परिचय
यह अध्याय हमें अंधविश्वास से दूर रहने और विज्ञान पर विश्वास करने की सीख देता है। इसमें मोहन नाम के एक लड़के की कहानी है, जिसकी माँ झूठे विश्वासों में पड़कर उसकी सही इलाज नहीं कराती।
मुख्य पात्र
- मोहन – बीमार लड़का
- मोहन की माँ – अंधविश्वास में विश्वास करने वाली
- मोहन के दोस्त (सोहन, सुषमा, महेश, शिल्पा) – सही सलाह देने वाले
- गुरु जी – जो बच्चों को सच्चाई समझाते हैं
कहानी का सार
- मोहन बीमार हो जाता है, लेकिन उसकी माँ उसे डॉक्टर के पास नहीं ले जाती।
- वह बाबा जी के दिए मंत्रवाले पानी पर विश्वास करती है।
- मोहन के दोस्त आते हैं और पूछते हैं कि डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया?
- माँ कहती है कि मोहन को किसी की बुरी नजर लगी है और बाबा जी का पानी ही उसे ठीक करेगा।
- बच्चे जब घर से बाहर निकलते हैं, तो एक बिल्ली उनका रास्ता काट देती है।
- सुषमा और महेश इसे बुरा संकेत मानते हैं, लेकिन गुरु जी समझाते हैं कि यह सिर्फ अंधविश्वास है।
- गुरु जी सभी को बताते हैं कि बीमारियों का इलाज केवल डॉक्टर और दवा से होता है, न कि मंत्रों से।
- सभी बच्चे मोहन की माँ को समझाने जाते हैं, जिससे उनकी आँखें खुल जाती हैं।
- अध्याय के अंत में सभी मिलकर कहते हैं – “अंधविश्वास से दूर रहो, सत्य की पहचान करो।”
इस पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?
✅ अंधविश्वास गलत होता है, हमें विज्ञान पर विश्वास करना चाहिए।
✅ बीमारी का इलाज केवल डॉक्टर और दवा से ही हो सकता है।
✅ हमें बिना सोचे-समझे किसी भी झूठी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
कठिन शब्द और उनके अर्थ:
- अंधविश्वास – बिना तर्क के किसी बात पर विश्वास करना
- तरस आना – किसी पर दया करना
- आँखें खुलना – सच्चाई का पता चलना
- दूध का दूध, पानी का पानी करना – सही और गलत को अलग करना
- झुँझलाना – गुस्सा करना
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