परिचय:
“बसंती हवा” कविता केदारनाथ अग्रवाल द्वारा लिखी गई है। यह कविता बसंत ऋतु में चलने वाली मस्ती भरी हवा के बारे में है। इस कविता में कवि ने हवा की चंचलता, आज़ादी और प्रकृति पर उसके प्रभाव का सुंदर वर्णन किया है।
कविता का सारांश:
इस कविता में बसंती हवा खुद को मस्तमौला, निडर और घूमने वाली बताती है। वह बाग-बगीचों, खेतों और पेड़ों के बीच घूमती है, फूलों और पेड़ों को हिलाती है, गेहूं के खेतों को लहराती है और कोयल को गाने के लिए प्रेरित करती है।
मुख्य बातें:
✔ बसंती हवा चंचल और मस्तमौला होती है।
✔ वह बिना किसी चिंता के जहाँ चाहती है, वहाँ घूमती है।
✔ हवा फूलों, पत्तों और पेड़ों को झुलाती है।
✔ बसंती हवा आम के पेड़ को झकोरती है और गेहूं के खेतों को लहराती है।
✔ वह कोयल से “कू” की आवाज़ निकलवाकर भाग जाती है।
✔ बसंती हवा हमें खुश, आज़ाद और मस्ती से भरा जीवन जीने की सीख देती है।
कविता की पंक्तियों का भावार्थ:
(1) बसंती हवा का परिचय
हवा हूँ, हवा मैं,
बसंती हवा हूँ।
भावार्थ: यहाँ हवा खुद को पहचानती है और कहती है कि वह बसंत ऋतु की ताजगी भरी हवा है।
(2) हवा का मस्तमौला स्वभाव
बड़ी बावली हूँ,
बड़ी मस्तमौला।
नहीं कुछ फिक्र है,
बड़ी ही निडर हूँ।
भावार्थ: बसंती हवा मनमौजी और बेफिक्र है। उसे किसी चीज़ की चिंता नहीं होती और वह अपनी मर्जी से इधर-उधर घूमती रहती है।
(3) पेड़ों और खेतों पर हवा का प्रभाव
चढ़ी पेड़ महुआ,
पत्ता गिराया,
चढ़ी आम ऊपर,
उसे भी झकोरा।
भावार्थ: बसंती हवा महुआ और आम के पेड़ों को झकझोरती है, जिससे उनके पत्ते गिर जाते हैं।
गेहूं के खेतों में
लहर खूब मारी।
भावार्थ: जब बसंती हवा खेतों से गुजरती है, तो गेहूं के पौधे लहराने लगते हैं, जिससे खेतों में सुंदर दृश्य बनता है।
(4) बसंती हवा की शरारतें
किया काग में ‘कू’,
उतरकर भागी मैं।
भावार्थ: बसंती हवा कोयल को ‘कू’ की आवाज़ निकालने के लिए प्रेरित करती है और फिर वहां से तेजी से चली जाती है।
कठिन शब्द और उनके अर्थ:
शब्द | अर्थ |
---|---|
बावली | मस्ती में खोई हुई |
मस्तमौला | मनमौजी, खुश रहने वाला |
झकोरा | ज़ोर से हिलाया |
लहराना | हिलते-डुलते हुए चलना |
निडर | जिसे डर न हो |
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