्रकार का महत्त्वपूर्ण ज्ञान मैं देशवासियों और विश्व के लिए ले आऊँगा। मैं कुछ इस प्रकार के कारनामें करूँगा, जिससे विश्व में अपने देश का नाम ऊँचा हो। मैं सदैव एक सफल अंतरिक्ष यात्री बनकर लौटना चाहूँगा।
विचार मंथन
।। हम विज्ञान लोक के वासी ।।
उत्तर – आज का युग विज्ञान का युग है। आज का कोई भी क्षेत्र विज्ञान से अछूता नहीं है। प्राचीन काल से असंभव समझे जानेवाले सभी कार्यों को विज्ञान ने संभव करके दिखाया है। छोटी सुई से लेकर आकाश की दूरी नापने वाले हवाई जहाज व रॉकेट इस विज्ञान की ही देन हैं। हम अपने प्रतिदिन के जीवन में विज्ञान निर्मित वस्तुओं का ही प्रयोग करते हैं। विद्युत की निर्मिती, कल-कारखाने, अंतरिक्ष की खोज, जीवन में बदलाव, आधुनिक खेती की सामग्री पूरा जीवन विज्ञान निर्मित वस्तुओं से घिरा हुआ है।
प्राचीन काल से हम कहते व सुनते आ रहे हैं कि मनुष्य “धरती का वासी है’, परंतु विज्ञान के इन चमत्कारों और मनुष्य द्वारा विज्ञान निर्मित वस्तुओं के उपयोग किए जाने पर हम अगर कहें कि ‘हम विज्ञान लोक के वासी’ हैं, तो यह गलत न होगा। विज्ञान ही है जिसने धरती के प्रत्येक असंभव कार्य को संभव करके दिखाया है। किंतु आज के इस आधुनिक युग में हमें इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि विज्ञान से मनुष्य को कई हानियाँ भी हो रही हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमें विज्ञान की तरक्की का उपयोग मानव जाति के भले के लिए ही करना चाहिए। तभी हम असल में ‘विज्ञान लोक के वासी’ कहलाएंगे।
मेरी कलम से
दिए गए मुद्दों के आधार पर कहानी लिखो :
उत्तर – शीर्षक बेगुसराय नाम का एक राज्य था। उस राज्य में विभूति नारायण नामक राजा राज्य करते थे। राजा बड़े ही कर्मठ, परोपकारी व न्यायी थे। उन्हें अपने दरबार के लिए एक ऐसे राजमंत्री की तलाश थी, जो परोपकारी व निस्वार्थी हो। एक दिन रामपुर नामक गाँव में एक मेला लगा। मेला देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। राजा विभूतिनारायण ने अपने सैनिकों को बताया कि आज हम अपने राज्य के लिए राजमंत्री की खोज करेंगे। वे अपने सेवकों को सड़क के प्रवेशद्वार पर एक बड़ा-सा पत्थर रखवाने के लिए कहते हैं तथा वेश बदलकर स्वयं वहाँ खड़े हो जाते हैं। कई लोग उस रास्ते से जाते हैं। उस पत्थर से टकराते हैं, गिरते हैं, किंतु किसी ने भी उस पत्थर को उठाकर रास्ते से दूर नहीं किया। अजय नाम का एक लड़का बहुत रही थी।
कुछ देर बाद उससे न रहा गया। वह स्वयं उस बड़े भारी पत्थर के पास गया और पत्थर को ढंकेलकर रास्ते के किनारे से सरकाकर हटा दिया। राजा की नज़र इस लड़के पर पड़ी। राजा खुशी से प्रसन्न हो उठे। पर वे कुछ देर देखते रहे। अजय को उस पत्थर के नीचे एक चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था “आज से तुम इस राज्य के राजमंत्री हो।” इतने में राजा विभूतिनारायण उसके समीप आए और उससे कहा कि “मैं तुम्हारी परोपकारी भावना व निस्वार्थ सेवा बृत्ति से प्रसन्न हूँ। आज से मैं तुम्हें इस राज्य का राजमंत्री घोषित करता हूँ।” अजय के लिए यही सबसे बड़ा पुरस्कार था। राजा ने अपनी ओर से हजार सुवर्ण मुद्राएँ देकर उसे सम्मानित किया और अपने दरबार में राजमंत्री का पद प्रदान किया।
सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए बल्कि परोपकारी भावना से प्रत्येक सामाजिक कार्य को हमें करना चाहिए। जो समाज व जनता के हित में हों।
शीर्षक – “जनसेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।” अथवा
“कर भला तो हो भला।”
१. सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखो :
(क) ‘पृथ्वी’ प्रक्षेपण के लिए —- अंतरिक्ष केंद्र में विशेष सुविधाऍं स्थापित की । [थुंबा, श्रीहरिकोटा]
उत्तर – श्रीहरिकोटा
(ख) सिर्फ छह सौ —- की भव्य उड़ान ने हमारी सारी थकान को एक पल में धो डाला । [मिनट, सेकंड्स]’
उत्तर – सेकंड्स
२. तीन-चार वाक्यों में उत्तर लिखो :
(च) भारत को चुनिंदा राष्ट्रों के समूह में किसने पहुँचा दिया ?
उत्तर – भारत को सामर्थ्यशील नागरिक अंतरिक्ष उद्योग और व्यवहार्य मिसाइल आधारित सुरक्षा प्रणालियों ने चुनिंदा राष्ट्रों के समूह में पहुंचा दिया।
(छ) टीम के साथ डॉ. कलाम जी ने कौन-सा अनुभव बॉंटा ?
उत्तर – अपनी टीम के साथ डॉ. कलाम ने यह अनुभव बाँटा कि मेरा प्रक्षेपणयान तो गिरकर समुद्र में खो गया था, लेकिन उसकी वापसी सफलता के साथ हुई। आपकी मिसाइल तो अभी तक आपके सामने है। वास्तव में आपने कुछ भी ऐसा नहीं खोया है, जिसे एक-दो हफ्तों के काम से सुधारा न जा सके।
(ज) ‘अग्नि’ का प्रक्षेपण पहले स्थगित क्यों करना पड़ा ?
उत्तर – कंप्यूटर द्वारा उपकरण ठीक ढंग से काम न करने के निर्देश तथा निचली रेंज केंद्र द्वारा ‘होल्ड’ करने के संकेत प्राप्त होने के कारण ‘अग्नि’ का प्रक्षेपण पहले स्थगित करना पड़ा।
(झ) रक्षामंत्री ने डॉ. कलाम जी से कब और क्या पूछा था ?
उत्तर – रक्षामंत्री महोदय ने डॉ. कलाम से ‘अग्नि’ के प्रक्षेपण करने की पहली रात पूछा, “अग्नि की कामयाबी का जश्न मनाने के लिए तुम मुझसे क्या उपहार चाहोगे?”
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