पाठ का परिचय:
- यह एक संस्मरण (यादगार अनुभव) है, जिसे चंद्रगुप्त विद्यालंकार ने लिखा है।
- लेखक ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से हुई मुलाकात के बारे में बताया है।
- उन्हें शांतिनिकेतन जाने और गुरुदेव से बातचीत करने का सौभाग्य मिला।
कहानी का सारांश:
(क) शांतिनिकेतन जाने की खुशी:
✔ यह घटना फरवरी 1936 की है।
✔ लेखक एक साहित्यिक कार्यक्रम में शामिल होने शांतिनिकेतन गए।
✔ कार्यक्रम में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर मुख्य अतिथि थे।
✔ लेखक बहुत उत्साहित थे क्योंकि वे गुरुदेव से मिलने वाले थे।
(ख) गुरुदेव से मिलने की उम्मीद:
✔ अगले दिन सुबह पता चला कि गुरुदेव की तबीयत ठीक नहीं है।
✔ वे कार्यक्रम में नहीं आ सके, जिससे लेखक निराश हो गए।
✔ बाद में सूचना मिली कि गुरुदेव 15 मिनट के लिए मिलने का समय देंगे।
✔ यह सुनकर लेखक बहुत खुश हुए और बेसब्री से इंतजार करने लगे।
(ग) गुरुदेव से मुलाकात:
✔ दोपहर में लेखक और उनके साथी गुरुदेव के पास पहुंचे।
✔ गुरुदेव ने मजाक में कहा कि उनके पास ज्यादा लोगों से मिलने की ताकत नहीं है।
✔ फिर सभी का परिचय हुआ और बातचीत शुरू हुई।
✔ गुरुदेव ने बताया कि 50 साल पहले जब उन्होंने कहानियाँ लिखना शुरू किया, तब बंगाली साहित्य में इस तरह की कहानियाँ नहीं थीं।
(घ) “काबुलीवाला” कहानी की चर्चा:
✔ लेखक ने गुरुदेव से पूछा कि “काबुलीवाला” कहानी लिखने का विचार उन्हें कैसे आया?
✔ गुरुदेव ने बताया कि यह उनकी कल्पना की रचना थी।
✔ वे एक काबुली फल बेचने वाले को जानते थे, जिससे यह कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।
(ङ) लेखक का अहोभाग्य:
✔ बातचीत 15 मिनट की जगह 40 मिनट तक चली।
✔ जाते समय गुरुदेव ने कहा कि उन्हें लोगों से बातचीत करना बहुत पसंद है।
✔ बाद में लेखक को पता चला कि वह जिस कमरे में ठहरे थे, उसी कमरे में गुरुदेव ने “गीतांजलि” लिखी थी।
✔ यह जानकर लेखक को अहोभाग्य (खुशकिस्मती) महसूस हुई।
मुख्य बिंदु:
✔ लेखक का शांतिनिकेतन जाना।
✔ गुरुदेव की खराब तबीयत के कारण निराशा।
✔ गुरुदेव से 15 मिनट की मुलाकात का मौका।
✔ “काबुलीवाला” कहानी के पीछे की प्रेरणा।
✔ लेखक का उसी कमरे में ठहरना, जहाँ “गीतांजलि” लिखी गई थी।
कठिन शब्द और उनके अर्थ:
शब्द | अर्थ |
---|---|
संस्मरण | यादगार घटना |
मध्याह्न | दोपहर |
उल्लसित | बहुत खुश |
संवाद | बातचीत |
साहित्यिक | साहित्य से जुड़ा हुआ |
अहोभाग्य | बहुत सौभाग्यशाली होना |
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