बंदर का धंधा
कवि का परिचय
- जन्म: 21 अक्टूबर 1963, पिलखुवा, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)।
- प्रमुख रचनाएँ: गीत शृंखला, गीतगंगा, गीतसागर, झूला झूले, तीन-तीन बिल्लियाँ आदि।
- विशेषता: बाल साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, जिनकी रचनाएँ रोचक व शिक्षाप्रद होती हैं।
कविता का सारांश
इस हास्य कविता में एक बंदर की चतुराई और उसके पारंपरिक घरेलू उपचारों को प्रस्तुत किया गया है। बंदर जंगल में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियाँ इकट्ठा कर उनसे इलाज करता है और बदले में फीस लेता है।
- पहला दृश्य:
- बंदर रसगुल्ले खाते हुए एक तोते से कहता है कि अगर वह स्वस्थ रहना चाहती है तो उसे घास खाना चाहिए।
- लोरी नाम की लोमड़ी सुंदर दिखने के लिए जड़ी-बूटी मांगती है, और बंदर उसे उपाय बताता है।
- दूसरा दृश्य:
- बंदर एक दिन एक डॉक्टर बनने का निर्णय लेता है।
- वह जंगल से कुर्सी और मेज लाता है और अपना नया पेशा शुरू करता है।
- तीसरा दृश्य:
- भालू को खाँसी-जुकाम होता है, तो बंदर उसे तुलसी पत्ते और पीपल की जड़ का काढ़ा पीने की सलाह देता है।
- बिल्ली को तेज बुखार हो जाता है, और वह बंदर से इलाज करवाने आती है।
कविता में बंदर की होशियारी और हास्यपूर्ण तरीके से पारंपरिक घरेलू नुस्खों को प्रस्तुत किया गया है।
मुख्य भाव
- हास्य और व्यंग्य – बंदर की चतुराई और घरेलू इलाज को मज़ेदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
- प्राकृतिक उपचारों का महत्व – तुलसी, पीपल जैसी औषधियों की उपयोगिता को दिखाया गया है।
- बुद्धिमत्ता और चालाकी – बंदर अपनी चतुराई से जंगल के जानवरों को अपनी बातों में उलझा कर उनसे लाभ उठाता है।
शिक्षा
- पारंपरिक घरेलू उपचार कई बार उपयोगी हो सकते हैं।
- हँसी-मजाक भी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- बुद्धिमत्ता और चतुराई से परिस्थितियों को अपने पक्ष में बदला जा सकता है।
महत्वपूर्ण शब्दार्थ
- रसगुल्ले – एक प्रकार की मिठाई।
- लोरी – लोमड़ी का नाम।
- काढ़ा – जड़ी-बूटियों से बना औषधीय पेय।
- जड़ी-बूटी – औषधीय पौधे।
- उबालना – पानी में पकाना।
Leave a Reply