अपकार का उपकार
भूमिका
“अपकार का उपकार” एक शिक्षाप्रद कहानी है, जो हमें यह सिखाती है कि हमें बुराई का बदला बुराई से नहीं, बल्कि भलाई से देना चाहिए। यह कहानी हमें सहृदयता, करुणा और परोपकार की सीख देती है।
मुख्य पात्र
- कछुआ – धैर्यवान और दयालु
- कौआ – शरारती और स्वार्थी
- कौए की पत्नी – समझदार और संवेदनशील
- गाँव के लड़के – शरारती
कहानी का सारांश
एक तालाब में एक कछुआ रहता था, जो शांत स्वभाव का था। वहीं, एक कौआ भी वहाँ पेड़ पर रहता था, जो बहुत शरारती था। वह कछुए को बार-बार परेशान करता और उसे चिढ़ाने के लिए उसकी पीठ पर चोंच मारता था। कछुआ इससे बहुत परेशान था लेकिन फिर भी उसने कभी क्रोधित होकर कौए से बदला लेने की कोशिश नहीं की।
एक दिन, गाँव के कुछ लड़के जामुन खाने के लिए पेड़ पर चढ़े। तभी, कौए का एक अंडा गलती से तालाब में गिर गया। यह देखकर कौआ बहुत घबरा गया और उसे लगा कि अब उसका अंडा नष्ट हो जाएगा। लेकिन कछुए ने अपनी बुद्धिमानी से अंडे को मुँह में पकड़ लिया और उसे सुरक्षित तालाब से बाहर निकाल दिया।
कौए की पत्नी ने कछुए के इस दयालु स्वभाव को देखकर उससे क्षमा माँगी और कौए को भी समझाया कि उसे कछुए को तंग नहीं करना चाहिए। यह देखकर कौआ भी लज्जित हुआ और उसने कछुए से क्षमा माँगी।
शिक्षा / नैतिक मूल्य
- बुराई का बदला बुराई से नहीं, बल्कि अच्छाई से देना चाहिए।
- दूसरों की मदद करना सच्चा परोपकार है।
- धैर्य और सहनशीलता जीवन में बहुत महत्वपूर्ण गुण हैं।
- किसी को व्यर्थ परेशान नहीं करना चाहिए, क्योंकि बाद में हमें उसी व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है।
- हमारी अच्छाई से दूसरों का हृदय परिवर्तन हो सकता है।
महत्वपूर्ण शब्दार्थ
- अपकार – बुरा कार्य
- उपकार – भलाई / मदद
- संकोच – झिझक
- व्याकुल – चिंतित
- शरारती – नटखट, दूसरों को परेशान करने वाला
- लज्जित – शर्मिंदा
निष्कर्ष
यह कहानी हमें सिखाती है कि बदला लेने की भावना से बचना चाहिए और सदा दयालुता और परोपकार की भावना रखनी चाहिए। अच्छाई से ही बुराई का नाश किया जा सकता है। कछुए ने अपने व्यवहार से यह सिद्ध कर दिया कि हमें हमेशा मददगार और सहृदय बनना चाहिए।
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