फूल और काँटे
लेखक परिचय
नाम: अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
जन्म: 1865, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)
मृत्यु: 1947प्रमुख रचनाएँ:
- प्रिय प्रवास
- पद्य प्रसून
- वैदेही वनवास
- अधखिला फूल
- प्रेम की गाथा
विशेषता: अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ खड़ी बोली हिंदी के प्रारंभिक कवियों में से एक थे। वे हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभों में गिने जाते हैं।
कविता का सारांश
कवि ने इस कविता में फूल और कांटे की तुलना की है और यह संदेश दिया है कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसके जन्म या वंश के आधार पर नहीं, बल्कि उसके कर्मों के आधार पर किया जाता है।
मुख्य बिंदु:
फूल और कांटे एक ही पौधे पर उगते हैं,
- दोनों को समान पानी, हवा, और धूप मिलती है।
- फिर भी उनका स्वभाव अलग होता है।
फूल का गुण:
- फूल अपनी सुगंध और सुंदरता से लोगों को आनंद देता है।
- वह मधुमक्खियों को आकर्षित करता है और वातावरण को सुखद बनाता है।
- कोमलता और प्रेम का प्रतीक होता है।
कांटे का स्वभाव:
- कांटा चुभता है और पीड़ा देता है।
- वह वस्त्रों को फाड़ देता है और उंगलियों को घायल कर देता है।
- उसे लोग नापसंद करते हैं।
कविता का संदेश:
- मनुष्य को अपने कर्मों के आधार पर परखा जाता है, न कि उसके जन्म से।
- अच्छे गुण और सद्गुण मनुष्य को महान बनाते हैं।
- हमें फूल की तरह दूसरों को सुख और आनंद देना चाहिए, कांटे की तरह दुख और पीड़ा नहीं।
कविता के महत्वपूर्ण अंश और व्याख्या
१. समान वातावरण, फिर भी भिन्न स्वभाव
“हैं जन्म लेते जगह में एक ही,एक ही पौधा उन्हें है पालता।रात में ऊपर चमकता चाँद भी,एक ही-सी चाँदनी है डालता।।”
अर्थ:कवि बताते हैं कि फूल और कांटे एक ही जगह जन्म लेते हैं, उन्हें एक ही पौधा पालता है, और वे समान चाँदनी और वातावरण में पनपते हैं। इसके बावजूद, उनके गुण अलग-अलग होते हैं।
२. फूल की विशेषता
“फूल लेकर तितलियों को गोद में,भौंर को अपना अनूठा रस पिला।निज सुगंध ‘औ’ निराले रंग से,है सदा देता कली जी की खिला।।”
अर्थ:फूल अपनी सुंदरता, सुगंध और मधुरता के कारण भौंरों और तितलियों को आकर्षित करता है। वह प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक होता है।
३. कांटे का व्यवहार
“छेद कर काँटा किसी की उँगलियाँ,फाड़ देता है किसी का वर-वसन।प्यार डूबी तितलियों के पर कतर,भौंर का है वेध देता श्याम तन।।”
अर्थ:कांटा चुभकर लोगों को दर्द देता है, कपड़ों को फाड़ देता है और भौंरों और तितलियों को घायल करता है।
४. कर्म की महत्ता
“है चुभता एक सबकी आँख में,दूसरा है सोहता सुर सीस पर।किस तरह कुल की बड़ाई काम दे,जो किसी में हो बड़प्पन की कसर।।”
अर्थ:एक व्यक्ति यदि बुरे कर्म करता है, तो उसे लोग पसंद नहीं करते, जबकि अच्छे कर्मों वाला व्यक्ति सम्मान प्राप्त करता है।
शिक्षा और नैतिक मूल्य
- मनुष्य का मूल्यांकन जन्म से नहीं, कर्म से होता है।
- हमें दूसरों के लिए उपयोगी बनना चाहिए, जैसे फूल सभी को आनंद देता है।
- बुरे कर्म व्यक्ति को कांटे की तरह बनाते हैं, जिससे लोग दूर भागते हैं।
- हमें प्रेम, सद्भाव और सेवा की भावना रखनी चाहिए।
- हमारे व्यवहार और कार्यों से समाज में हमारी पहचान बनती है।
महत्वपूर्ण शब्दार्थ
शब्द | अर्थ |
---|---|
मेह | बादल |
वर | श्रेष्ठ, सुंदर |
वसन | वस्त्र |
वेधना | घायल करना |
सोहना | शोभा देना |
जी की कली खिलना | खुश होना |
भौंर | भंवरा |
निष्कर्ष
यह कविता हमें यह सिखाती है कि मनुष्य को उसके कुल, जाति या परिवार से नहीं, बल्कि उसके अच्छे कर्मों से पहचाना जाता है। फूल की तरह हमें भी अपने जीवन में प्रेम, सेवा और सद्भावना को अपनाना चाहिए, ताकि हमारा जीवन दूसरों के लिए भी सुखदायी बन सके।
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